Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ HIEWA रोषेणाऽन्धीकृता सद्यो मुशलेन जघान तम् / रटन्तं नकुलीपुत्रं निर्णनाऽतरात्मना // 1286 // पणिपति चरित्रम्. संसूर्य मुशलान्तेन हा !! हताऽस्मीति सत्वरम् / क्रोशन्त्यथ ययौ पुत्र-मभिव्याकुलमानसा // // ६"tiuiकाय भावपछिकाया SA कृतम् / ददर्शाऽक्षतदेहं च चलच्चूडकं सुतम् // 1288 // ततः पश्य माया .. या नकलमित्येवं सा शुशोच मुहर्मुहुः // 1089 // न इदं ज्ञात्वा न भो श्रेष्टिननालोच्य त्वमहास, भयितुं पश्चा-छोरि गायन्दशा बहु // 1290 // इति चारभटीकथा - गोपकथा. अथाऽरेभे वणिक तस्मा-दभिप्रायादनुत्तरम् / उदात्तमुत्तरं दातुं तस्मै प्रशमशालिन // 12.1 / / भगवन् ! हस्तिना येन कृतोऽसौ वल्लवो धनी / तस्यैव शत्रुतां यातो यथा तद्वत्त्वमीक्ष्यसे / 1292 // यतिर्जगाद कः श्रेष्ठिन्-नयं दृष्टान्त्यते त्वया 1 पुरुषो यत्समानस्मान् विद्वानविसमीक्षसे // 1293 श्रमणोपासकः प्राह लोभं हित्वा निशम्यताम् / स्वामिस्तथा यथा दृश्य-मह्यमर्पयसेऽधुना // 1294 // एकस्यामतिगुपिलगुरुतरतरुविसरगहनधरणीधरदुर्गमार्गायां गगनवीथ्यामिव सचित्रायां रोहिणीसहितायां च, क्षीरोदजलतताविव सविद्रुमाङ्करायां पुण्डरीकशतसंकुलायां च, बारवत्यामिव हरिणाऽधि-12 ष्ठितायां सुवर्णशालोपशोभितायां च, महाऽटव्यामेकस्यां महद् मतङ्गजयूथं स्वेच्छाविहारितयाऽपहसिताऽ-8/ RECESS ता।६४॥

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