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डॉ० अनिलधर ने इसे ज्योति स्तम्भ संज्ञा से अभिहित किया । पत्राचार एवं दूरस्थ शिक्षा के समन्वयक डॉ० आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने ग्रन्थ को सचमुच एक महामानव की अन्तःप्रज्ञा का साक्षात्कार कराने वाला माना । जीवन विज्ञान के तत्कालिक विभागाध्यक्ष डॉ० जे. पी. एन. मिश्र ने विश्लेषण को अत्यन्त व्यवस्थित एवं सरस बताया । प्राकृत एवं जैनागम विभाग के सहाचार्य डॉ० हरिशंकर पाण्डेय के मत में ग्रन्थ में विवेचन बड़े ही सुन्दर एवम् आकर्षक रूप में किया गया है। उनके ही विभाग के डॉ० जिनेन्द्र जैन का मानना है कि यह ग्रन्थ शोधार्थियों के लिये चिन्तन के नये विश्लेषणात्मक स्वरूप को प्रस्तुत करता है । जीवन विभाग के डॉ. बी.पी. गौड़ के मत में भी इसका विपुल उपयोग शोध कार्यों में होगा। समाज कार्य विभाग की सहायक प्रोफेसर श्रीमती प्रतिभा जैन इस ग्रन्थ को भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम मानती हैं । जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग के वर्तमान अध्यक्ष डॉ० अशोक जैन के मतानुसार ग्रन्थ के निष्कर्ष सभी के लिये विचार स्रोत बनकर मानव कल्याण की दिशा में उत्कृष्ट भूमिका निभायेंगे ।
समाज कार्य विभाग के डॉ० प्रधान कहते हैं कि यह ग्रन्थ है A Historical landmark, which adds to the rich Jaina philosophy और अंग्रेजी की सुधी प्राध्यापिका सुश्री ममता गुलेरिया ग्रन्थ को Thought provoking and insightful मानती हैं।
ग्रन्थ के प्रकाशन के पूर्व ही इस ग्रन्थ पर इतनी विपुल पुष्प वर्षा विद्वानों की आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति अगाध श्रद्धा का परिणाम है, कर्तृत्व का कोई अहंकार अपने ऊपर ओढ़ने की आत्म सम्मोहन की मनःस्थिति मेरी बिल्कुल नहीं है ।
फिर अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है । आचार्य महाप्रज्ञ पर नये सिरे से एक ग्रन्थ के निर्माण में लगा हूँ। इस बार ग्रन्थ अंग्रेजी में होगा । पंचपरमेष्ठी मेरे सारस्वत साधना के शुभोपयोग में अपनी शरण प्रदान करते रहें - यही प्रार्थना है । इस ग्रन्थ के निर्माण-काल में जो आनन्द का भाव लेखक में बना रहा, वह आनन्द-भाव इसके पाठकों में भी सङ्क्रमित हो -इस शुभाशंसा के साथ
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३ सितम्बर, २००२
पर्यूषण पर्व प्रारम्भ, कोबा ( अहमदाबाद )
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दयानन्द भार्गव
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