________________
ब्रह्मचर्य - सूत्र
(xx )
देवलोक सहित समस्त
संसार के शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुःख का मूल एक मात्र काम-भोगों को वासना ही है। जो साधक इस सम्बन्ध में बीतराग हो जाता है, बहू शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुःखों से छूट जाता है ।
( ५६ )
जो मनुष्य इस प्रकार दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उसे देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि सभी नमस्कार करते हैं ।
(५७)
यह ब्रह्मवयं धर्म ध्रुव है, मिष्य है, शाश्वत है और जिमोषदिष्ट है। इसके द्वारा पूर्वकाल में किसने ही जीव सिद्ध हो गये हैं. वर्तमान में हो रहे हैं, और भविष्य में होंगे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org