Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ C मणिपति // 74 // A5% अथ कारितमस्माभि-रिदं मोहात्तथापि हि / क्षमस्वेति भणित्वा ते नेमुः शापभयात् क्रमौ // 1492 // पादयोः पतिता भूयो बभणुः शरणाऽऽगतान् / मुनेऽस्मान् रक्ष दानेन जीवितव्यस्य संप्रति // 1493 // ततस्तान तादृशान् दीना-लपतो वीक्ष्य साधुना / कोपोऽग्निरूपः संजहे साधवो पल्पमन्यवः // 1494 // काष्ठमु ततः प्रशान्तकोपं तं दृष्ट्वा साधुं महीपतिः / ब्राह्मणान् प्रत्यदोऽवोचत् कोपारक्तेक्षणस्तराम् // 1495 // कथा. भो ! ममैतावतीं वारा-मियं बुडिरभूबिजाः। शिरांसि कर्तयिष्यामि भवतां नन्वहं रुषा॥ 1496 // तदिदानीमृर्षि शान्तं युष्माँचालोक्य मन्मनः / व्यरंसीद् घातकं भद्रा-स्तथापि श्रूयतामिदम् // 1497 // युष्मान् पापमतीन् द्रष्टुं न शक्नोमि यतस्ततः। विषयान्मे झटित्येव निर्यात सकुटुम्बकाः // 1498 // इत्युक्त्वा भूमुजा विप्रा लक्षाद्दीनमानसाः। सद्यो निर्घाटिता देशात् पापं हि फलति क्षणात् // ततो लोकस्तदाऽऽलोक्य माहात्म्यं तादृशं मुनेः / स्थिरोऽभूदर्हता धर्मे विरक्तः शेषधर्मतः // 1500 // महर्षिरपि तां कृत्वा शासनस्योबर्ति तथा / विजहार स्वार्थसिद्ध्यर्थ शाटयन् कर्मवन्धनम् // 1501 // इति काष्ठमुनिकया। तस्कुश्चिक ! यथा तत्र मुनो रुष्टे गता क्षयम् / सा पापा स्त्री तथा साऽपि म्रियतां योऽहत्तव // 1502 // एवं मणिपतेस्तस्य ब्रुवाणस्य हृषीकतः। धूमो निर्यातुमारेभे दग्धुं तं कुचिकाऽङ्गगजम् // 1503 // // 74 FASCEAECARE

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