Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala
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________________ पणिपति चरित्र सायंका वर्णनम् // 4 // अवादीद् भूपतिः सत्यं यद्यस्ति मयि रक्तता / ततश्च यन्मया कार्य तत्कार्य दयिते त्वया // 86 // यत्करोत्यग्रतः प्रेयाँस्तदेव कुरुते यदि / द्वितीयोऽपि ततः प्रेम प्रधानं वय॑ते बुधैः // 87 // यचाभाणि मरिष्येऽहं त्वां विना तन्न कौतुकम् / नहि प्रेम्णि परां कोटीं प्राप्ते किंचित्सुदुष्करम् // 8 // केवलं विपुलप्रज्ञैः कार्याकार्यविचारिभिः। यत्परत्रेह च श्रेयस्तत्कार्य कार्यमादरात् // 89 // इति ब्रुवाणमास्ते स्म यावत्तन्मिथुनं शनैः / तावदस्तगिरि प्राप्तः सप्तसप्तिः परंतपः॥९० // दीर्घावलड्डमोद्भूतभूरिश्रम इवाध्वगः / सिस्नासुः प्रययौ सूर्यों दीनान्ते पश्चिमोदधिम् // 91 // प्रायशः सप्रतापोऽपि निष्प्रतापः प्रजायते / दोषागमे इतीवास्यस्तपनो निष्पभो भवेत् / / 92 // अथाभूनिष्पभा सन्ध्या वधूरिव धवात्यये / प्रलापं कुर्वती रावैः नीडगानां पतत्रिणाम् // 93 / / प्रेम्णा न पद्मवक्त्रश्रीः रिथत्वा किंचित्क्षणान्तरम् / सापि सन्ध्यावधूः शीघ्र भानुभारमन्वगात्॥१४॥ ततस्तस्मिन्नतिक्रान्ते भर्तकल्पे दिवाकरे / क्रोशतीवालीनां रावैः पद्मिनी नायिका शुचा / / 95 // यत्प्राण विसमभूत्स्वादु स्वादितं कान्तया सह / चक्रनाम्नस्तदेवाहो तदभावे विषायते // 15 // दोषाकरतया मन्ये भानोरिव महापदम् / द्रष्टुं पूर्वाचलं चन्द्रः प्रपेदेऽथ शनैः शनैः // 96 // लक्ष्मीनिर्गत्य पद्मभ्यो बन्धभीत्येव सत्वरम् / तदागाद् गगनं कोवाऽऽश्रयेत्सापायमाश्रयम् // 97 // श्रिया पध्र परित्यक्तं सदावासमपि क्षणाद् / यदा तदाऽन्यजन्तूनां चञ्चलेति न कौतुकम् // 98 //

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