Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 141
________________ स प्राहाचार्वकार्षीस्त्वं दयिते यददाः शिरः। स्वसुताय यतस्तेन मर्तव्यमधुना ननु / / 1388 // तदिदानीं तमाहत्य मह्यं देहि प्रिये द्रुतम् / सा प्राह कथमीक्षं विधास्ये पातकं वद // 1389 // सोऽवोचद्दयिते तेऽयं परमार्थो निवेद्यते / यद्यर्थित्वं मया किश्चित् ततोऽवश्यं हनिष्यसि // 1390 // ततोऽसावनुरक्तेद-मभाणीतं प्रति प्रिया / प्रतीक्षस्व लभे यावत काश्चिदेला तथाविधाम् // 1391 // स जगाद किमित्येवं कालक्षेपं विधित्ससि / यदिदानी न हंसि त्वं ततोऽहं तेऽस्मि न प्रियः // 1392 // 4 अथ तनिश्चयं दृष्ट्वा रागान्धा प्रत्यपद्यत / अधुनैव निहन्मीति हा सरागस्य पापता / 1393 // तन्नास्ति कुर्वते यत्रो रागान्धाः प्राणिनो बत / अन्यथा स्वसुतं हन्तु-मुद्यच्छेत्सा कथं तथा // 1394 // इदं च सर्वमश्रावि तया धाध्या कथश्चन / कुडथान्तरितया पुण्य-स्तस्य बालस्य निमेलैः // 1395 // श्रुत्वा चागात् ततः साश्रु लेखशाला ससंभ्रमा। तस्य सागरदत्तस्य रक्षार्थ पुत्रवत्सला // 1396 / / तं कटयां सनिधायाऽसौ ततो नीत्वा बहिः पुरः। सर्व निवेदयामास तस्मै मातुः समीहितम् // 1397 ततः स प्राह संत्रस्तः किमम्ब ! विदधाम्यहम् / क्व वा याम्यधुना ब्रूहि मा भैषीः साप्यभाषत // अन्यदेशमहं नेष्ये पुत्रक! त्वं स्थिरीभव / इत्युक्त्वा सा तमादाय ययौ चम्पाऽभिधां पुरीम् // 1399 // तस्या वहिर्महोद्याने यावद्विश्राम्यतः क्षणम् / तावद्यत्तत्र संपन्नं सांप्रतं तन्निबोधत // 1400 //

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