Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ एवमुक्ताऽपि कीरेण यावत् सा विरराम न / व्यवसायात्ताशात् स्वामि-भक्तिभावितमानसा // नाऽऽस्ते तूष्णीमियं पापा मौखर्यादिति कोपतः / गृहीत्वा निर्दयं तावद्वज्रयाऽग्नौ न्यधीयत // 1363 / एवं तां सारिकां हत्वा सावज्ञा बटुना सह / निःशङ्क लीलया सौख्यं बुभुजे सुरतोद्भवम् // 1364 // अन्यदा प्राविशत्तस्या गेहं साधुयुगं भ्रमत् / भिक्षार्थ शोधयत् प्रोच्चै-रीर्यापथमनाकुलम् // 1365 // तत्रैकः कृकवाकूनामासील्लक्षणवेदकः / श्रुतदृष्टया मुनिः किं हि न जैने ज्ञायते मते // 1366 // ततः पार्थान्यसौ वीक्ष्य दृष्टस्तद्गृहकुक्कुटः / मुनिलक्षणवित् प्राह द्वितीयर्षि प्रतीदृशम् // 1367 // आर्यास्य कृकवाकोर्यः कश्चिदत्स्यति मस्तकम् / सोऽवश्यं भविता भूप इति पश्यामि लक्षणम् // 1368 // इत्युक्त्वोपात्तभिक्षौ तौ गृहान्निर्ययतुतम् / लब्धभिक्षस्य साधोहि न गृहस्थगृहे स्थितिः // 1369 // तच्च दैववशात् साधो-र्वचस्तेन बिजन्मना / कुड्यव्यवहितेनेष-दश्रावि श्रमणाप्रियम् / / 1370 // मुत्कलेन मुखेनाहो नात एव महात्मभिः / वक्तव्यमीशं श्रुत्वा पापं पापकवर्द्धनम् // 1371 // ततच बटुना तेन वज्रा प्रौच्यत सत्वरम् / प्रियेऽस्य कुक्कुटस्याध मह्यं मांसं ध्यतीर्यताम् // 1372 // सा प्राह पिशितेनाऽस्य किं निन्येन तव प्रिय ! / अन्यचार्वाऽऽहरिष्यामि मांसं शूकरसंभवम् // 137 // बटुराह न मेऽन्येन मांसेनाद्य प्रयोजनम् / अवश्यं भक्षणीयोऽयं कृकवाकुर्मया प्रिये ! // 1374 // ACANCOME आर्यास्य कृकवाकोर्यः कश्चिदत्स्यावतम् / लब्धभिक्षस्य साधो श्रमणाप्रियम् // 1 %Ata

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