Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 124
________________ मणिपति नागदत्तोऽब्रवीत् स्वामिन् ! येनेदृक्षं व्यधीयत / तस्मै चेदभयं दत्से ततोऽहं कथयाम्यदः // 1244 // राहवमस्त्विति प्रोक्ते ततोऽसौ कुण्डलेक्षणाद् / आरभ्य कथयाशके यथावृत्तं मृपाऽप्रतः // 1245 // अथाऽऽरक्षस्त्वसौ पापः सर्वमुद्दाल्य संपदो / अग्रतश्च पृष्ठतश्चा-शु राज्ञा निर्विषयीकृतः // 1246 // 3 नागदत्तेन ते प्राणा रक्षिताः पाप ! संप्रति / तेन त्वं न इतोऽसीति जल्पताऽस्थानमण्डपे // 1247 // ततोऽसौ नागदत्तोऽगाद् वीक्षमाणः समन्ततो। जनैहर्षायुगभिण्या शाऽऽत्मीयनिकेतनम् // 1248 // तत्राभिनन्दितोऽत्यर्थ मात्रा पित्रा तथाऽपरः। बान्धवैर्मित्रवगैश्च प्रियप्रश्नाऽऽगतैमुदा // 1249 // 5 तत्रागात्प्रियमित्रोऽपि सार्थवाहः ससंमदः / वाती चाऽकथयत्सा देवताऽऽराधनादिकाम् // 1250 // तां श्रुत्वा हृष्टवक्त्रेण नागदत्तेन भाषितम् / तात ! नागवसुः कन्या प्रतिपमा मयाऽधुना // 1251 // उत्तिष्ठ तात लग्नस्य शीघ्रं शुद्धिं विधापय / इत्युक्त्वा नागदत्तस्तं व्यसृजनिजवेश्मनि // 1252 / / श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्तीति स्मरन् वचः। विवाहं कारयामास प्रियमित्रोऽथ सहिने // 1253 // 12 ततो वृत्ते महास्फीत्या सत्पाणिग्रहणे बभौ / नागवस्वा युग नाग-दत्तो विष्णुरिव श्रिया // 1254 // अनिन्यान् बुभुजे चासो विषयाँश्वारूँस्तया सह / देवराज इवेन्द्राण्या सद्भावेनानुरक्तया // 1255 // कदाचिडममभ्यस्यन् कदाचिचार्थमर्जयन् / कदाचिद्विषयान् कामं भुञ्जानोऽतिमनोहरान् // 1256 // कि TEAS

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