Book Title: Maha Sainik Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Yogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42o1 भा श्रीमद् राजचंद्रजी की 150. वी जन्मशती अवसर पर • 2017 कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा महासैनिक गांधी-गुरु श्रीमद् राजचंद्रजी प्रेरित और प्रभावित महात्मा गांधीजी के अहिंसक संग्राम के एवं शांतिसेना के दर्शन को प्रस्तुत करता हुआ ___ गीत-नाटक नूतन टेकनिक के साथ । शांतिसेना एक भूत | र त लेखक प्रा. प्रतापकुमार ज. टोलिया द्वारा,प्रज्ञाचक्ष डॉ. पं. सखलालजी/resentefer सरितकुंज, आश्रममार्ग, अहमदाबाद-. . (Nihe) . योगीन्द्र युगप्रधान सहजानन्दघन प्रकाशन प्रतिष्ठान Yogindra Yugapradhan Sahajanandaghan Prakashan Pratisthan वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन प्रभात कोम्पलेक्स, के.जी. रोड, बेंगलोर-560009. 'पारुल', 1580, कुमार स्वामी ले आउट, बेंगलोर-560078. 560111. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Proof Dt. 23-3-2017 2 (ii) प्रा. प्रतापकुमार टोलिया लिखित, गांधी शताब्दी- 1969 /प्रथम पुरस्कृत ((भारत में) नाटक हिन्दी-अंग्रेजी महासैनिक - The Great Warrier of Ahimsa (लेखक के प्रति ) पुरोवचन "आप का नाटक पुस्तक "अहिंसा" योद्धा क्या हो सकता है ?" अथवा शान्तिसैनिक "महासैनिक" (अंग्रेजी नाटक : : 'Could There be such a Warrior ? “The Great Warrior of Ahimsa”) हम देख गये । बहुत ही पसन्द आया। रंगमंच पर तो उसका कथा वस्तु, प्रवेशादि, अंक, पार्श्वसंगीत और "शांति के सिपाही चले" यह दुःखावलजी का कूप्रगीत सचमुच ही कॉमेन्ट्री, प्रकाश का विविध रंगायोजन के साथ जबरदस्त प्रभाव, भावक के दर्शक के लिये हृदयस्पर्शी सिद्ध हो जाता है। इसमें पू. भगवान महावीर, पू. राजचन्द्रजी, पू. गांधीजी और अंत में पू. श्री विनोबाजी एवं मुनिश्री सहजानंदघनजी तथा पू. विनोबाजी के 'पंचवटी तीर्थ' का भव्य प्रभाव भावक के हृदय को सराबोर आपूरित कर देता है, छलका देता है । "फिर / अपरंच 'प्रस्तावना' (प्रास्ताविक ) में आपने 1969 के कौमी दंगों के बीच अहमदाबाद में पीले स्कार्फ और हरे बॅज के साथ मेरे नेतृत्व में भड़वीर 'शान्ति सैनिकों' (आपके स्वयं के साथ ) ने प्रस्तुत किया हुआ शौर्य-वीरत्वपूर्ण योगदान आपने जो याद किया है, जो कि प्रतिहासिक दृष्टि से शान्तिसेना क्षेत्र में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण है, जिसके लिए नाट्यलेखक के रूप में आपको सौ सौ नहीं, हज़ारों धन्यवाद आभार ।" रक्षाबंधन, 2004 अहमदाबाद प्रा. डो. हरीश व्यास (प्राध्यापक एवं भारत पदयात्री सर्वोदय कार्यकर्ता 1969 के अहमदाबाद के कौमी दंगों के बीच भयावनी अंधेरी रातों में मौत को मुडी में लेकर, गांधी-विनोबा की दृष्टि की निर्भीक अहिंसा प्रयोगसिद्ध करते हुए शांति स्थापित करनेवाले नेता शांतिसैनिक जिनके नेतृत्व में इस नाट्यलेखक ने भी हिंसा के बीच अहिंसा और शांतिस्थापना का स्वयं प्रयोग भी किया और उस आंखों देखें' - स्वयं अनुभव किये हुए हाल को यहाँ प्रस्तुत भी किया । - डॉ. व्यास अपने अंतिम दिनों के विश्राम के दौरान अपना स्वास्थ्यवृत्त दर्शाते हुए उनके जीवनभर के विराट पदयात्रा - योग का उल्लेख इन शब्दों में करते हैं : Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Proot Dr. 21-3-2017. CIT) "आखिरी १० + १६ = २६ बरसों से डेढ़ लाख किलोमिटर पैदल चलकर, स्वयं के खर्च से, सेवकदल के साथ परिवार सह, देशभक्ति से 'भारत-गुजरात सर्वोदय पदयात्रा' के द्वारा पू. गांधीजी, पू. विनोबाजी का सर्वोदय-संदेश स्कूल-कॉलेजों, गाँवों-नगरों में, भारत के विविध राज्यों में एक बार और गुजरात के 25 जिलो में पांच बार फैलाते हुए अत्र 300 शिक्षासंस्थाओं में प्रसारित करते हुए और अब अतिश्रम-टॅन्शनों से प्रत्याघात (Heart Attack) के हार्ट ऑपरेशन के पश्चात् यहाँ घर पर औषधोपचार सारवार सतत चल रहे हैं। धीरे धीरे सुधार हो रहा है। उसमें आपकी दुवाप्रार्थना रक्षा प्रदान कर रही है।" (12-08-2004 के पत्र में) ऐसे महान सर्वोदयी, शांतिसैनिक का अभी ही 2013 में अहमदाबाद में शांतिपूर्वक देहत्याग हुआ। उनका प्रायोगिक प्रत्यक्ष सान्निध्य एक छोटे-से शान्तिसैनिक के रूप में पाकर और इस बहुमूल्य पुरोवचन को पाकर हम धन्य हुए हैं, कृतार्थ हुए हैं, मानों उनके द्वारा पूज्य राजचंद्रजी-गांधीजीविनोबाजी के ही, हम अहिंसा-आशीष पा रहे हैं इस महासैनिक' नाटक में अहिंसा का शांति-साम्राज्य स्थापित करने की दिशा में । नाट्यलेखक Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fire Proof Dr. 21-3-2017.. (10) महासैनिक समय : चौथे विश्वयुद्ध का : इ.स. २०४८ का : महात्मा गांधी की मृत्यु के १०० वर्ष बाद का । फरवरी का महीना । प्रथम अंक का आरम्भ प्रथम दृश्य रात्रि के ९-० बजे आरम्भ होता है। मध्य के उसी रात्रि के स्वप्नदृश्य और दूसरे दिन प्रातःकाल के दृश्यों के बाद दूसरी संध्या तक नाटक के सभी दृश्य समाप्त होते हैं। इस प्रकार पूरे चौबीस घंटे के कालखंड के भीतर नाटक की सारी घटनाएं घटती हैं, जो विशाल काल-फलक को एवं गांधीजी के जीवन के कुछ पहलुओं और विचारों को सांकेतिक रूप से स्पष्ट करती हैं। घटना-स्थान एवं दृश्य : पृथ्वी के पश्चिमी हिस्से में विश्वयुद्ध के अधिक विस्तारवाला एक दृश्य और दूसरा उससे कुछ दूर विकसित अवकाशी युद्ध (Space War) के ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन और सेना के जनरल के कैम्प का । ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन के लैन्ड-फाइटींग स्पोट का दृश्य अधुनातम अवकाशी युद्ध के वैज्ञानिक शस्त्रों इत्यादि से सुसज्ज है। उसके निकट के जनरल के कैम्प में डेरेटैन्ट की सुविधाजनक व्यवस्था है। पीछे दूसरी ओर दूर टेकड़ियाँ और वृक्षादि दिखाई देते हैं। प्रथम दृश्य भी जंगलों, और झाड़ी का है जहाँ सैनिकों के मृतदेह और कुछ घायल सैनिक पड़े हैं। मध्य के स्वप्न दृश्यों को दिखलाने मोस्क्वीटो नैट-कटन, सायक्लोराम कटन,सितहों की रंगीन प्रकाश एवं चित्र की टैकनिक इत्यादि का उपयोग किया जाता है। इन्हीं स्वप्न दृश्यों के द्वारा दीपक, अंधकार, सूर्य, आकृतियाँ और बाघ-शेर इत्यादि पशु दिखलाये जाते हैं । स्वप्न में कुछ क्षणों और मिनटों की झाँकी के रूप में ही गांधीजी और श्रीमद् राजचन्द्रजी को दिखाया गया है, पात्र के रूप में वे कहीं नहीं है। पात्र : युद्ध के संबंध में कथावस्तु होने से प्रायः सभी पात्र फौजी हैं, लगभग सभी अफसर पश्चिमी हैं, घायल एवं मृतसैनिक विश्व के सभी देशों के सभी चमड़ियोंवाले हैं। शांतिसैनिक बूढ़े बाबा भारतीय हैं। इस शांतिसैनिक के प्रवेश-युद्धभूमि पर-से ही नाटक का आरम्भ होता हैं। १०६ वर्ष की गांधीजी की कल्पना के संयमित जीवन के प्रतीक-सा'बूढ़े बाबा' का यह पात्र है।खद्दरधारी, सफेद दाढ़ीवाले, पदयात्री बूढ़े बाबा की पीठ पर एक बंडल, बगल में एक छोटा सा थैला, दूसरे बगल में वोटर बोटल, सर पर शांतिसेना का प्रतीक स्कार्फ, एक हाथ में टार्च और दूसरे में लाठी इत्यादि हैं । बूढ़ा होते हुए भी वह अपेक्षाकृत दृढ़ और स्वस्थ है, किन्तु युद्ध भूमि के विभिन्न भागों से गुजरकर आने के कारण बुरी तरह घायल और कुछ लहू से लथपथ भी है। मोहक उसका व्यक्तित्व है, चमकती Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Proot Dr. 21-3-2017 -5 (v) हुई उसकी आँखें हैं, प्यार से भरा उसका दिल है, भीतरी सत्य की गहराई से उठकर आनेवाले उसके शब्द हैं और घायल वृद्धावस्था में भी सेवा-शान्तिस्थापना के हेतू समर्पण-तत्पर उसका शरीर । १९४२ में भारत में उनका जन्म हुआ है। दूसरा प्रमुख पात्र है जनरल व्हाइटफिल्ड का । ६८ वर्षीय यह जनरल विश्व के एक बड़े राष्ट्र का सब से बड़ा सेनाधिकारी है। विगत तीसरे विश्वयुद्ध का (जो कि इ.स. १९९६ से इ.स. २०१० के बीच खेला गया माना है) वह अनेक प्रशस्तियाँ प्राप्त विजयी हीरो है । तब से ही उसने बढ़ती पाई है और अब वह चौथे विश्वयुद्धके समय ग्रहोपग्रहों से खेले जाने वाले विराट,वैज्ञानिक तकनिकी और सर्वविनाशक अवकाशी युद्ध का अपने राष्ट्र का सबसे बड़ा जिम्मेदार व्यक्ति है।अनेक खिताबों और चांदों से लैस युनिफोर्म में सज्ज यह जनरल अत्यन्त दृढ़, हिंमतवान, बुद्धिप्रधान और क्रूर है। ठीक मौके पर उसके परिवर्तन के निमित्त बनते हैं बूढ़ेबाबा, उन्होंने दी हुई गांधी-परिचायकसंपत्ति और अपने कुछ स्वजनों एवं देशवासियों की युद्ध के कारण मृत्यु । आंतरिक और बाह्य संघर्षों से गुज़रकर अंत में वह परिवर्तित होकर अपने पूर्व के महासैनिक महात्मा गांधी और बूढ़े बाबा के चरणचिन्हों पर चलता है। इस में भी अपने वीरोचीत पुरुषार्थ का वह दर्शन करवाता है। जनरल के बाद मार्शल मॅथ्यु, लैफ्टेनन्ट, स्पैस-सोल्जर इत्यादि पात्र भी अपना महत्त्व रखते पार्श्वध्वनि, पार्श्व-संगीत, पार्श्ववाणी, प्रकाश आयोजन इ. नाटक के वस्तु, कल्पना, समय, सांकेतिक निरुपण, इत्यादि के कारण ध्वनि, प्रकाश, संगीत इत्यादि का एवं पार्श्वगीत का स्थान स्थान पर प्रयोग किया गया है : समग्र आयोजन के पीछे एक ही दृष्टि है गांधीजी के जीवनदर्शन को प्रभावपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने की। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ First Proot D. 23-3-2017 .. (0) महासैनिक पात्रसूचि बूढ़ेबाबा जनरल व्हाइटफिल्ड मार्शल मेथ्यु सिपाही-१ सिपाही-२ फिल्ड मार्शल लैफ्टेनन्ट स्टेशन कन्ट्रोलर : केन्द्र नियंत्रक स्पेइस सोल्जर : अवकाशी सैनिक • कुछ सिपाही एवं अन्य सचित पार्श्ववाणी की आवाजें श्रीमद् राजचंद्रजी। महात्मा गांधीजी। प्रवकता : पुरुष । प्रवकता : स्त्री। पार्श्व-संगीत एवं ध्वनि (Background Music & Sound Recording) पुरुष गायक स्त्री गायक गायक वृंद वाद्यवृंद (Background Effects) (Light & Technique Group) पार्श्व ध्वनि प्रकाश रंग आयोजन वृंद मंच सज्जा एवं सामान वृंद प्रकाशन एवं प्रचार वृंद (Stage Management of Property Group) (Publication & Publicity Unit) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Puri reet Dr. W-3-2017 (1) महासैनिक गीत पंक्तियों का उपयोग अपूर्ण गीतों एवं गीत-पंक्तियों के उद्धरण (१) (२) श्री झवेरचन्द मेघाणी। श्री दुःखायल। स्वामी रामतीर्थ । श्रीमद् राजचन्द्रजी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर । आश्रम भजनावलि । (५) (६) इन सभी के प्रति कृतज्ञता एवं अनुग्रह के भाव के साथ आभार मानते हुए । सम्पूर्ण गीत किन्हीं के भी उद्धृत नहीं किये गये । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 . 1 • महासैनिक .. महासैनिक अंक-१ दृश्य : प्रथम स्थान : युद्धभूमि : चौथे तकनीकी वैज्ञानिक-युद्ध की। समय : संध्या, रात्रि (रंगमंच पर आरम्भ में अंधकार, बाद में मंद रंगीन प्रकाश । बॉम्बार्डमेन्ट के-बम के-प्रयोग चालू होने के कारण पश्चाद्भू से बीच बीच में बम की दूरस्थ आवाजें... । पार्श्वभूमि से सांकेतिक गूजराती गीत और उसका रहस्यार्थ प्रस्तुत करती हुई प्रवक्ता-वाणी... । उसके पश्चात् शांतिसैनिक 'बूढ़े बाबा' का प्रवेश.....) पार्श्व-गीत (एकाकी : पुरुष स्वर): धण रे बोले ने एरण सांभळे हो...जी बंधुडो बोले ने बेनड़ सांभळे हो...जी बहु दिन घड़ी रे तलवार घड़ी कांइ तोपुं ने मनवार, पांच-सात शूराना जयकार काज खेलाणा खूब संहार : हो एरण बेनी ! - धण रे बोले ने - पोकारे पृथ्वीना कण कण कारमा हो...