Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir
View full book text
________________
२६
मणिपति चरित्रे
पभणई किं कुणसि तुमं मुणी? भणइ' होउ तुम्ह पच्चक्खं' । इय भणिय पक्खिप्पइ जलम्मि जालं झसनिमित्तं ॥ ४३ ॥ राया भणइ 'कडीए किं एयं?' सो वि भणइ 'रयहरणं' । 'एएणं किं किज्जइ ?' रन्ना भणिए मुणी भणइ ॥ ४४ ॥ 'जीवो रक्खिज्जई' 'तो मारसि कीस मच्छए ?' राया । भणइ मुणी वि य हट्टे कंबलमेहि किणिस्सामि ॥ ४५ ॥ संजमहेउं दाउं कंबलयं वारिऊण ता जाइ । तो नियइ हट्टमग्गे गब्भवई साहुणी एगां ॥ ४६ ॥ ज़िणसासणस्स खिसं रक्खंतो तं पि धरिय पच्छण्णे । धम्मम्मि अविचलमणो पसवदिणं जाव पडियरइ ॥ ४७ ॥
प्रभणति किं करोषि त्वं मुनिः भणति भवतु युष्माकं प्रत्यक्षम् । इति भणित्वा प्रक्षिपति जले जालं झसनिमित्तम् ॥ ४३ ॥ राजा भणति कट्यां किं एतं, सोऽपि भणति रजोहरणम् । एतेन किं क्रियते राज्ञा भणिते मुनिर्भणति ॥ ४४ ॥ जीवा रक्ष्यते तर्हि मारयसि कस्मात् मत्स्यान् राजा । भणति मुनिरपि च हट्टे कम्बलं एभि; ऋष्यामि ॥ ४५ ॥ संयमहेतुं दत्त्वा कम्बलकं वारयित्वा तस्मात् याति । ततः पश्यति हट्टमार्गे गर्भवती-साध्वी एकाम् ॥ ४६ ॥ जिनशासनस्य निन्दां रक्षन् तामपि धृत्वा प्रच्छन्ने । धर्मे अविचलमनाः प्रसवदिनं यावत् प्रतिचरति ॥ ४७ ॥

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154