Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 143
________________ इत्यनेकविकल्पोऽसौ गृहमध्ये समाविशत् / तत्र चाऽऽलोक्य तो कान्ता पूर्वमेवेदमब्रवीत् // 1414 // वज्र! सागरदत्तः क्व क्व वा धात्री क्व कुक्कुटः। सारिका वा क्व शेषश्च जनः क्वास्ते निवेद्यताम्॥ वज्रा तु तदभावेन विलक्षा नोत्तरं ददौ / तस्मै पत्येऽथवा दोषी न शक्नोति हि भाषितुम् // 1416 // ततः प्रतिवचस्तस्या-मददत्यामसौ वणिग् / बभाषे तं शुकं भद्र ! त्वमप्याख्यासि नाधुना // 1417 // सा पुनः पृच्छयमानं त-मङ्गुल्यग्रेण कीरकम् / संज्ञयामास भीत्यर्थ मोटयन्ती निजांशुकम् // 1418 // बुद्ध्याऽनया यथा पाप ! वसनं मोटयाम्यहम् / तथा कृकाटिका तेऽपि यद्याख्यास्यत्र किश्चन // 1419 // शुकोऽबोचत्ततस्तत्र स्वामिनि प्रश्नयत्यदः / त्वं ब्रूषे कथ्यतां कीर ! वृत्तान्त इति भूरिशः . // 1420 // एषा तु स्वैरिणी पश्य भेषयत्येवमीश्वर ! / ईदृक्षे संकटे तिष्ठन् किं करोग्यधुना वद ? // 1421 // ततः काष्ठः समुत्थाय मा वराकं वधीदियम् / रोषात् पापेति संभ्रान्तः पञ्जरोद्घाटनं व्यधात् // 1422 // निर्गत्याथ शुकस्तस्मा-दारुह्य च लतां तरोः। तस्मै वृत्तान्तमाख्यातुं निर्भयोऽदोवचोऽवदत् // 1523 // स्वामिस्त्वय्येवमापृष्ठे पितृकल्पेन सांप्रतम् / यद्याख्यामि न संदभावं कृतघ्नः स्यामहं ततः // 1424 // अतः शृण्वत्र विप्रोऽस्ति बनायास्तं पति वदेत् / यः सोऽवश्यं नियेताऽशु-यथाऽसौ सारिका विभो?॥ तयं तात ! सद्भाषो ब्राह्मणाऽऽसक्तयाऽनया / कुक्कुटः सारिका चोच्च दन्ती मारिता रुषा॥

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