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अपरिग्रह - सूत्र
(४८)
प्राणिमात्र के संरक्षक ज्ञातपुत्र ( भगवान् महावीर ) ने कुछ वस्त्र आदि स्थूल पदार्थों को परिग्रह नहीं बतलाया है। वास्तविक परि तो उन्होंने किसी भी पदार्थ पर मूछों का - शशक्ति का रखना बतलाया है ।
( ४६ )
पूर्ण संयमी को धन-धान्य और नौकर-चाकर आदि सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग करना होता है । समस्त पाप कर्मो का परित्याग करके सर्वथा निर्ममत्व होना तो और भी कठिन बात है ।
( ६० )
जो संयमी ज्ञातपुत्र ( भगवान् महावीर ) के प्रवचनों में रत हैं, वे बिढ़ और उद्वेय आदि नमक तथा तेज, घी, गुड़ आदि किसी भी वस्तु के संग्रह करने का मन में संकल्प तक नहीं करते ।
( ६१ )
परिग्रह-विरक्त मुनि जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल और रजोहरण आदि वस्तुएँ रखते हैं, वे सब एक मात्र संयम को रक्षा के लिए ही रखते हैं काम में लाते हैं । (इनके रखने में किसी प्रकार की आसक्ति का भाव नहीं है । )
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