जी : पोकारे पाणीडां पारावारना हो...जी जळ-थळ पोकारे थरथरी कबरुंनी जग्या रही नद जरी; हाय, तोय तोपुं रही नव चरी : हो एरण बेनी ! -धण रे बोलेनेभट्ठियुं जले रे बळता पोरनी हो...जी धमण्युं धमे रे धखता पो 'रनी हो...जी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-2 • महासैनिक. खन खन अंगारे ओराणा, कसबी ने कारीगर भरखाणा; क्रोड नर जीवता बफाणा - तोय पू रोटा नव शेकाणा : ___ हो एरण बेनी ! - धण रे बोले ने - (- स्व. झवेरचन्द मेघाणी : 'युगवन्दना') प्रवकता (पुरुष-स्वर): "युगों से मनुष्य बनाता आया है- तलवारों को, तोपों को, मनवारों को.....! और खेलता आया है युद्धपरक संहारों को !! सीधा करने उल्लू किसी के, खुश करने सरदारों को !!!... कायम रखने शोषक-शोषित की भेदभरी दीवारों को !..." (प्रवेश 'बूढ़े बाबा' शांति सैनिक का । अंगो पर रक्त से सने घाव, आंखों में आँसू, दिल में गहरा दर्द । चारों ओर पड़े हुए मृतदेहों को दिखलाता हुआ, बम की आवाज़ों से दर्द अनुभव करता हुआ, हाथों को मृतदेहों और आसमान की ओर उठाता हुआ और शस्त्रों के प्रति संकेत से धृणा प्रदर्शित करता हुआ -) बूढ़े बाबा : यह धृणा, यह हिंसा, यह सत्ता-लालसा, ये खून के प्यासे हथियार और ये सर्व-विनाशक युद्ध... ! ज़मानों के बीतने के साथ वे दिन-ब-दिन बढ़ते ही गये हैं... बढ़ते ही गये हैं... ! (लंगड़ाता हुआ चलकर -) एक, दो, तीन - संसार ने अब तक तीन तीन विश्व युद्ध देख लिये हैं और फिर भी यह चौथा ... लेकिन क्यों...? किस लिये ?... क्या तीन युद्ध काफ़ी नहीं थे? क्या संसार को और युद्धों की ज़रुरत है ? (रुककर, गहरी आह लिए-) कब तक ये सर्वसंहारक युद्ध, कब तक..... ? (धीरे धीरे लंगड़ाता हुआ चलता है। थोड़ी देर-बाद इर्द गिर्द के शवों को पास जाकर देखता है - सभी देशों के, सभी-रंगों के, सभी-चमड़ियों के सैनिकों के शव है वहाँ पर । पश्चाद् भू-से प्रथम की गीत पंक्ति और उसकी रहस्यवाणी आती रहती है -) , शीत की पार्श्वगीत-पंक्ति : ( पुरुष-स्वर) "खन खन अंगारे ओराणा....... रोटा नव शेकाणा..." प्रवक्ता (स्त्री-स्वर): "धरती के कण कण से और पानी के हर बुबुंद से पुकार उठ रही है कि - (2) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 3 • महासैनिक . प्रवक्ता (पुरुष-स्वर): "कबरें सारी भर चुकी हैं। मुर्यों को अब न दफ़नाने की जगह है, न जलाने की... !! बस करो, अब बस... !!! (बम की आवाजें) प्रवक्ता (स्त्री-स्वर): ००००० बम बंद नहीं हो रहे... कोटि कोटि इन्सानों को वे जिंदा जलाते जा रहे हैं...... (मंच पर एक घायल सैनिक की आह भरी आवाज़ । दूसरी ओर रहे हुए बूढ़े बाबा का उस ओर जाना, टोर्च से प्रकाश बैंक कर उसे खोज निकालना...) सैनिक : "आमीन !... आमीन... ! पानी..." बूढ़े बाबा : (मुर्यों के ढ़ेर के बीच, सैनिक के पास जाकर-बैठकर) आह... ! (सहानुभूति से, सर पर हाथ फेरते हुए और मुँह में पानी डालते हुए) पीओ मेरे प्यारे बेटे, पीओ यह पानी..... सैनिक : (पानी पीकर, बाबा की ओर प्यार भरी नज़र से देखता हुआ, थोड़ा-सा बोलने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ मर जाता है - पश्चाद्भू में वाद्य संगीत ) "आ...मी...न..... ! ....." ( मरता है । करुण स्वर में वायलिन) बूढ़े बाबा : (उसके बहरे पर आँसू टपकते हैं। प्रार्थना के भाव में उसके शव पर कपड़ा ओढ़ाता है) खुदा तुम्हें अमन वो, मेरे बेटे !(उठता है, लंगड़ाता चलता हुआ...)..... कब तक ये सर्वसंहारक युद्ध, कब तक...? ( बाबा को अपने घावों का गहां दर्द होता है, हाथ छाती के घावों पर रखता है, थोड़ा सा चलता है कि अचानक एक अमरिकी जनरल अपनी शांत अवकाशी छत्री-पेरेश्युट-से वहीं उतरता है- मंच पर ऊपर से उतर कर - बाबा के 'कब तक' शब्द के ठीक बाद । उसी के अनुसंधान में वह प्रत्युत्तर देता है - अमरिकी जनरल : विनाश होने तक, हमारे देश के दुश्मनों का पूरा खात्मा होने तक... ! (क्रूर हँसी हँसता है, बाबा उसे देखे रहता है)... लेकिन ठहरो, हैन्डज़ अप... तुम कौन हो और यहाँ, इस युद्धस्थल पर क्यों आये हो... ? बूढ़े बाबा : मैं यहाँ आया हूँ, साहब, आप जैसे सरदारों से यह पृछने कि- (रुककर ) और मैं समझता हूँ कि आप, आप शायद..... अमरिकी जनरल : अमरिकी सेना का जनरल (मूछों पर ताव देते हुए गर्व से ), तीसरे वर्ल्डवॉर का विजयी हीरो... मेरा नाम शायद तुमने सुना ही होगा ? Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 . 4 • महासैनिक . बूढ़े बाबा : ओह, आप जनरल व्हाइट फिल्ड तो नहीं ? जनरल : ऍक्जेटली, एक्जेटली..... बूढ़े बाबा : वेरी ग्लैड टु मिट यू सर, वैसे मैं आप जैसे बड़े जनरल की खोज में ही था - यह पूछने कि क्यों यह विनाश, क्यों यह युद्ध ? संप्रमुता जनरल : (क्रोध से)- हमारे दुश्मनों को सबक सीखाने... हमारे देश का भला करने... हमारी सुरक्षा और समृद्धि के लिए - शांति और न्याय के लिए... लेकिन लेकिन (सम्मान नतापूर्वक) मुझे यह सब पूछनेवाले तुम... तुम कौन हो ? और यह सब क्यों पूछ रहे हो ? ' (पार्श्वभूमि - deep stage में स्ट्रैचर लिए दो सैनिकों का आना और मृत सैनिकों को एक एक करके उठाकर ले जाना) बूढ़े बाबा : मैं हूँ शांति का सैनिक, भारत से-गांधी के देश से आया हुआ... ! जनरल : ( आशंका से, बाबा के शब्दों को दोहराकर -) शांति का सैनिक ?... भारत से -? (सोचकर) गांधी के देश से? बूढ़े बाबा : मैं यहां आया हूँ-जख्मी जवानों की खिदमत करने, गांधी का प्रेम, अहिंसा और शांति का संदेश पहुँचाने, इन युद्धों को रोकने, नए ढंग के युद्ध की तरकीब सिखाने... जनरल : (व्यंग के साथ ) ओह... युद्धों को रोकने... ! नए ढंग के युद्ध की तरकीब सिखाने...!! (क्रूर हँसी ओर बाद में दृढ़तापूर्वक डाँटते हुए -) मुझे संदेह है कि तुम हमारे दुश्मन के जासूस हो... सही सही बता दो वरना अभी ही गोली से उड़ा दिए जाओगे...