Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 7
________________ २१ प्रथम पद का अर्थ भावनापूर्वक जाप २२. नवकार चौदहपूर्व प्रष्टप्रवचनमाता २३. तत्त्वरुचि - तत्त्वबोध-तत्त्वपरिणति २४. वहिरात्मभाव, श्रन्तरात्मभाव, परमात्मभाव २५. गतिचतुष्टय से मुक्ति एव अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति २६. शून्यता, पूर्णता एव एकता का बोधक २७ इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्ययोग 25. हेतु स्वरूप एव अनुबन्ध से शुद्ध लक्षण वाला धर्मानुष्ठान २६. श्रागम - अनुमान-ध्यानाभ्यास ३० धर्मकाय, कर्मकाय एवं तत्त्वकाय अवस्था ३१ अमृत अनुष्ठान ३२ भाव प्रारणायाम का कार्य ३३ भव्यत्व परिपाक के उपाय एवं आभ्यन्तर तप ३४ समापत्ति, आपत्ति एवं सम्पत्ति ३५ धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान ३६ तपः स्वाध्याय एवं ईश्वरप्रणिधान ३७ अष्टांगयोग ३८ क्षायिकभाव की प्रप्ति ३६ भव्यत्व परिपाक के उपाय ४० स्वदोषदर्शन एवं परगुणदर्शन ४१ योग्य की शरण से योग्यता का विकास ४२ दुष्कृत एव सुकृत ४३ श्रात्मा में स्थित अचिन्त्य शक्ति का स्वीकरण '२५ २६ २७ २८ mmm ३० ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ ૪૦ ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ £ G

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