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विनय-सूत्र
(८५)
जो शिष्य श्रभिमान, क्रोध, मनु या प्रमाद के कारण गुरु को विनय ( भक्ति) नहीं करता. वह अभूति अर्थात् पतन को प्राप्त होता है। जैसे बाँसका फल उसके ही नाश के लिए होता है, उसी प्रकार श्रविनीत का ज्ञान-वन भी उसी का सर्व-नाश करता है ।
(८६)
'अविनीत को विपत्ति प्राप्त होती है, और विनीत को सम्पत्ति'- ये दो बातें जिसने जान बी हैं, वही शिक्षा प्राप्त कर सकता है ।
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