(छोटी सी रिवोल्वर सामने खाता है) यह बताओ कि तुम छिपे जासूस हो या नहीं ? बूढ़े बाबा : (लापरवाही के साथ, हँसते हुए -) एक शांति-सैनिक मौत से तो जरा भी नहीं डरता.... जनरल : जानते हो मौत से खेलने का क्या अंजाम होता है ? बूढ़े बाबा : अंजाम यह कि मौत से हमारा काम रुकता नहीं, वह और आगे बढ़ता है ! इस लिए मौत से लोहा लेने हम उसे चुनौती देते हैं.... सिखाया है हमें हमारे बुजुर्ग उस्तादों ने और गाया है हमारे फकीरों ने कि - (जोश, बेफिक्री के साथ) "ए मौत ! बेशक उड़ा दे इस जिस्म को... मेरे और अजसाम भी कुछ कम नहीं... "xxx (- स्वामी रामतीर्थ) जनरल : (क्रोध से) छोड़ो यह सब बकवास और साफ़ साफ़ बताओ कि तुम हमारे दुश्मन के जासूस या 'सिक्रेट एजेन्ट' हो या नहीं ? Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 5 महासैनिक. बूढ़े बाबा : मुझे यह कबूल करने में गर्व है कि मैं जरुर एक एजेन्ट' हूँ लेकिन आप के दुश्मन का नहीं, 'दोस्त' का; सिक्रेट या छिपा नहीं, सरे आम 'खुला' ! मैं एजेन्ट हूँगांधी-जैसे महासेनानी की शांति सेना का। जनरल : 'खुला' एजेन्ट ? गांधी जैसे महासेनानी का ? तो क्या गांधी एक सेनानी था ? बूढ़े बाबा : बेशक, गांधी एक सेनानी था, बिना हिंसक हथियार का सेनानी.....! (सोचकर घूमते हुए) जनरल : "गांधी एक सेनानी..... ! बिना हिंसक हथियार का सेनानी..... ! (रिवोल्वर जेब में रखता है) बूढ़े बाबा : जिसकी जेहाद (जिहाद) आज़ भी चालु है-विश्व के विसंवादों, असत्यों, हिंसाओं, अन्यायों और शोषणपूर्ण असमानताओं के खिलाफ हम जैसे शांति के सिपाहियों के जरिये..... (घावों के दर्द के कारण हाथ छाती पर रखता हुआ धीरे धीरे नीचे के एक पत्थर पर बैठ जाता है, जनरल सोचकर उसके पास आता है।) जनरल : (स्वगत) तो गांधी भी एक सेनानी था ? लेकिन बिना हथियार के कामयाब कैसे हुआ जा सकता है ?..... (अचानक बाबा ब) बढ़ते हुए दर्द की आह सुनाई देती है, उसके पास जाकर, प्रगट -) तुम बहुत ही जख्मी बनी दिखाई देते हो, ऐसी हालत में इस बमबारी के जोखिम की जगह पर आने की तुमने हिम्मत कैसे की ? (पश्चादभू में बम-आवाज़ ) बूढ़े बाबा : बिना हिंसक हथियारों को साथ के कारण । अहिंसा और प्रेम की ताक़त में विश्वास के कारण ।... शांति का सिपाही सैंकड़ों बमों की बौछारों के बीच भी निर्भय रह सकता है.... आत्मा की अमरता की फिल्सूफी उसे आचरण में उतारनी होती है-.... गांधी ने यह सिखाया था... जनरल : (आश्चर्य) ओह..... ! तुमने कभी गांधी को देखा था ? बूढ़े बाबा : बेशक, उन्हें सिर्फ देखने ही नहीं, उनसे अहिंसक लड़ाई के सबक सीखने भी मैं खुशनसीब हुआ था । मेरे दूर के बचपन की यह बात है। जनरल : अभी तुम्हारी उम्र क्या है ? बूढ़े बाबा : १०६ एक सौ छ: वर्ष । जनरल : १०६ वर्ष ? ताज्जुब की बात है, जो कि आसनी से मानी नहीं जा सकती... ! अगर यह सच हो तो भी इतनी उम्र तक तुम जी किस प्रकार सके ? और युद्ध के मैदानों पर भी कैसे घूमते रह सके ? बूढ़े बाबा : आज आप मान न सकें यह बात तो ठीक है । आम तौर पर हमारे देश के पुराने लोगों के और गांधी के जीने के ढंग को मैंने अपनाया था। उनकी जीवनचर्या का अनुसरण करने मैंने व्रत, नियम, संयम और साधना के कठोर जीवन का शुर से ही स्वीकार किया था..... । (5) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 6 • महासैनिक. जनरल : सुना है कि आपके देश में कुछ योगी बहुत लम्बे अर्से तक जीते हैं। क्या यह सच है ? बूढ़े बाबा : हाँ, अभी भी भारत में हिमालय में १२५-१५० साल के योगी मिल जाते हैं । उनके आदर्श को और गांधी के १००-१२५ साल जीने की कल्पना को मैंने सामने रखा था। हमारे उपनिषदों ने कहा है'करते हुए ही कर्म इस संसार में, शत वर्ष का जीवन हमारा इष्ट हो...!' जनरल : तो अधिक जीने की तुम लोगों की चेष्टा रहती है ! बूढ़े बाबा : रहती तो है, लेकिन संग्रह, शोषण, भोग या लालसा के लिए नहीं; दूसरों के दुःख दूर करने, धरती पर स्वर्ग उतारने और आत्मदर्शन करने की साधना के लिए! जनरल : (प्रभावित होकर) बहुत खूब ! अच्छा तुमने गांधी को कब देखा था ? बूढ़े बाबा : मेरी छः साल की उम्र में, नोआखली में, मेरे पिताजी के साथ । तब गांधी के साथ वे भी वहाँ घूम रहे थे - नफरत, हिंसा, वैर की जगह प्रेम और शांति स्थापित करने । गांधी के जैसे एक आजीवन शांतिसैनिक बनने की मेरी तभी से इच्छा थी और गांधीने मुझे तब आशीर्वाद भी दिया था...। जनरल : क्या ? बूढ़े बाबा : (स्मृति, भावावेश में खोकर): "बहुत जियो और शांति के सनातन सिपाही बनो ! - कैसे थे वे प्रेमभरे शब्द । जनरल : मतलब कि गांधी की लड़ाई में प्रेम का बलिदान, शहादत एक बड़ा हथियार था, नहीं ? तेजा।-बिलकुल, बिलकुल सही। गांधी ने किसी का लहू लेने के बदले (बजाय) प्रेम से अपना लहू देने का सिखाया (घाँव से खून बहता है, दर्द बढ़ता है, फिर भी निश्चिंतता से हाथ रखे रहता हैं।) जनरल : तो उसका यह लहू देने का, प्रेम के बलिदान का हथियार कामयाब हुआ क्या ? उसकी शहादत सफल हुई क्या ? बूढ़े बाबा : एक मानी में जरुर हुई । दूसरे माने) में अब हो रही है...... जनरल : कैसे? बूढ़े बाबा : यह तो बड़ी लंबी बात है, जनरल सा'ब ! (घाव का दर्द बढ़ता है) थोड़े में सुनाने की कोशिश करें । गांधी की शहादत के बाद जब मैं बड़ा हुआ तब मैं शांति का सिपाही बना रहा । मेरे शांति के मिशन को लिए मैं तब से लेकर आज तक घूम रहा हूँ। नफ़रत, हिंसा और युद्धों को मिटाने मैं अपने साथियों के साथ हर छोटे-मोटे युद्ध की भूमि पर पहुँच जाता हूँ। तीसरे विश्वयुद्ध में भी मैं जगह जगह पहुँचा था और आज चौथे में भी..... । