Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 223
________________ [ १९२] शुद्ध बंध तत्व पुण्ण धर्म धुइण अशुद्ध छेयपवागं छेयपावगं गा० २८५ बंधं गा० २९० तत्त्व. गा० २८७ (अनुवाद) अजीवको भी यह अजीवको भी जाता है वह गा० २८८ (अनुवाद) सब्भिन्तरं बाहिर सन्भिन्तरबाहिरं गा० २९२, २९३ पुणं गा० २९१ धम्म गा० २९४ धुण गा० २९६ कम्म कम्म गा० २९९ नीच नं० ३०३ (सांचा) (चंचा) गा० ३०५ १७८ १६८ (पृष्ठांक) शब्दोंका शब्दोंके पृ० १७३ मोह दुक्ख काल घोर धारए क्षति मोहनीय रत वियाणइ श्रमणोचित मोक्षमार्ग होनेमें दुःख जीतने वाला सुखी वीर भोक्ता सया होता नै लोहो रूप जात है दुःखी स्वाधीन भविष्य लोक वत्तिणो मुणी लोए और परतंत्रता शरीर तपस्वी तत्व ऐसे अनेकानेक शब्द अस्पष्ट छपे है अतः सावधान होकर पढनेकी नम्र सूचना है। नीचे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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