Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ तयोवैषयिकं शर्म प्रीत्या भुञानयोरभूत् / पुत्रः सागरदत्ताऽऽख्यः प्राणेभ्योप्यतिवल्लभः // 1337 // / ततोऽसौ लाल्यमानोऽयं धाच्या मातृसमानया / ववृधेऽनर्घ्यरत्नाऽऽख्या-ऽलङ्कारकृतभूषणः / / 1338 // किं च- तस्याऽऽसीद्वणिजो गेहे प्रर्वाऽपरविचारकः / धर्मा-ऽर्थ-कामशाम्याग पाठकस्तुमिमा एकः // 1339 // d या सामना रिला वाचालतागुणोपेता चतुरा सर्वकर्यमु॥२॥ जी. कुटस्तत्रा-ऽजेयो यु मुदती लक्षणोपेतो दृश्यमानो मनोहरः // 1341 // एतत्पक्षित्रयं तस्य काष्टस्याऽत्यन्यवल्लभम् / तस्थौ यथेप्सिताहारै-ाल्यमानं महासुखम् // 1342 // अन्यदा स वणिग् देश-यात्रा कर्तुमनाः प्रियाम् / वज्रां प्रत्यवदत् स्नेहात् पुत्रादिविषये ह्यदः॥ भद्रे ! न ज्ञायते यात्रा कियता कालेन सिध्यति / अतः शृण्वहितीभूय मामकं वचनं क्षण :153 // रक्षणीयं प्रिये ! शीलं पुत्रो धात्री धनं तथा / एतत्पक्षित्रयं चेष्टं पालयत्या पुरा यथा // 1344 // इत्येवं शिक्षयित्वा तां प्रियां काष्ठवणिग्गतः / आत्तभाण्टोरं देशं कृतमङ्गलकौतुकः // 1345 // गतेऽथ सा निजे पत्यौ तत्र वज्रा मनोभुकाध्यमाना विसस्मार तत्सर्वमुपदेशनम् // 1346 / / ततश्च बहुना सार्धं प्रातिवेश्मिकसूनुना / अकार्य कर्तुमारेभे विस्मृतस्वान्वयस्थितिः // 1347 // ततस्तेन सहाऽऽसक्ता सातत्याज समस्तकम् / गृहन्यापारमन्यत्रचित्तेऽन्यत्र मतिः कुतः?॥१३४८॥ A7-%EO

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