Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 217
________________ [१८६ ] पद्यका अंक २४८ ५३ २२७ ६५ २२५ २०० १०७ २६६ २० पद्यका आदिवाक्य पद्यका अंक ! पद्यका आदिवाक्य रूवेसु जो १३५ | वोच्छिन्द रोइअनायपुत्त- २६९ सक्का सहे लद्रूण वि ११७, ११८, सद्दे रूवे य १२० सबंधयारलोहस्सेस सन्तिमे वत्तणालक्खणो स पुवमेवं वत्थगन्ध-- समयाए वरं मे २१४ समया सव्व'विगिंच - ९७ सम्मदिट्ठी वितहं पि ३१ समावयंता वित्तेण ताणं समिक्ख वित्तं पसवो १६५ समं च विभूसा इत्थिसं-- सयं तिवायए विभूसं . ५२ सयं समेच्च विरई अबंभ-- ३८ सरीरमाहु विवत्ती अविणी-- ८६ सल्लं कामा वेया अहीया न १६९ सवक्कसुद्धिं वेराई कुव्वइ . १९० । सव्वत्थुवहिणा २७१ २४९ १९८ ४५ १३ २८ २२१ १५२ २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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