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अहिंसा-सूत्र
( १५ )
सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता इसीलिए निग्रन्थ (जैन मुनि) बोर प्राणि-वध का सर्वथा परित्याग करते हैं ।
(१६)
भय और वैर से निवृत्त साधकको, जीवन के प्रति मोह-ममता रखनेवाले सब प्राणियों को सर्वत्र अपनी ही आत्मा के समान जानकर उनकी कभी भी हिंसा न करनी चाहिए ।
(१७)
बुद्धिमान् मनुष्य छहों जीव-निकायों का सब प्रकार की युक्तियों से सम्यक्ज्ञान प्राप्त करे और 'सबी जीव दुःख से घबराते हैं 'ऐसा जानकर उन्हें दुःख न पहुँचाये ।
१५
(१८)
शानी होने का सार ही यह है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे । - इतना ही श्रहिंसा के सिद्धान्त का ज्ञान श्रेष्ट है । यही अहिंसाका विज्ञान है ।
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