Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ ॐॐॐॐॐकी स कालं गमयामास बहुमेवं ससंमदः / नागवस्वा समेतात्मा एपौराहामलायम् // 1257 // स निशान्तस्थितोऽन्येधु-रकस्माद्भीतमानसः / चिन्तयामास किन्त्वेव-महमासे निराकुलः // 1258 // यद्येवमेव संसक्तो विषयेषु निजायुषः / क्षयान्तं प्रयास्यामि ततः किं शरणं मम // 1259 // नार्थात्तावत्परित्राणं न मातुर्जनकामवा / नातिवल्लभकान्ताया धर्म हित्वा जिनोदितम् // 1260 // अन्यजन्मन्यपि प्राज्य-मकार्ष धर्ममादरात् / तेनेह जन्मनि श्रीमत्-कुले जातो महीयसि / / 1261 // इत्यादि बहु संचिन्त्य परमार्थ निवेद्य च / स्वप्रियायै महर्याऽसौ निश्चक्राम प्रियायुतः // 1262 / / ततोऽनुपाल्य सद्धर्म नागदत्तमुनिश्चिरम् / देवलोकं ययौ धीमान् साध्वी नागवसुस्तथा // 1263 // भो ! आयुष्मन्न गृहन्ति परस्वं श्रावका अपि / तपस्विनस्तु लान्तीति कः अडत्ते सकर्णकः // 1264 // 4 तज्जहाहीदृशं ग्राह-मसंभाव्यं तपस्विषु / येनाऽन्यत्र वयं यामो विहर्तु समयो यतः॥१२६५ / / . इति नागदत्तकथानम् // बभाषेच वणिग्भिक्षो! यादृशाः स्युस्तपस्विनः। तादृशानप्यहं जाने श्रावकाँश्चात्र शासने // 1266 // त्वं तु तस्य कृतघ्नत्वात् समानो वनवासिनः / न त्वहं तेन नैतस्मा-निवर्तेऽध्यवसायतः / / 1267 // इदं हि किल लौकिककथासु श्रूयते- यथा कश्चिन् निजकुटुम्बभरणव्यापाराकुलितमानसो वर्ध- M

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164