Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 172
________________ ब्राह्मण-सूत्र (२५५) जो आनेवाले स्नेहीजनों में आसक्ति नहीं रखता, जो जाता हुआ शोक नहीं करता, जो अार्य-वचनों में सदा आनन्द पाता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (२५६) जो अग्नि में डालकर शुद्ध किये हुए और कसौटी पर कसे हुए सोने के समान निर्मल है, जो राग, द्वष तथा भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। जो तपस्वी है, जो दुबला-पतला है, जो इंद्रिय-निग्रही है, उग्र तप:साधना के कारण जिसका रक्त और मांस भी सूख गया है, जो शुद्धव्रती है, जिसने निर्वाण ( आत्म-शान्ति ) पा लिया है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (२५८) जो स्थावर, जंगम सभी प्राणियों को भलीभाँति जानकर, उनको तीनों हो प्रकार * से कभी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। * मन, वाणी और शरीर से; अथवा करने, कराने और अनुमोदन से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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