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पण्डित-सूत्र
११७ (२०२) जो ममत्व-बुद्धि का परित्याग करता है, वह ममत्व का परित्याग करता है। वास्तव में वही संसार से सच्चा भय खाने वाला मुनि है, जिसे किसी भी प्रकार का ममत्व-भाव नहीं है ।
(२०३) जैसे कछुआ आपत्ति से बचने के लिये अपने अंगों को अपने शरीर में सिकोड़ लेता है, उसी प्रकार पंडितजन भी विषयों की ओर जातो हुई अपनी इन्द्रियाँ आध्यात्मिक ज्ञान से सिकोड़कर रखें।
(२८४) ___ जो मनुष्य प्रतिमास लाखों गायें दान में देता है, उसकी अपेक्षा कुछ भी न देने वाले का संयमाचरण श्रेष्ठ है।
(२०५) सब प्रकार के ज्ञान को निर्मल करने से, अज्ञान और मोह के त्यागने से, तथा राग और द्वेष का क्षय करने से एकांत सुखस्वरूप मोक्ष प्राप्त होता है ।
(२०६) सद्गुरु तथा अनुभवी बृद्धों को सेवा करना, मूखों के संसर्ग से दूर रहना, एकाग्र चित्त से सत् शास्त्रों का अभ्यास करना और उनके गम्भीर अर्थ का चिन्तन करना, और चित्त में धृतिरूप अटल शान्ति प्राप्त करना, यह नि:श्रेयस का मार्ग है ।
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