Book Title: Mahapragna Darshan
Author(s): Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ के मध्य उस निबंध का वाचन कराया। पूज्य गुरुदेव ने कहा- "डॉ० दयानन्द भार्गव की दृष्टि बहुत पैनी है । उनमें कथ्य के मर्म को पकड़ने की क्षमता है । समीक्षा का विशिष्ट कौशल है । अपने भावों को शब्दों का सुन्दर परिधान देने में निपुण हैं, जिससे उनका वक्तव्य और लेखन पाठक के दिल को छू लेता है । " गुरुदेव ने प्रस्तुत निबंध के लिए डॉ० भार्गव का साधुवाद देते हुए कहा- साधु-साध्वियों को भी ऐसे निबंध पढ़ने चाहिए। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता में नए उन्मेष आ सकते हैं । उसी समय गुरुदेव श्री तुलसी ने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया - डॉ० भार्गव ने ऋषभायण के एक अंश पर जो लिखा है, वह यहीं तक सीमित न हो जाए। वे आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य का समग्र दृष्टि से समीक्षात्मक विश्लेषण करें, यह अपेक्षित है । डॉ॰ दयानन्द भार्गव तक पूज्य गुरुदेव का वह संदेश पहुंचा। उन्होंने वर्तमान में चल रहे अपने कार्यों की संपूर्ति के पश्चात् इस कार्य को करने का संकल्प व्यक्त किया । अपने संकल्प के अनुरूप डॉ० भार्गव ने आचार्य महाप्रज्ञ के विशाल साहित्य का अवगाहन शुरू कर दिया। वे गहन अध्ययन, अन्वेषण, तुलनात्मक अनुशीलन तथा समीक्षात्मक विश्लेषण करते रहे । चिन्तन मंथन से नए तथ्य उपलब्ध हुए और अपने अध्ययन, अनुसंधान की महनीय फलश्रुति को 'महाप्रज्ञ-दर्शन' शीर्षक ग्रंथ के रूप में तैयार कर श्रद्धेय आचार्य श्री महाप्रज्ञ के चरणों में उपहृत कर दिया । पूज्यवर के निर्देश से उस ग्रन्थ के आद्योपान्त पारायण का हमें सौभाग्य मिला । दृष्टि, भाव-भूमि, व्यवहार, परमार्थ इन चार उप शीर्षकों में विभक्त इस ग्रंथ में 'महाप्रज्ञ-दर्शन' का एक अभिनव रूप सामने आया है। आचार, विचार, व्यवहार, दर्शन, शिक्षा आदि के क्षेत्र में आचार्य महाप्रज्ञ का जो विशद चिन्तन रहा है, उसे बहुत थोड़े शब्दों में समेट कर 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ किया है । डॉ॰ दयानन्द भार्गव चिन्तक हैं, विचारक हैं, प्रखर मेधावी प्रज्ञावान् साधु पुरुष हैं। वे कहने से अपनी लेखनी नहीं चलाते । जब तक बात उनके हृदय में उतर नहीं जाती, तब तक वे कलम उठाना तो बहुत दूर की बात है, वे उस ओर झाँकते तक नहीं। बात उनके कलेजे के आर-पार चली जाती है तब वे ऊब कर नहीं, पूरे मन से डूब कर लिखते हैं। उन्होंने जिस अतल गहराई में उतर कर इस ग्रन्थ का सर्जन किया है, वह भारतीय वाङ्मय की अमूल्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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