Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 129
________________ 55555755-- सा पुनः प्रत्यहं तस्या-श्वारभट्या गृहाङ्गणम् / आगत्याऽऽगत्य चाटूनि चकार पुरतः स्थिता॥ 1273 // अन्यदा सुषुवाते ते एकदैव व्यथां विना / कुमार-नकुलौ द्रष्टु-दृष्टेरानन्दकारिणौ // 1274 // ततश्चारु(र)भटी दृष्ट्वा तं नकुल्यास्तनद्भवं / क्रीडार्थ मत्सुतस्याऽयं स्यादितीदृशया धिया // 1275 // स्वसुतायेव दुग्धादि तस्मायपि ददौ मुदा / प्रयोजनाहते नाहो !! कश्चिद्दाने प्रवर्तते // 1276 // एवं दुग्धादिपानेन कुमार-नकुलो मुदा / ववृधाते निजाऽगारपाङ्गणोदररिखिशो // 1277 / / अन्यस्मिन् वासरे पुत्रं न्यस्य पर्यंतिकातले / असौ चारुभटी गेहात् खण्डनार्थ बहिर्ययो / 1278 / / प्रस्तावेऽत्र समागत्य कुतश्चिद् भुजगो मतिम् / आरोढुं मश्चिका चक्रे तद्बालग्रसनेच्छया // 1279 // दृष्टश्च नकुलेनाऽसा-वभियुक्तेन मञ्चिकाम् / आरोहनथवोद्युक्तो हितार्थे किं न पश्यति ? // 1280 // ततो रोषवशात्तेन नकुलेनाऽसौ सरिसृपः / तुण्डेन खण्डशश्चक्रे विक्रान्तः किं न साधयेत् / / 1281 // मयाऽयं रक्षितो बाल इति चाटुविधित्सया / चारभट्यन्तिकं हृष्टो जगाम नकुलः पुनः // 1282 / / दृष्टस्तया भुजङ्गाऽमृगालिप्ततुण्डः पुरःस्थितः / खण्डनाऽऽकुलया कुर्वन् चाटूनि विविधान्यसौ // ततो दृष्ट्वा हतोऽनेन मत्सुतस्तेन गुण्डितम् / तुण्डमस्याऽसृजा साऽन्त-श्चारभन्याकुलाऽभवत् // अनालोच्य च तत्त्वार्थ पुत्रस्नेहविमोहिता / हा पाप ! किं त्वयेदृक्षं व्यधायीत्यारटन्त्यलम् // 1285 // SAESAॐॐ ततश्च

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