Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 195
________________ जातिमद-निवारण-सुतं [जैनसंघ में केवल जाति का कोई मूल्य नहीं, गुणों का है मूल्य प्रधान है, अत एव जातिमद अर्थात् 'मैं अमुक उच्च जाति में जन्मा हूँ' या 'अमुक उच्च कुलमें व गोत्र में जन्मा हूँ ऐसा कहकर जो मनुष्य अपनी जाति · का, कुल का व गोत्र का अभिमान करता है और इसी अभिमान के कारण दूसरों का अपमान करता है और दूसरों को नाचीज समझता है उसको मूर्ख, मूढ, अज्ञानी कह कर खूब फटकारा गया है और जातिमद, कुलमद,गोत्रमद,ज्ञानमद,तपमद तथा धनमद आदि अनेक प्रकार के मदों को सर्वथा त्याग करने को जैन शास्त्रों में बार-बार कहा गया है। इससे यह सुनिश्चित है कि जैनसंघ में या जैनप्रवचन में कोई भी मनुष्य जाति कुल व गोत्र के कारण नीचा-ऊँचा नहीं है अथवा तिरस्कार-पात्र नहीं है और अस्पृश्य भी नहीं है। अत: इस सूत्र का नाम अस्पृश्यता निवारण सूत्र भी रखें तो भी उचित ही है (३०३) एगमेगे खलु जीवे अईअद्धाए असई उचागोए, असई नीयागोए।' x x x . नो हीणे, नो अइरित्ते, इति संखाए के गोयावाई के मारणावाई ? कसि वा एगे गिज्झे ? तम्हा पंडिए नो हरिसे नों कुज्मे। भूएहिं जाण पडिलेह सायं समिए एयागुपस्सी । [अाचारांग सूत्र, द्वि० अध्ययन, उद्देशक तृ०, सूत्र १-२-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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