Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ -% मणिपति चरित्र ॥६८॥मा कय प्रत्यहं पश्चिमान्तेन स बटुस्तद्गृहं विशन् / शकते स्माऽधिकं को हि निश्शङ्कः स्यादकार्यकृत् 1 // ततोऽसौ सारिका नित्यं विशन्तं वीक्ष्य तं बटुम् / मौखर्याद्वारटीत्येतत् स्वामिभक्ततया मुहः 1350 // अपि च- कोऽयं प्रदोषवेलाया-मनार्यस्तातमन्दिरम् / वाटी प्रमोटयनिर्भी-विंशत्यस्मासु सत्स्वपि // 1351 // दिवापि परगेहेषु प्रवेशः कीदृशो वद / भनभावे प्रदोषे तु निषिद्धः सर्वथैव हि // 1352 // शुकोऽवोचद्विजानानो मौखर्यस्य विरूपताम् / सारिके ! मौनमालम्ब्य पीय शीताम्बु निर्भयः // 1353 // याऽम्बाया वल्लभो भद्रे ! जनोऽस्माकमप्यतः / किमेवमारटन्ती त्वं मुधा घातयसि स्वकाम् // 1354 // सारिकाऽऽहाकृतज्ञोऽसि तुण्डिक त्वं सुनिश्चितम् / य एवं तातगेहेऽत्रा-कार्यमीगुपेक्षसे // 1355 // श्वाऽपि यस्य गृहे पिण्डों भक्षयत्यतिनिन्दितः। प्राणैरपि निशान्तं स तस्य रक्षति सन्ततम् // 1356 // त्वां तु पुत्रसमं तातो योऽपश्यत् तस्य वेश्मनि / पश्यत्रीशकार्याणि कथं तिष्ठसि पापक ! // 1357 // शुको जगाद मुग्धेऽहं जाने सर्व यथोचितम् / केवलं काल-देशादि पर्यालोच्य निवारये // 1358 // इयमत्र विटे रक्ता पापे ईदृक्षभाषिणीम् / हनिष्यति परं वज्रा मोटयित्वा कृकाटिकाम् // 1359 // तातस्तु दूरवर्ती ते किं करिष्यति ? मुग्धिके ! / सर्पः शिरसि वैद्यस्तु योजनानां शतात् परः // 1360 // अब्रवीत् सारिका कीर ! किमेवं भाषसे ननु / अकालेऽपि वरं मृत्यु-न शक्यं द्रष्टुमीदृशम् // 136 // REFRACHA SAREERESAKESERECASS

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