Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 221
________________ अशुद्ध अरात्रि-भोजन- लाते! पमत्त पंचिन्दिया विइयं स्वादिष्ट लोहा परित्याग विणिअटेज १९.] शुद्ध अरात्रिभोजन- गा० ६४ (शीर्षक अनुवाद) लाते गा० ९४ (अनुवाद) पमत्ते गा० १०१ पंचिन्दियया गा० ११८ बिइयं गा० १२६ स्वादिष्ठ गा० १३४ (अनुवाद) लोहो गा० १४७ परित्याग गा० १५१ (अनुवाद) विणिअट्टेज गा० १६१ पुणरावि गा० १६३ सुव्वया गा० १६४ राजन् ! गा० १७५ (अनुवाद) पंडितंमन्य गा० १७७ (,) गा० १७९ (,) भयभ्रान्त गा० १८८ (अनुवाद) चिच्चा गा० १९६ उच्छंखल गा० १९२ (अनुवाद) गा० १९८ गा० १९९ पुणरवि सुवया राजन्, पंडितमन्य भयभ्रान्न चिच उच्छंखल पडिए पंडिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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