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लोकतत्त्व-सूत्र
( २४१ )
पांच समिति और तीन गुप्ति — इस प्रकार आठ प्रवचनमाताएं कहलाती हैं ।
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( २४२ )
ईर्ष्या, भाषा, एपणा, श्रादान-निक्षेप और उच्चार ये पाँच समितियाँ हैं । तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ये तीन गुप्तियाँ हैं । इस प्रकार दोनों मिलकर आठ प्रवचन - माताएँ है ।
( २४३ )
पाँच समितियाँ चारित्र की दया आदि प्रवृत्तियों में काम आती हैं और तीन गुप्तियां सब प्रकार के अशुभ व्यापारों से निवृत्त हेने में सहायक होती हैं ।
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( २४४ )
जो विद्वान् मुनि उक्त चाउ प्रवचन-माताओं का अच्छी तरह आचरण करता है, वह शीघ्र ही अखिल संसार से सदा के लिए, मुक्त हो जाता है ।
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