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अभमाद-मूत्र
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(१११) जो मनुष्य जार-ऊपर से संस्कृत नाम पड़ते हैं परन्तु वस्तु नः तुच्छ हैं, दूसरों को निन्दा करनेवाले हैं, राग-द्वेषी हैं, परवंश हैं, वे सब अधर्माचरणवाले हैं.-इस प्रकार विचार-पूर्वक दुगुणों से घृणा करता हुआ मुमुक्षु शरीर-नाश पर्यन्त (जीवनपर्यन्त ) केवल सद्गुणों की ही कामना करता रहे।
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