Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 12
________________ मणिपति तत्रासौ शोकसंतापतापिताङ्गीं प्रियां प्रभुः / बोधयन् विविधैर्धर्मकथासंबन्धभाषणः // 112 // आत्मानं च विचित्राभिर्भावनाभिविभावयन् / जागरित्वा निशां वहीं भेजे निद्रामुखं मनाकरि१३॥ अथ सिडिवघूरक्तं ज्ञात्वेवासूयया नृपम् / रजनीनायिका तूर्ण विलिल्ये म्लानतारका // 114 // अहो ! लोका इदं याति जीवितं रजनीच्छलात् / कुरुध्वं धर्ममित्येवं शंखं पूत्कृतवानिव // 115 // अथ गम्भीरनि?षा बन्दिनः पेटुरुचकैः / प्रभातकालमाख्यातुं वृत्तयुग्मं महीभुजे // 11 // व्रजति रजमिरेषा कामिनः कामिनीभिः / सह सपदि वियोगं कारयन्ति समन्तात् // 117 // नहि मलिनतमात्मा कस्यचित्प्रीतिकर्ता / भवति जगति सत्यं सत्यवादिनवेहि // 128 // तिमिररिपुसमूह नाशयित्वा समस्तम् / किरणशितशराप्रैः दीप्तिमद्भिः क्रमेण // 119 // विद्धदखिललोकं धर्मकर्मानुरक्तम् / त्वमिव दिनकरोऽयं देव ! पश्याविरस्ति // 12 // इत्याकर्ण्य स्वनं तेषां पठतां भूपतिब्रुवन् / 'नमोऽर्हद्भ्य' इति प्रोच्चैरुदतिष्ठत्कान्तया सह // 121 // ततः कृत्वामुखाम्भोजक्षालनापूर्वकं विधिम् / विवेश वेश्म जैनेन्द्रं कृतकौतुकमङ्गलः // 121 / / नत्र श्रीमजिनेन्द्रस्य प्रतिमाया नरेश्वरः / नि (न्य)पतत्पादयोर्भक्त्या शक्रस्तवपुरस्सरम् // 123 // नतः कर्परसंमिश्रचन्दनादिविलेपनैः / समालभ्य मुदा पुष्पैः प्रत्यग्रैः पर्यपूपुजत् // 124 // भूयः सुरभिगन्धाढ्यं धृपमुद्ग्राह्य भावतः / स्तुत्वा च स्तुतिभिस्तुत्यं प्रणिधानं शुद्धमाचरत् // 125 // 5 //

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