Book Title: Manipati Rajarshi Charitam Author(s): Jambukavi, Bhagwandas Pt Publisher: Hemchandra Granthmala View full book textPage 8
________________ पणिपति चरित्रम् यतो नियुक्ताः सर्वत्र प्रणिधयोऽहर्निशं क्षिती। दशयोजनमानायां वातौं संपादयन्ति नः॥५८॥ मा चास्मचारचक्षुभ्यर्यों भवत्याश्चक्षुरुज्ज्वलम् / तेन देवि ! वितर्कोयं व्याकुलं मामचीकरत् // 59 // ततो हास्यवशोद्भूतकम्पकम्पोन्नतस्तनी / हस्तेन हस्तमास्फोट्य न्यगादि सा स्फुटाक्षरम् // 60 / / राजन् ! न मानुषाकारं दूतमावेदयाम्यहम् / नहि स्त्रीणामियं तृप्तिादृश्यास्तु विशेषतः // 61 // राज्ञोक्तं तर्हि किं ब्रूषे वचोऽस्मद्विप्रतारकम् / 'दृत आगत' ईदृक्ष लीलया लोललोचने // 62 // सा प्राह मूर्ध्नि ते दृष्टः केशः स्फटिकसंनिभः। धर्मदूततया ख्यातः समायातो निवेदितः।। 63 // मृपेणाभाणि किं भद्रे ! सत्यमेतत्त्वयोदितम् / देव्याह भवता दृष्टा कदाऽहं व्यर्थभाषिणी // 64 // उवाच भूपतिर्भद्र ! नर्मणा किं न भाष्यते / साऽब्रवीदीदृशं दृष्ट्वा भवन्तं नर्म कीदृशम् // 65 // राजा जगाद यद्यवं देवि ! दर्शय कीदृशः। धर्मदृत समायातः कुतूहलमलं मम // 66 // ततः सहासं तहव्या त्रोटयित्वा महीभुजे / दर्शितं(च) कराग्रेण पलितं लसदंशुकम् / / 67 // गृहीत्वा पाणिना राज्ञा सुचिरं तत्समीक्षितम् / निशाकरकराकारं रुचिरं चारुचक्षुषा // 68 // अहो प्रमत्तता येन विषयाशुचिकदमे / गर्तशकरवन्मग्नः कालो न ज्ञायते वजन् // 69 // न प्रायोऽस्मत्समो वंशे पुराऽऽसीदव भूपतिः। न पालिता यतोऽस्माभिर्निजयंशस्य संस्थितिः // 70 // पूर्व सर्वेपि भूपाला अदृष्टपलिताः किल / हित्वा राज्यश्रियं सर्वे साधुधर्म प्रपेदिरे / / 71 / / SEARCECAPARAN // 3 //Page Navigation
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