Book Title: Manivai Chariyam
Author(s): Jinyashashreeji
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir
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मणिपति चरित्रे ब्रह्मदत्त कथा
बंभदत्त कहा
'कहमेयं' तो मिंढो ! सुणसु कंपिल्लपुरवरे राया । नामेण बंमदत्तो बंभसुओ बारमो चक्की ॥ ६८ ॥ अस्सवहरिओ अडवीं पत्तो आगम्ममग्गलग्गेण । सेन्त्रेण निययनयरे नीओ वा उचियसमयंमि ॥ ६९ ॥ वासहरंमि पविट्ठो पुट्ठो देवीइ 'देव ! अडवीए । किं किंपि तए दिट्ठ सुयं व अच्यब्भूयं भूयं ॥ ७० ॥ सो भइ 'मए अडवीपत्तेण तलायतीरतरुमूले । आसिणेणं दिट्ठा मज्जितु सरोवरुतिन्ना ॥ ७१ ॥ एगा इत्थी नाइणि रुवविया गोर्णसाहिणा सद्धिं । वडकोट्टरागएणं सुरयसुहासेवणपसत्ता ॥ ७२ ॥
ब्रह्मदत्त कथा कथमेतद् तत: मेंढ ! शृणु कांपिल्यपुरवरे राजा । नाम्ना ब्रह्मदत्तो ब्रह्मसुतो द्वादशमश्चकी ॥ ६८ ॥ अश्वव्याहृतोऽवि प्राप्त, आगत्यमार्गलग्नेन । सैन्येन निजकनगरे नीतः, वा उचितसमये ॥ ६९ ॥
वासगृहे प्रविष्टः पृष्टो देव्या देव ! अटव्याम् । किं किमपि त्वया दृष्टंश्रुतं वा अत्यद्भूतं भूतम् ॥ ७० ॥ सो भणति मया अटविप्राप्तेन तडागतीरतरुमूले । आसीनेन दृष्टा मज्जनं कर्तुं सरोवरोत्तीर्णा ॥ ७१ ॥ एका स्त्री नागिनी रुपवती गोनसाहिना सार्धं । वटकोटरागतेन सुरतसुखासेवनप्रसक्ता ॥ ७२ ॥ ११. गोणसाहि - इशारहित सर्पनी भति.
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