Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 202
________________ : २५ : क्षमापन - सूत्र ( ३१० ) धर्म में स्थिर बुद्धि होकर मैं सद्भावपूर्वक सब जीवों के पास अपने अपराधों की क्षमा माँगता हूँ और उनके सब अपराधों को मैं भी सद्भावपूर्वक क्षमा करता हूँ । ( ३११ ) मैं नतमस्तक होकर भगवत् श्रमण संघ के पास अपने अपराधों की क्षमा मांगता हूँ और उनको भी मैं क्षमा करता हूँ । ( ३१२ ) आचार्य, उपाध्याय, शिष्यगण और साधर्मी बन्धुओं तथा कुल और गण के प्रति मैंने जो क्रोधादियुक्त व्यवहार किया हो उसके लिये मन, वचन और काय से क्षमा माँगता हूँ । ( ३१३ ) मैं समस्त जीवां से क्षमा माँगता हूँ और सब क्षमा- दान दें। सर्व जीवों के साथ मेरी मैत्रीवृत्ति है; साथ मेरा वैर नहीं है । मैंने जो जो पाप मन बोले हैं और शरीर से किये Jain Education International (३१४) संकल्पित किये हैं, वाणी से जीव मुझे भी किसी के भी से हैं, वे मेरे सब पाप मिथ्या हो जायँ 1 --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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