Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 147
________________ %A 5 % % त्सवान, आकर्णय संसारसागरतरणप्रत्यलं भगवन्मुखविनिर्गतं धर्मशास्त्रम् / किं वहना कृतेन येन सरवानां चित्तपीडा मनागपि / जायते तन कर्तव्य-मिदं तत्त्वं निरूप्यताम् // 1454 // एतत्कुर्वनवश्यं भो-स्त्यक्ताऽन्यसमयाश्रयः / प्राप्स्यस्यप्राप्तपूर्वत्वं मोक्ष्यराज्यमतोऽधिकम् // 1455 // तच्छुत्वा प्राह भूपालो यद्येवं तात संसृतेः। उत्तितारयिषुः सत्यं ततोऽत्र स्थातुमर्हति // 1456 // संपर्कायेन युष्माक-मचिरान् मम जायते / युष्मद्धर्मस्य सम्प्राप्ति-मोक्षराज्यस्य सिद्धये // 1457 // परोपकारशीलेन मुनिनाऽवाचि चेत्तव / कश्चित्सौम्योपकारः स्यात् ततः स्थास्नुरस्म्यहम् // 1458 // ततस्तदन्तिके धर्म समाकर्ण्य ससंमदः / श्रमणोपासको जज्ञे ज्ञातजीवादिवस्तुकः // 1459 // ततो राजानुवृत्यैव प्रोच्चैलोकोऽपि धार्मिकः तत्राऽभूदथवा सत्यं यथा रांजा तथा प्रजा // 1460 // प्रवृत्ता साधुलोकस्य तथाऽत्यर्थ महापुरि / दानाद्याः सत्कृतिमिथ्या-दृष्टीना दाहकारिणी // 1461 // ततः प्रवचनस्योच्चै-रुमतिं वीक्ष्य ताशीम् / प्रद्विष्टा ब्राह्मणा बाद प्रजजल्पुः परस्परम् // 1462 // कर्य छायाविघातः स्या-देतेषां भोः! तपस्विनाम् / विरक्तो येन लोकोऽयं न पूजा विधात्यलम् // तत्रैकेन महाबुद्धि-धारिणोक्तं द्विजन्मना / अहो / लब्धो मयोपायो यः कुर्यात् साधुलाउछनम् // रुक्तं कीदृशः सौम्य !स प्राह श्रूयतां स्फुटम् / काचिदाहयतां योषिद् गभिण्यत्र प्रयोजने // 1465 // % %- %Ea

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