Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ मणिपति फ चरित्रम् रफर तस्यां पुर्यां महिनाथ-रतस्मिन्नयसुतो मृतः / राज्ययोग्यं ततोऽन्वेष्टुं वरश्चाश्वोऽधिवासितः // 1401 // स लोकैरन्वितो वय-रितश्चेतश्च संभ्रमन् / तं प्रदेशमभीयाय यत्राऽऽस्ते स वणिक्सुतः // 1402 // अथ तस्याग्रतः स्थित्वा हेषारवपुरस्सरम् / पृष्ट स्वमर्पयामास योग्योऽयमिति बुद्धिमान् // 1403 // 18काष्ठमुनिअर्पयन्तं ततः पृष्ठं वीक्ष्याश्वं सचिवैरहो / राज्ययोग्योऽयमित्यन्तः स कुमारः प्रवेशितः // 1404 // कथा. ततोऽतिविभवेनाऽसौ सत्पौरर्वरमन्त्रिभिः। राज्ये संस्थापितः किं वा पुण्यानामप्यसंभवि // 1405 // धाच्या सार्धमसौ प्राप्त इति लोकविवेकिभिः / धात्रीवाहन ईदृक्षं चक्र नामास्य सार्थकम् // 1406 // ततः स कुरुते राज्यं वज्रा तु बटुना सह / आसक्ता द्रविणं सर्व वुभुजे तत्र वेश्मनि // 1407 // दास्यादिपरिजनोऽप्युच्चैः प्रतिजागरणाहते / ननाश नाथवा कश्चि-देवमेवावतिष्ठते // 1408 // गृहं च तदभूल्लेपा-धभावादपसंस्कृति / दृष्टरुद्वेगकृद् भूते-रिवोद्वासितमुच्चकैः // 14.9 // अन्यदाऽसौ वणिक्काष्ठो दिग्यात्रातः समाययौ / महालाभतया हृष्टो नगरं स्वं धियाऽनया // 1410 // धनमादाय यास्यामि निज वेश्माहमनसा / कान्तया सहितस्तत्र भोक्ष्ये भोगाँस्ततोऽनिशम् // 1411 // यावत्तदात्मगेहं स तादृशं शटिताऽऽकृतिम् / ददर्श दर्शनीयत्व-रहितं तत्र सर्वतः // 1412 // // 7 // तं दृष्ट्वाऽचिन्तयत्काष्टः प्रविशन्नेव तद्गृहम् / सशङ्कः किन्विदं शून्य-मुत मद्गृहमेव न // 1413 // PESTISSUCC5

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