Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ मणिपति // 59 // गच्याच पुरस्तेना-ऽदर्शितद्राजकुण्डलम् / योतयद्युतिजालेना-नयरत्नरुचा दिशः // 1192 // ततोऽसौ तं समालोक्य चक्षुर्विषमिवोरगम् / शीघ्रं प्रतिमिवृत्यैष प्रतस्येऽन्येन वमना // 1193 / / दृष्टो निवर्तमानोऽसौ तेनाऽऽरक्षकपाप्मना / दैवयोगेन यद्भाव्यं तस्य-नाशो भवेमहि // 1194 // किमार्थ शीघ्रमेवाज्यं निवृत्त इति चिन्तयन् / तं प्रदेशं जगामाऽऽसौ नगराऽऽक्षको द्रुतम् // 1195 // तत्र तत्कुण्डलं दृष्ट्वा जहर्षाऽचिन्तयच सः। अहो !! लब्धं मया छिद्रं नागदत्तस्य मृत्यवे // 1196 किलैष पर्वदिवसे शून्यदेवकुलादिषु / ध्यानमध्यास्त इत्येवं श्रूयते लोकवादतः // 1197 // अयं हि कुण्डलनासाद-न्यमार्गेण संप्रति / गत्वा क्व स्थास्यति ध्याने मृगये सुतरामिति // 1198 // ततस्तस्कुण्डलं सात्वा जगामाऽनुपदं द्रुतम् / उद्यानं नागदत्तोऽगाद् ध्यानार्थ यत्र निर्भयः // 1199 / / तं दृष्ट्वा किं नु इन्येनं ? खड्गेनाऽत्रैव संस्थितम् / किं वा नु ? कुण्डलाऽऽदाना-ऽपवादमधिरोपये // येन भूपतिरेवाऽमुं स्वामिद्रोहविधायिना / दोषेण सनिकारं द्राग् व्यापादयति पीडया // 1201 // इति संचिन्तयस्तस्य ग्रीवायां राजकुण्डलम् / तद् बबन्ध स पापात्मा नगराऽऽरक्षको रुषा // 1282 // पुंभिश्च ग्राहयित्या तु पश्चाद् बडभुजदयम् / पुरी प्रावेशयभाग-दत्ताऽभिख्यं कुमारकम् // 1203 // प्रातनिवेदितो राज्ञे कण्ठाऽऽलम्बितकुण्डलः / ब्रुवता देवदेवस्य द्रोहमेष न्यधादिति // 1204 // RI

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