Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ जिनभवन प्रवेश. अथैतस्मिन् क्षणे राजा समुत्थाय गवाक्षतः। सार्धे पराय॑या देव्या दीनवक्वारविन्दया // 99 // प्राविशन्मणिमयानेक-प्रदीपोयोतितान्तरं / महामन्दिरमध्यस्थं देवमन्दिरमुत्तमम् // 10 // ततो विनिर्जिताशेषजगद्रूपप्रकाशिताम् / प्रणम्य प्रतिमा प्रीत्या तुष्टुवे पारमेश्वरीम् // 1.1 // __ स्तुति कथम् ? नत्तस्ते चरणानीश ! शिशिरसांसारतेजसः। संततत्रिदशाधीशशिरःस्रस्तस्रगचितान् // 102 // स नाथ ! नाथते नान्यं दीनचेताः कदाचन / यस्ते शासनसद्रत्नं दधाति हृदयालये // 13 // कथं यास्यन्ति ते शान्तं देशं शान्तेश ! नाश्रिता / यैस्तेऽदिशाखिनश्छाया संसारारण्यगैरिह // 14 // संसारे सारताहीने संसारी यदायते / तज्जाने निश्चितं नाज्ञा चक्रे शक्रेश ! तेऽन्यदा // 105 // यदि स्यात्सा कृता सत्यं तत्कि तिष्ठेदिहार्दितः / नह्यासाद्य नदी सक्तां कश्चिदास्ने तृडाहतः॥१०॥ असदृष्टिग्रहग्रस्ता यदा चादीनरेक्षया (1) / रक्ष नः शरणायातानिदानी नन्दिदायकः / / 107 // नास्ति नः शरणं किञ्चिदन्यदत्र दयोदधे ! तेन ते तरसा लीनाः कान्ते चरणनीजरजे // 18 // किं तेनाननरन्ध्रण कीर्तनाय न ते यतः / निर्गच्छन्ति गिरः सारा: सरसाः कलिलच्छिदः // 109 // इत्योष्ठयुग्मसंबन्धध्वंसिभिर्ध्वस्तसाध्वसः / वचनैर्भूपतिः स्तुत्वा पञ्चाङ्गप्रणतिं गतः // 110 // ततो निर्गत्य राजेन्द्रो देवमन्दिरमध्यतः / प्राविशत्पोषधागारं महादेव्या समन्वितः // 111 //

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