Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 199
________________ १७८ महावीर-वाणी (३०७) णिक्किचणे मिक्खू सुलूहजीवी, जे गारवं होइ सलोगगामी । आजीवमेयं तु अबुज्झमाणे, पुणो पुणो विपरियासुवेति ॥ [सूत्रकृ० १, १३, गा• ११, १२ ] (३०८) पन्नामयं चेव तवोमयं च, णिनामए गोयमयं च भिक्खू । आजीविगै चेव चउत्थमाहु, से पंडिए उत्तमपोग्गले से ।। ( ३०६) एयाई मयाइ विगिंच धीरा ! ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा । ते सव्यगोत्तावगया महेसी, उ अगोत्तं च गतिं वयंति ॥ [सूत्रकृ० १, १३ गा० १५, १६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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