Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 15
________________ ISEASEARSA एवं संबोध्य सचिवान् सपौरप्रकृतीनपि / कालक्षेपभयात्तण उदस्थादाऽऽसनान्नृपः // 154 // ततश्च-कालक्षेपो न कर्तव्यो धर्मस्य त्वरिता गतिः। इति प्रमाणयन् सोऽर्थ विधातुमुपचक्रमे // 155 // कथम् ? प्रहतपटुपटहपाटवप्रकटिताटोपतूरवपुरस्सरं कृतस्नान-विलेपना-ऽलङ्कारः शुचिरुचिनिचितेन्द्रनील-मरकत-कर्केतन-पद्मरागादिरत्नोपशोभिताम्, उपरिन्यस्तरुचिरमृगाधिपासनालंकृताम् , प्रचुरपुरुषसमुत्क्षेप्यां | महाशिविकामारुह्य प्रबोधयन् हा प्राणनाथ ! किमपराडमधुनाऽधन्यनामुना जनेन ? येनैवमशरणमपहाय सिद्धि वधूमभिलषसीति कृतकरुणकरारावमवरोधजनम् , मोचयन् नरकाकारान्धकारापूरितकारागृहगतं बन्धनाद् बसन्दिवृन्दम् , दापयन् प्रचुरतरमणि-कनकमर्थिसार्थाय, उद्घोषयन् प्रबलभयवशतरलतरतारकजन्तुसार्थस्याभयHदानम् , उत्पादयन् सकलनगरजनहृदयचमत्कृतिमतिशायिना चरितेन, अवलोकयन् रुचिरचीनांशुकादिवि विधवाविन्यासोपशोभिनं विपणिमार्गम् , निर्गतः सकलराजलोकान्तःपुरजनेनानुगम्यमानः सदेवीको नरपतिनगरात, संप्राप्तो नगर्या एव पूर्वोत्तरस्यां दिशि मनोरमाभिधानमुद्यानम् / तत्र च पूर्वागत एव भगवान् अनेकविनेयनिवहपरिवृतः श्रीदमघोषाभिधानः सूरिः समवमृत आस्ते स्म / / यस्य विजितजगतीतला तितिक्षा, अधरीकृतशिरिवरा स्थिरता, पराङ्मुखीकृतमकरवसतिर्गम्भीरता, अपहसितदिनकरकिरणनिकरा प्रतापसंपत्, अपहसितसुरसचिवधिषणाप्रकर्षा शेमुषी, निराकृतमनसिशयरूपा F%ERALALACEAER

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