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -7 • महासैनिक. जनरल : (सहसा कुछ याद करके, बाबा का चेहरा (एकटक देखते हुए-) अच्छा तीसरे विश्वयुद्ध के समय, बीसवी शती के अंत भाग में तुम कहां थे ? बूढ़े बाबा : पश्चिमी योरप के सागरतट के प्रदेशों मे, अपने साथी शांतिसैनिकों के साथ - जनरल : बिल्कुल ठीक, बिल्कुल ठीक । अब मुझे याद आया । जब इ.स. २०१० में मैंने हमारे कमान्डर जनरल से चार्ज लिया तब शायद तुम जैसे लोगों ने ही हमारे देश में उन हज़ारों बच्चों को बोम्बार्डमैंट से बचाया था.... । (कृतज्ञता का भाव) . बूढ़े बाबा : मुझे भी याद आता है कि मालिक की मेहरबानी से यह काम करनेवाले हम ही थे... । जनरल : (परिवर्तित होकर, उपकार के भाव के साथ, घूटने टेककर...) ओह बाबा ! फिर तो तुम वही हो ! तुम्हें तो हम उन दिनों काफ़ी ढूँढते रहे थे । तुम्हारा एहसान हम भूल नहीं सकते । हमारे कमान्डर जनरल तब आप के साहसभरे काम से बड़े खुश हुए थे। आपने ही हमारे बच्चों को बचाया, आप के बिना वे बच नहीं सकते थे..... बूढ़े बाबा : और मुझे माफ करें, आप के कमान्डर जनरल ने और आपने अपने दुश्मन-देशों के लाखों नाजुक, नवजात निरीह बच्चों को मौत के घाट उतारा था । बराबर है न ? जनरल : बराबर तो है बाबा, लेकिन क्या करें ? मैं यह मेहसूस और कबूल करता हूँ कि हमारी ये गलतियाँ थीं... (शरमिंदा होता हैं ।) बूढ़े बाबा : 'गलतियाँ' ? आप उन्हें 'गलतियाँ' कहते हैं ? गलतियाँ नहीं, बड़े भारी पाप थे पाप ! ऐसे पाप कि जिनके लिए आप को न तो इन्सानियत कभी माफ कर सकती है, न खुदा ! जनरल : लेकिन आखिर ये सब लड़ाईयाँ हैं... इ बूढ़े बाबा : हाँ, कि जिस में आप चाहते हैं कि आप के देश के बच्चे बच जायँ और दूसरों के मर जाय। जनरल : हकीकत तो यही है लेकिन उसके लिए हम क्या कर सकते हैं ?... युद्ध की तो यह रसम ही है ! बूढ़े बाबा : ..... मैं युद्धों को समूचे रोककर उस रसम को उखाड़ निकालना (फैकना) चाहता हूँ। मेरी जिंदगी का यह सब से बड़ा और लंबे अर्से का ख्वाब है... ( दर्द बढ़ता है, जमीं पर लंबा लेट जाता है, जनरल उसे सहायता करता है, पास बेठकर टोर्च से अपने हाथ की घड़ी में समय देखता है, बारबार बीच बीच में देखता रहता हैं ।) जनरल : लेकिन तुम युद्धों को रोक नहीं सकते । जब तक दुनिया में मतभेद और संघर्ष और अन्याय और आक्रमण है तब तक युद्धों को रोकना नामुमकीन है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 8. बूढ़े बाबा : गांधी ने भी मतभेदों के बीच में काम किया और अन्यायों के सामने युद्ध । वह भी एक युद्ध था। ज़िंदगी भर का एक बहादुर योद्धा जो कि हिंसक हथियारों के बिना लड़ा और वह भी संसार की एक बड़ी सल्तनत के साथ ' जनरल : बड़ी ताज्जुब की बात है .... ! बूढ़े बाबा गांधी के पदचिन्हों पर ही चलने की मेरी विनम्र कोशिश रही है.... अब..... अब....... (दर्द बढ़ता है खून टपकता रहता है, जनरल उसे बेन्डेज-पट्टी बाँधने का प्रयत्न करता है । ) जनरल : आप का घाव बहुत गहरा दीखता है.... मुझे यह पट्टी बाँधने दें... ओह यह खून भी टपकने लगा ***** • महासैनिक • बूढ़े बाबा : मेरे खून के टपकने पर फिकर न करें। मैं कुछ खुश हूँ कि मैं आप तक मेरा शांति का पयगाम पहुँचा सका.... । अगर मेरी आखिरी साँस के पहले युद्ध रोका गया और मेरा सपना साकार हो सका तो मैं बेहद खुश होऊँगा । . जहाँ तक मेरे शारीरिक घावों का सवाल है...... मुझे उसका तनिक भी असर नहीं... । ..... जनरल : इतने गहरे घाव और ज़रा भी असर नहीं ? बूढ़े बाबा : यकीन मानिये, मालिक की मेहरबानी से मैं अपने शरीर से पूरा अलग हो सका हूँ... । अब मैं खास दर्द नहीं महसूस कर रहा । जनरल : बड़ी खूब । खैर... बाबा, आप कह रहे थे कि गांधी एक ऐसा योद्धा था कि जो बिना हिंसक हथियारों के लड़ा, तो यह कैसे मुमकिन हो सकता है? तो फिर उसके हथियार कौन कौन से थे ? बूढ़े बाबा : उसके हथियार थे - देह के बजाय आत्मा का ज्ञान, सत्य की खोज का आग्रह, प्रेम से भरा बलिदान, उपवास और "अहसयोग" के द्वारा अहिंसक प्रतिकार, वगैरह । हिंसक हथियारों के ऐसे अहिंसक जनरल : लेकिन एक सेनानी की हैसियत से मैं जानता हूँ कि बिना हथियारों का युद्ध कहीं कामयाब नहीं हुआ । बूढ़े बाबा कामयाच नहीं क्यों हुआ ? हुआ है और हो सकता है। जनरल (अपनी घड़ी को बारबार देखते हुए और किसी की प्रतीक्षा में चारों ओर नज़र डालते हुए) लेकिन यह आज के ग्रहोपग्रह और अवकाश के ज़माने में ही नहीं, गांधी के ज़माने में भी मुमकिन नहीं खाई देता, फिर भी मुझे यह जानने की दिलचस्पी है कि गांधी ने इन साधनों और हथियारों को प्रयोग में किस प्रकार लिखी ? बड़े बाबा अफ्रीका और हिन्दोस्तां के असहयोग आंदोलन और अलग अलग सत्याग्रह, ऐतिहासिक दांडीयात्रा .... और 'भारत छोड़ो' आंदोलन वगैरह ऐसे सबूत है जो इन हथियारों को कामयाबी के साथ गांधी के द्वारा काम में लाये जाने की गवाही देते हैं...... (8) 29 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-9 (बूढ़े बाबा एक गहरी सांस लेकर आह भरते हैं और दर्द अनुभव करते हुए अपने जीवन का अंत निकट देखते हैं... वाद्य संगीत का पश्चार्द्रभूमि से मंद स्वर....) मैंने इन सारी बातों के बारे में आप से और भी बहस की होती, जनरल साहब ! लेकिन..... लेकिन... (स्वस्थता और स्थितप्रज्ञ वृत्ति के साथ) लगता है कि मेरी जिंदगी का अंत अब नज़दिक आ रहा है....... • महासैनिक जनरल : (सचिंत ) ओह, बाबा..... बूढ़े बाबा पर जाते हुए आप को मेरी मिलकत, मेरी संपत्ति, एक अनमोल संपत्ति भेंट दिए जा रहा हूँ...। गांधी एक कामयाब अहिंसक सेनानी किस प्रकार थे इस बात को वह और साफ़ सुझाएगी.... लिजिए यह... ( बाबा जनरल को एक बंडल अपनी पीठ पर बांधा हुआ उतारकर देते