Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 197
________________ महावीर-वाणी (३०४) जे माहणे खत्तियजायए वा, तहुगापुत्ते तह लेच्छई वा । जे पव्वइए परदत्तभोई, गोत्ते ण जे थब्भति माणबद्ध ॥ [सूत्रकृ० १, अ० १३, १० ] (३:५) जे आवि अप्पं वसुमं ति मत्ता,. संखायवायं .अपरिक्ख कुज्जा । तवेण वाऽहं सहिउ त्ति मत्ता, अएणं जणं पस्सति बिंबभूयं ।। [सूत्रकृ० १, अ० १३,८] (३.६) न तस्स जाई व कुलं व ताणं, गएणत्थ विज्जाचरणं सुचिएणं । णिक्खम्म से सेवइऽगारिकम्म, ण से पारए होइ विमोयणाए ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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