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भावभूमि
पाँच हजार वर्ष पुरानी कहानी है। एक यक्ष ने पाँच पाण्डवों में से भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इन चारों को पकड़ कर मार दिया । इनका कसूर यह था कि यक्ष ने कहा था कि इस झरने से पीने के लिए पानी लेने से पहले वे उसके प्रश्नों का उत्तर दें। चारों में से किसी ने भी यक्ष की परवाह नहीं की और उसके प्रश्नों का उत्तर दिये बिना ही झरने से पानी लेना चाहा। चारों धराशायी हो गये। अन्त में युधिष्ठिर वहाँ पहुंचे। यक्ष ने कहा कि पानी लेने से पूर्व आप मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दें । युधिष्ठिर ने कहा कि प्रश्न पूछो । यक्ष ने पूछा कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने कहा कि प्रतिक्षण प्राणी हमारे सामने रात-दिन मरते दिख रहे हैं । फिर भी हम यही मान बैठे हैं कि हम कभी नहीं मरेंगे - भला इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य हो सकता है-किम् आश्चर्यम् अतः परम् ?
दृष्टि का भ्रम
संसार में, अस्तित्व में, जो कुछ जैसा है, वह हमारे सामने है फिर भी कई बार हम उसे मानने को तैयार नहीं होते हैं। हम सब जानते हैं कि पृथ्वी थाली की भांति चपटी नहीं है अपितु गेंद की अथवा नारंगी की भांति गोल है, तथापि बारम्बार हमारी यही धारणा बनती रहती है कि पृथ्वी चपटी है । हम ऐसा इसलिए मानते हैं कि जैसा दिखाई देता है उसके अतिरिक्त भी सत्य है - यह हम नहीं जानते / मानते। हम कभी-कभी जो है उसे जानते ही नहीं हैं । कभी-कभी जान लेने पर भी उसे मानते नहीं हैं क्योंकि हमारी पूर्व धारणाएं इतनी बद्धमूल होती हैं कि उन धारणाओं के विरुद्ध यदि कोई जानकारी हमें मिल जाए तो वह जानकारी हमारे चिन्तन के ऊपरी स्तर पर ही बनी रह जाती है, उस गहराई पर नहीं पहुँच पाती जिस गहराई पर हमारी पूर्व धारणाएँ जड़ जमाए बैठी होती हैं। हम जानते हैं कि यह शरीर एक दिन हमसे छूट जाएगा
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