Book Title: Maha Sainik Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Yogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan

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Page 9
________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-2 • महासैनिक. खन खन अंगारे ओराणा, कसबी ने कारीगर भरखाणा; क्रोड नर जीवता बफाणा - तोय पू रोटा नव शेकाणा : ___ हो एरण बेनी ! - धण रे बोले ने - (- स्व. झवेरचन्द मेघाणी : 'युगवन्दना') प्रवकता (पुरुष-स्वर): "युगों से मनुष्य बनाता आया है- तलवारों को, तोपों को, मनवारों को.....! और खेलता आया है युद्धपरक संहारों को !! सीधा करने उल्लू किसी के, खुश करने सरदारों को !!!... कायम रखने शोषक-शोषित की भेदभरी दीवारों को !..." (प्रवेश 'बूढ़े बाबा' शांति सैनिक का । अंगो पर रक्त से सने घाव, आंखों में आँसू, दिल में गहरा दर्द । चारों ओर पड़े हुए मृतदेहों को दिखलाता हुआ, बम की आवाज़ों से दर्द अनुभव करता हुआ, हाथों को मृतदेहों और आसमान की ओर उठाता हुआ और शस्त्रों के प्रति संकेत से धृणा प्रदर्शित करता हुआ -) बूढ़े बाबा : यह धृणा, यह हिंसा, यह सत्ता-लालसा, ये खून के प्यासे हथियार और ये सर्व-विनाशक युद्ध... ! ज़मानों के बीतने के साथ वे दिन-ब-दिन बढ़ते ही गये हैं... बढ़ते ही गये हैं... ! (लंगड़ाता हुआ चलकर -) एक, दो, तीन - संसार ने अब तक तीन तीन विश्व युद्ध देख लिये हैं और फिर भी यह चौथा ... लेकिन क्यों...? किस लिये ?... क्या तीन युद्ध काफ़ी नहीं थे? क्या संसार को और युद्धों की ज़रुरत है ? (रुककर, गहरी आह लिए-) कब तक ये सर्वसंहारक युद्ध, कब तक..... ? (धीरे धीरे लंगड़ाता हुआ चलता है। थोड़ी देर-बाद इर्द गिर्द के शवों को पास जाकर देखता है - सभी देशों के, सभी-रंगों के, सभी-चमड़ियों के सैनिकों के शव है वहाँ पर । पश्चाद् भू-से प्रथम की गीत पंक्ति और उसकी रहस्यवाणी आती रहती है -) , शीत की पार्श्वगीत-पंक्ति : ( पुरुष-स्वर) "खन खन अंगारे ओराणा....... रोटा नव शेकाणा..." प्रवक्ता (स्त्री-स्वर): "धरती के कण कण से और पानी के हर बुबुंद से पुकार उठ रही है कि - (2)

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