Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ मणिपति चरित्रम् मुनिचन्द्रमपि प्राह तेषामेवाग्रतः स्फुटम् / नीत्यैतान्पालयन्पोरान् पाहि राज्यं निराकुलः // 4 // ततः किमेतदित्येवमूचिरे तत्र मन्त्रिणः / अज्ञाततदभिप्रायाः पौराः प्रकृतिभिः सह // 14 // हस्त्यश्वरथसत्पत्तिप्रधानपलसंकुलम् / अनुरक्तान्तःपुरं राज्यं जहासि किमु भूपते ! // 14 // नद्याज्ञा खण्डिताऽखण्डे मण्डले केनचित्तव / नाप्युदीर्णः परः कश्चिद् भयं यस्मात्प्रवर्तते / / 143 // अमः समीर राजेन्द्र / पालौनां प्रजा स्वयम् / वृद्धत्वे च विधातव्यं यथाभिप्रेतसाधनम् // 144 // " स्मराननाम्भोजः तत्मादि / अव त तान प्रति प्राज्ञः स्पष्टमस्पष्टकल्मषम् // 145 EGISHAPER अदृष्टपलिता एव राज्य ततत्यानुयतः / 55... कृतवन्ता नताशम् / / 147 / / परस्तु नास्त्युदीर्णस्ते यस्माद् भीतिरिदं च मो। यतः कदर्थयन्त्यस्मान् कषायरिपवः सदा // 148 // वृद्धत्वं यावदाशा स्यात्माणितव्ये यदि स्फुटम् / ततो युष्मदचःस्थोऽहं प्रतीक्षेऽपि निराकुलः // 149 // केवलं रोगसंपातजातचञ्चलतागुणे / प्रणिनां संशयस्तत्र यत एतदुदाहृतम् // 150 // अनित्यं यौवनं रूपं जीवितद्रव्यसंचयाः। अनित्याः प्रियसंवासा वरं सुचरितं तपः // 151 // किंच- एतच किंतु युष्माकमागतं कर्णगोचरं / कदाचिद्वचनं चारु प्रोच्यमानं विचक्षणः // 252 // धर्म बुधश्चिकीर्षुलट लिटं वा करोति स करोतेलटमेव युनक्ति सदा विपरीतमधर्मकार्येषु // 153 // // 6

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