Book Title: Manipati Rajarshi Charitam
Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt
Publisher: Hemchandra Granthmala

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Page 9
________________ किं तस्य जीवितव्येन किं वा राज्येन यः पुमान् / नोपालयितुमीशः स्यात्स्वकीयामपि संस्थितिम्॥७२॥४ अथवाऽद्यापि किं जातं येनैवं चिन्तयाम्यहम् / इदानीमपि मे युक्तं विधातुं धर्ममञ्जसा // 73 // यदेवानुष्टीयते श्रेष्ठमनुष्टानं महात्मभिः / श्रेयस्तदेव किं कश्चिदकालः किल लक्ष्यते // 74 // इति चिन्तापरं दृष्टवा स्मेरास्या भूपमालपत् / देवी जिहषि किं देव ! स्थविरत्वेन सांप्रतम् // 7 // बभाषे भूपतिर्भद्र ! वृद्धत्वे समुपस्थिते / न ब्रीडा महतां काचित्प्रत्युतासौ महोत्सवः // 76 // लज्जैषा महतामस्मिन्समये यन्न कुर्वते / सर्वानर्थसमर्थानां भोगानां त्यागंमुत्सुकाः // 77 // राज्ञी भूयोऽप्यविज्ञातराजचिन्ताशया जगौ / नर्मगर्भमिदं वाक्यं हास्यकारि महीपतेः // 78 / राजन् किमुपरोधेन ब्रवीप्येतन्मदग्रतः / सत्यं जिहेषि यद्येवं तत उद्घोष्यतामिदम् // 79 // यो नृपं स्थविरं कश्चिद् गणिप्यत्यत्र मानवः / स बुभूपुर्यमागारे तूर्ण प्राघूर्णकः परम् // 80 // भूपः श्रुत्वा वचस्तस्या विहस्यावोचदुचकैः / युक्तमेतदज्ञानानां प्रियं कर्तुं त्वयोदितम् // 81 // यस्तु वेत्ति जरामृत्युव्याधिव्याप्तमिदं जगत् / सततं तस्य यद् युक्तं तचिकीर्षामि भामिनि // 82 // किमर्थं बहुभिर्जल्पै परमार्थः कथ्यते तव / पुत्रं राज्ये निधायउचैर्ग्रहीष्ये व्रतमुत्तमम् // 83 // तत्समाकर्ण्य कर्णाभ्यां मुद्रेणेव ताडिता / मूर्छया विह्वलीभूयषभापे गद्गदं प्रिया // 84 // प्राणेश ! मादृशीं रक्तां परित्यज्य विधिमसि / व्रतं यदि ततो नूनं मरिप्येऽहं त्वया विना // 85 // ** 55555Mitti

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