हैं। बंडल में हैं - कुछ फिल्मस्ट्रीप्स, फॉटोग्राफ्स, गांधी के संदेश और जीवनकथा के रिकार्डेड अंशोवाला छोटा सा टेड़प रिकार्डर एवं निम्न किताबें “Mahatma”, “The Last Phase", "सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा", "गांधी- एक सेनानी", "गांधी एक सत्यशोधक", "गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक इत्यादि । सभी किताबों के शीर्षक मुखपृष्ठ पर दूर से पढ़े जा सके इस प्रकार के बड़े हैं..... ) जनरल : ( बंडल को उठाते हुए, आभारवश) आप का बहुत बहुत शुक्रिया, बाबा .... बूढ़े बाबा : इसे मेरी स्मृति के रूप में सम्हालिए। इस में गांधी के बारे में कुछ फोटो, कुछ फिल्में, कुछ किताबें और कुछ उन्हीं की स्पीचों के टेइप रिकार्ड भी हैं.... जनरल : गांधी की खुद की स्पीचें ? बूढ़े बाबा : जी हाँ, आप जैसे लायक इन्सान की राह में मैं इन सभी को लंबे अर्से से सम्हाले हुए था । ये आप को सब कुछ कहेंगी और ज़रुरत के वक्त रास्ता भी दिखाएंगी...... जनरल : ऐसी किमती भेंट के लिए आप का मैं बहुत ही शुक्रगुजार हूँ। आप को मैं कभी भुल नहीं सकूंगा, बाबा ! " बड़े बाबा मैं आप से विदा लूंगा ( एक संयमी आत्मदर्शी स्थितप्रज्ञ होने के नाते समानतापूर्वक गहरी सांस लेकर देह छोड़ते हुए - ) जाते समय आप के लिए मेरा यह संदेश है और प्रार्थना है, जनरल साहब! कि, आप एक सेनानी हैं। परमात्मा आप को एक सचमुच ही बहादुर सेनानी बनाएँ बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफ़रत के, सेनानी ! गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !! ( दूर बोम्बिंग की आवाजें ) सारे संसार को तबाह करने वाला यह युद्ध आप ही के जरिये रोका जाय और मेरा सपना सच बने.... - - इस शरीर को छोड़ने से पहले की मेरी यह गहरी प्रार्थना है.... भगवान आप का कल्याण (भला ) करें... ! अल्विदा... जय जगत्... जय अहिंसा... ! जय शा... न्ति !! ( मरते है ) ( पाश्र्ववाद्यसंगीत एवं (9) • ? Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 10 • महासैनिक. "जय जगत्", "जय अहिंसा", "जय शान्ति" की प्रतिध्वनियाँ : Echoing effects. बाद में पार्श्वगीत... जनरल का कुछ मिनट बाबा के मृतदेह के पास घूटने टेक कर रुके रहना, पश्चाद्भू में गीत चालू -) पार्श्वगीत (समूहगान) "शांति के सिपाही चले, शांति के सिपाही"... लेके खैरख्वाही चले, रोकने तबाही चले... शांति के सिपाही चले..." (दूर बोम्बिग की एवं सैनिकों की कूच की आवाजें चालू...) "वैर-भाव तोड़ने, दिल को दिल से जोड़ने, काम को सँवारने, जान अपनी वारने, रोकने तबाही चले । शान्ति के..... विश्व के ये पासबाँ, लेके सेवा का निशाँ, भीरता से सावधाँ, चल पड़े हैं बेगुमाँ, रोकने तबाही चले । शान्ति के..... सत्य की सँभाल ढाल, अहिंसा की ले मशाल, धरती माँ के नौनिहाल, हैं निकल पड़े सचाल, रोकने तबाही चले । शान्ति के..... जय जगत(३) पुकारते, बढ़ रहे बिना रुके, लेके दिल के वलवले, अपने ध्येय को चले रोकने तबाही चले । शान्ति के..... पार्श्वगीत : श्लोकगान (स्त्री-स्वर) "नत्वहं काम मे राज्यं, ना स्वर्ग ना पुनर्भवम् । कायमे) दुःख तप्तानां, प्राणिनामार्त्तिनाशनम् ॥" जनरल : (बूढ़े बाबा के लिए प्रार्थना के पश्चात्, उसकी मृतदेह पर कपड़ा ओढ़ाते हुए, स्वगत) ऐसा सेनानी कभी हो सकता है ? - गांधी जैसा सेनानी, बाबा जैसा सेनानी ? (कुछ क्षण घूमता है, सोचता हुआ और प्रतिक्रिया व्यक्त करता हुआ) लेकिन मैं भी सेनानी नहीं ?... अगर गांधी और यह बाबा शांति के लिए काम करते थे तो मैं भी शांति ही के लिए युद्ध लड़ रहा हूँ... ! (गहन चिंतन में डूब जाता है और शीघ्रता से घूमता हैं। बाद में बाबा ने दिये हुए उस बंडल को खोलता है। प्रथम उसमें से टेइप रिकार्डर निकालता है और स्पीच दबाकर गांधीजी की एक (10) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 11 तैयार रखी हुई रिकार्डेड स्पीच सुनता है... उनकी गहरी नाभि की आवाज़ जनरल को आकर्षित और प्रभावित करती है उसे सुनते हुए वह अपनी उस पेरेश्युट हवाई छत्री के पास एक पत्थर पर विचारमुद्रा में बैठता है......) महात्मा गांधीजी की आवाज़ : ( टेइपरिकार्डर से, पश्चाद्भूमि से ) "मैं शांति का आदमी हूँ। मैं शांति में मानता हूँ, लेकिन मैं किसी भी कीमत पर शांति नहीं चाहता। मैं कबर में पायी जानेवाली शांति नहीं चाहता। मैं तो उस शांति को चाहता हूँ कि जो इन्सान के दिल में समाई हुई है, जो सारे संसार के विरोधों के सामने खड़ी है लेकिन जो सर्वशक्तिमान परमात्मा के द्वारा रक्षित है..... ।" • महासैनिक • (जनरल यह सुनकर पास की "गांधी एक शांति चाहक" नामक किताब उठा लेते हैं। उसके पन्ने पलटते हुए वे पुनः टेइप से चालु गांधी-वाणी की ओर एकाग्र होते हैं -) गांधी-वाणी : "हर एक को अपनी शांति भीतर से खोजनी है और सच्ची शांति बाहरी परिस्थितियों से मुक्त रहनी चाहिए........ जनरल : ( टेइपरिकार्डर को बंद करते हुए, एक क्षण रुककर, पास की बाकी की किताबों को एक एक कर हाथ में उठाते हुए और उनके शीर्षक पढ़ते हुए - ) " सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा", “Mahatma”..., “The Last Phase..." "गांधी- एक सेनानी", "गांधी- एक सत्य शोधक", "गांधी- एक शांति के चाहक...", "गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक (प्रतिक्रिया के साथ) गांधीएक सेनानी भी और शांति चाहक भी और सत्यशोधक भी एक साथ ये सारी चीजें कैसे हो सकती हैं ? युद्ध और शांति और सत्य.....? - ( टेपरिकार्डर पुनः चालु करता है और एक वाक्य ही सुनकर बंद कर देता है) गांधी-वाणी : "शांति का रास्ता सत्य का रास्ता है । " जनरल : ( दोहराते हुए) शांति का रास्ता सत्य का रास्ता है... शांति का रास्ता सत्य का रास्ता है... - ( सोचते हुए टेइपरिकार्डर बंद है घूमता है। कुछ देर बाद घड़ी देखता है...। बाद में उसकी सेना के मार्शल अपने दो सिपाहियों के साथ जनरल का स्वागत करने आते हैं। हाथ में टार्च है । जनरल को उनके निर्धारित समय के पूर्व पेरेशुट से उतरे हुए वे पाते हैं ।) (11) मार्शल : ( जनरल के प्रति मिलिटरी शिष्टाचार में सॅल्युट करते हुए - )... अगर मैं लेइट पड़ा होऊं - तो मुझे क्षमा करें, मुझे शंका है कि कहीं मेरी घड़ी ने तो मुझे धोखा नहीं दिया ? ( घड़ी ठीक से देखता है, टार्च के प्रकाश में । ) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 12 • महासैनिक . जनरल : नहीं, नहीं, मार्शल ! आप तो बिलकुल ठीक वक़्त पर आये हैं। मैं ही आज कुछ कारणों से वक्त के पहले आया ।... अच्छा... और कोई नई घटनाएँ घटी हैं ? मार्शल : (बम की आवाज़ों को लक्ष्य कर) इन बोम्बार्डमैन्ट के सिवा खास कोई नहीं ! साहब । मैं समझता हूँ कि अब आप को चलकर पहले आराम कर लेना चाहिये, हमारे प्लानों की चर्चा हम बड़ी सुबह कर सकते हैं... जनरल : हाँ, कोई खास गंभीर बात न हो तो, मैं जरुर थोड़ा आराम कर लेना चाहूंगा । मार्शल : तो फिर हम कैम्प को चलें, साहब ! सब कुछ तैयार ही है। (चलने को तत्परता दिखाते हैं) जनरल : लेकिन चलने से पूर्ण हमें एक निराले सैनिक को दफ़नाने जाना है, मार्शल... ! (सैनिकों से -) अय सिपाहियों।। सिपाही-दोनों : (सॅल्युट कर) यस सर ! जनरल : यहाँ ही एक गड्डा खोदो, बहुत जल्दी... । सिपाही : यस सर । ( दोनों खोदने लगते हैं) मार्शल : क्यों, किसे दफ़नाना है, साहब ? जनरल : (दूर के बाबा के शब को टार्च से दीखलाकर) उस बूढ़े को.... जानते हो तुम उसे ? मार्शल : (नजदिक जाकर पहचानकर) ओह... यह तो विश्व शान्ति के शोधक और सैनिक !(जनरल अपना बंडल बांधते हैं) सिपाही : (सॅल्युट कर) गड्डा तैयार है, साहब ! (मार्शल और मेजर दोनों खुद बूढ़े बाबा के मृतदेह को आदर के साथ, सम्हालकर उठाते हैं और गड्ढे में रखते हैं, मौन प्रार्थना कर, उपर मिट्टी डालकर वे सब वहाँ से चलते हैं। दोनों सिपाही जनरल के पॅरेश्युट और बंडल को उठा लेते हैं ।) (जनरल के माटी ओढ़ाते समय) बाबा की आवाज़ की प्रतिध्वनि :"जनरल साहब । आप एक सेनानी हैं । परमात्मा आप को एक सचमुच ही बहादुर सेनानी बनाएँ- बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफरत के सेनानी ! गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !!..." जनरल : ( दोहराते हुए, भावपूर्ण) "गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !..." (चल देते हैं मार्शल के साथ । वाद्यसंगीत ।). पार्श्वगीत पंक्ति : शेर "शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, अमन पे मिटनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा।" (12) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof DL. 23-5-2017 - 13 • महासैनिक . अंक-२ दृश्य : प्रथम स्थान : युद्ध भूमि से दूर सुरक्षित 'ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन' अवकाशी युद्ध का । स्टेशन के पास जनरल का कैम्प । समय : उसी रात्रि के लगभग ११-०० बजे का । (मंच पर का दृश्य जनरल के डेरेवाले कैम्प का है, जिसके निकट वैज्ञानिक साधनों से सज्ज और सुरक्षित ऐसे 'ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन' के अवकाशी युद्ध का लैन्ड फाइटिंग स्पोट' है, जिसका थोड़ा हिस्सा सॅटिंग्स के द्वारा दिखाया गया है। डेरे tent की दो खिड़कियों में से दूसरी ओर, दूर, पश्चाद्भूमि में स्थित टेकड़ियाँ और जंगल दिखाई देते हैं । अंदर के deep stage के हिस्से में दो फीट ऊंचा स्टैज बनाया गया है - स्वप्न दृश्य एवं अन्य दृश्यों के लिए । इसके पीछे सायक्लॉरामा कर्टन की व्यवस्था है। 111 +। समय रात्रि के ११-०० लगभग का होने के कारण अंधकार और प्रकाश यधोचित रूप में समय समय की आवश्यकता के अनुसार रखे जाते हैं - विशेष कर स्वप्नादि दृश्यों में । संगीत एवं अन्य ध्वनियों का भी स्थान स्थान पर समुचित उपयोग है। खिड़की के पास जनरल का पलंग है जिससे कि वह खिड़की से बाहर के स्वप्न एवं अन्य दृश्यों को देख सकता हैं । पलंग के सिरहाने के पास बैटरी का लैम्प (लालटेन), टेइपरिकार्डर, बंडल की वे किताबें, वायरलैस फॉन, कुछ नकशे इत्यादि एक टेबल पर रखे गये हैं । tent की कच्ची दीवारों पर भी एक दो नकशे हैं। जनरल युनिफोर्म उतारकर अपने रात्रिपोशाक में है। खिड़कियों वाली बाजु से दूसरी ओर, कैम्प के बाहर कुछ सैनिक गाईज़ लगातार पहरा दे रहे हैं। कुछ कभी कभी खिड़की से दिखाई देते हैं। पर्दा उठाते समय जनरल व्हाइटफिल्ड पलंग पर पड़े पड़े "गांधी-एक सत्यशोधक" किताब देख रहे हैं। उसके फोटो को देखने के बाद वह बाहर देखता है - खिड़की-से । लैम्प का मंद प्रकाश... पार्श्वभूमि में वाद्यसंगीत : पाश्चात्य : 'हार्प' का ।...) मार्शल : (बॅटरी लालटेन के प्रकाश में "गांधी एक सत्यशोधक" किताब को मोटे से पढ़ते हुए पलंग के पास बैठे)" अपनी छोटी आयु से ही गांधी एक सत्यशोधक थे - पूरे के पूरे । समय के बीतने के साथ वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में उस युग के कुछ बड़े बड़े सत्यशोधकों के संपर्क में आये । ये महापुरुष थे - थॉरो, टॉलस्टॉय, राजचन्द्र या कवि रायचंदभाई और रस्किन । इन सब में सब से अधिक, स्थायी प्रभाव छोड़ जाने वाले थे श्रीमद् राजचंद्र । उन्हीं से गांधी ने सत्य के और आत्मा के साक्षात्कार के लिए मार्गदर्शन पाया जो कि अहिंसा, प्रेम, (13) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 14 । महासैनिक . आत्मसंयम एवं ऐसे कुछ अन्य साधनों पर आधारित था । ऐसे थे गांधी के