Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir

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Page 78
________________ मणिपति चरित्रे जोनकसाधुकथा 'अम्मा तुह जामाउय संतियमेयं कहंतओ सव्वो । पुव्वत्तो वुत्तंतो कहिओ जाव उरु उछिन्नो ॥ ३० ॥ तो हं भयसंभंतो धरंमि गंतूण जायसंवेगो । पव्वइओ गुरुमूले ता अइभयमेरिस मज्झ ॥ ३१ ॥ जोणयसाहुकहा ततो चउत्थ-जामे भयाइभयमाह जोणओ साहू । कहइ य निय वृत्तंतं अभयकुमारस्स तह चेव ॥ ३२ ॥ उज्जेणीए सेट्ठीधणदत्तो भारिया सुभद्दा से । ताण सुओऽहं मज्झ य नामेणं सिरिमई भज्जा ॥ ३३ ॥ सा मज्झ चलण-धोवणसलिलं नेहेण पइदिणं पियइ । अहमवि अणुरत्तमणो तीए वयणं न लंघेमि ॥ ३४ ॥ अम्बे ! तव जामातुः सत्कं यमेतत्कथयन्ती सर्वः । पूर्वाको वृत्तान्तः कथितो यावदुरुच्छिन्नः ॥ ३० ॥ तस्मादहं भयसम्भ्रान्तो गृहे गत्वा जातसंवेगः । प्रव्रजितो गुरुमूले तस्मादतिभयमीदृशं मम ॥ ३१ ॥ जोनकसाधुकथा ततश्चतुर्थयामे भयातिभयमाह जोनकस्साधुः | कथयति च निजवृतान्तं, अभयकुमाराय तथैव ॥ ३२ ॥ उज्जेन्यां श्रेष्ठिधनदत्तो भार्या सुभद्रा तस्य । तयोः सुतोऽहं मम च नाम्ना श्रीमतीभार्या ॥ ३३ ॥ सा मम चरणधावनसलिलं स्नेहेन प्रतिदिनं पिबति । अहमप्यनुरक्तमनास्तस्या वचनं न लड्ङ्घयामि ॥ ३४ ॥ ५९

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