Book Title: Maha Sainik Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Yogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan

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Page 43
________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -36 • महासैनिक . (टेइप रिकार्डर चालु करता है।) पार्श्वगीत : (करुण भैरवी : पुरुष स्वर : बंगला रवीन्द्रसंगीत) "हिंशाय उन्मत्त पृथ्वी..... नूतन तव जनम लागि, कातर जत प्राणी, करो पीण महाप्राण ! आनो अमृत बानी.... बिकसित करो प्रेम पद्म चिर मधु निष्यंद, शांत हे, मुक्त हे, हे अनंत... पुण्य... ! करुणाधन ! धरणीतल की कलंक-शून्य - हिंशाय "क्रंदनमय निखिल हृदय ताप दहनदीप्त विषय विष विकार जीर्ण, खिन्न अपरितृप्त, देश देश परिल तिलक, रक्त कलुष ग्लानि, तव मंगल शंख आनो, तव दक्खिन पानि, तव सुंदर संगीत राग, तव सुंदर छंद शांत हे पंथी हे, हे अनंत पुण्य ! (- रवीन्द्रनाथ ठाकुर) पार्श्ववाणी (चालु टेइप से : स्त्रीस्वर) "हिंसा से पागल बनी यह पृथ्वी । इसे मुक्त करो हिंसा से, शून्य करो कलंक से हे शांत, मुक्त, अनंत पुण्य करुणाधन बुद्ध ! (वाद्यसंगीत) (बच्चों और स्त्रियों की आहे और कराहें, मारकाट की आवाजे) निरीहों की ये आहे और कराहें... ! ये विकार-वासना की... उफ़ानें !! देश-देश में बहती हुई रक्त की ये धाराएँ..... !!!! इन सबसे शीघ्र ही मुक्त करो, हे करुणाधन ! तुम्हारा मंगलमय दक्षिण हाथ बढ़ाओ, हे.... अनंत पुण्य !! तुम्हारा शांत सुंदर संगीत राग छोड़ो, हे शांत बुध्ध !!!....." (वाद्य संगीत) - (जनरल शांति से सुन रहे हैं। मार्शल बैठे हुए हैं - टेइप चालु ही हैं।) पार्श्ववाणी ( पुरुष स्वर): इस प्रार्थना में अपने स्वर मिलाते हुए गांधीजीने एक ओर से अहिंसामूर्ति भगवान बुद्ध से यह प्रार्थना की थी, तो दूसरी ओर से क्रूर और हिंसा-मत्त लोगों से यह : "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं । इसलिए दूसरों को मिटाने की महत्त्वाकांक्षा छोड़ो । जीयो, जीने दो और संसार को सुंदर रहने दो... ।" (36)

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