मार्गदर्शक- सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखानेवाले !... (किताब बंध कर आश्चर्यविभोर हों अपना प्रतिभाव व्यक्त करते हुए) गांधी भी बड़े अद्भुत दिखाई देते हैं और उसके मार्गदर्शक भी ! (किताब हाथ में रखकर सिपाहियों से, जो कि टैन्ट का वह कमरा ठीक कर चुके थे और दरवाजे के पास खड़े थे) सिपाहियों ! सिपाही : यस सर ! (कदम मिलाकर सॅल्युट करते हुए) मार्शल : सब ठीक हो गया क्या ? सिपाही : हाँ, साब ! बिल्कुल ठीक । मार्शल : तो फिर बड़े साहब को सूचना दो - सिपाही : अच्छी बात, सर ! ( दोनों सिपाही जाते हैं बाहर) मार्शल : (किताब खोलकर फिर मोटे से पढ़ते हुए) "गांधी ने अहिंसा और सत्य के सबक अपने इस मार्गदर्शक से दृढ़ किए और अन्यायों तथा अत्याचारों से लड़ने के अपनी प्रिय किताब गीता से...!" (किताब बंद करते हैं । खिड़की के बाहर देखकर चक्कर काटते हुए -) गांधी के मार्गदर्शक सचमुच ही बड़े अद्भुत जान पड़ते हैं... ! (जनरल अपने कपड़े बदलकर रात्रिपोशाक में प्रवेश करते हैं। दोनों सिपाही दरवाजे के पास रुक जाते हैं।) मार्शल : (जनरल से) पधारिए साहब... अब आप आराम करना चाहें तो... ( पलंग बतलाते हैं) जनरल : फाइन, फाइन, बहुत अच्छा । ' मार्शल : (किताब जनरल को लौटाते हुए) लीजिए साहब, बड़ी ही दिलचस्प किताब है यह। (टेबल पर रखते हैं।) जनरल : तुम्हें पसंद आयी क्या ? ( पलंग पर लेटते हैं।) मार्शल : खूब । हमने कभी नहीं जानी हों वैसी बातें है इसमें गांधी और उसके मार्गदर्शक की । जनरल : (आश्चर्य) अच्छा ? कौन थे गांधी के मार्गदर्शक ? मार्शल : इस सम्बन्ध में थोड़ा-सा हिस्सा इस किताब से पढ़कर ही सुनाता हूँ- ("गांधी-एक सत्यशोधक" किताब को उठाकर फिर खोलता है...)" अहिंसा एवं सत्य के उपासक और गांधी के मार्गदर्शक श्रीमद् राजचंद्र कोई साधु सन्यासी नहीं थे । वे बम्बई के एक जवान, जौहरी, सद्गृहस्थ थे । साधुचरित, ज्ञानी और स्वभाव के कवि । गृहस्थ होते हुए भी वे एक आत्म-साक्षात्कार-संपन्न व्यक्ति थे....." (14) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017- 15 जनरल : (बीच में, उत्सुकता से) क्या नाम था उस व्यक्ति का, मार्शल ? मार्शल : नाम बताते हैं श्रीमद राजचंद्र जनरल : श्रीमद् राजचंद्र ! गांधी के मार्गदर्शक !! अहिंसा और सत्य के उपासक..... ( दूर खिड़की के बाहर खो जाते हैं, कुछ क्षण बाद-) अच्छा आगे पढ़िए, मार्शल ! मार्शल : आप थके हुए हैं; आप को नींद नहीं आ रही क्या साहब ? फिर बड़ी सुबह जल्दी उठना है..... जनरल कोई बात नहीं, आप को कष्ट न हो तो थोड़ी देर पढ़िए, मुझे बड़ा आनंद मिल रहा है... हां, मुझे नींद आ गई तो आप इस लैम्प को बुझाकर सोने चले जायें। (बाहर पहरेदारों के चलने की मंद आवाज़ ) मार्शल : बहुत अच्छा । ( पढ़ते हुए) लिखते हैं • महासैनिक • - ~ 'श्रीमद् राजचंद्र बम्बई में अपने व्यापार कार्य में जो सत्य और अहिंसा का पालन करते थे उसका बल वे इडर की पहाड़ियों के एकांत में ध्यान के द्वारा प्राप्त करते थे । कहते हैं इन्हीं पहाड़ियों पर उनकी अहिंसा की शक्ति सिद्ध हुई थी... जनरल (बीच में) : कौन सी पहाड़ियाँ ? मार्शल (किताब पुनः देखकर) इडर की पहाड़ियां.... जनरल : कहाँ आया यह इडर ? कोई उल्लेख है उसका किताब में ? मार्शल : (खोलकर, किताब में मुँह डाले हुए) है... यह रहा (नक्शा दिखकर ) हिन्दोस्ताँ हं...... के गुजरात प्रांत के साबरकांठा जिले में इडर एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव के बाहर पहाड़ियाँ हैं । आखिर की पहाड़ी का नाम है 'घंटीआ पहाड़' वहाँ टब ( तब ) कोई आदमी नहीं रहते थे । रहते थे कुछ बाघ और जंगली पशु... । जनरल (खिड़की से बाहर झांकता हुआ, पलक मारता हुआ, नींद की अवस्था में रहते रहते....) इडर...... घंटीआ पहाड़... वाघ और जंगली जानवर : - मार्शल (आगे पढ़ते हुए ) "श्रीमद् राजचंद्र बिना डर के इन पहाड़ियों की गुफाओं में और शिलाओं पर आकर ध्यान में बैठते थे और शेरों से दोस्ती कर लेते थे । उनके प्रेम और अहिंसा का यह असर था। उन्होंने अपनी एक कविता में लिखा है :- उन्होंने (खान एकाकी विचरतो बळी स्मशानमां वळी पर्वत मां वाघ सिंह संयोग जो.....' ( जनरल को सो गये देखकर मार्शल किताब बंद करते हैं। लैम्प बुझाते हैं और धीरे धीरे वहाँ से चल देते हैं। चारों ओर सन्नाटा छाया रहता है...... ) (15) L Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof DL. 23-5-2017 - 16 • महासैनिक. अंक-२ दृश्य : दूसरा स्वप्न दृश्य (स्थान वही । जनरल सोये हुए । खिड़की के बाहर deep stage और सायक्लोरामा कर्टेन पर स्वप्न का दृश्य । आगे मोरक्रवीटो नैट कटैंन । सिल्हट टैकनिक का आवश्यकतानुसार उपयोग । प्रकाश एवं ध्वनि का आयोजन । पार्श्ववाद्यसंगीत और गीत । सितार एवं सूरमंडल के स्वर । पीछे के स्वप्न दृश्य में सफेद बादल, पहाड़ी का थोड़ा हिस्सा, एक-शिला पर पद्मासन पर ध्यानस्थ श्रीमद् राजचन्द्र । नज़दीक दो बाघ बैठे हुए । प्रथम बाघों की गर्जना और बाद में पार्श्वभूमि से ऊपर की गीत-पंक्ति का प्रस्तुतीकरण । जनरल सो गये हैं और वही इस स्वप्न को देखते हैं।) पार्श्वगीत : (मार्शल के जाने के साथ ही जिसकी प्रथम दो पंक्तियाँ गाई जाती हैं। बाद की पंक्तियों के साथ साथ ही super-impose में प्रवक्ता-वाणी भी सुनाई देती है और श्रीमद् राजचंद्र के इडर के दृश्यवाला स्वप्नदृश्य भी क्रमशः दिखाई देता है । धुंआ, रंगीन प्रकाश । राग-बागेश्री) "अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ?..... क्यारे थइशं बाह्यांतर निग्रंथ जो ? सर्व संबंधनुं बंधन तीक्ष्ण छेदीने, विचरशुं कव महत् पुरुषने पंथ जो..... अपूर्व अवसर । "क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोधस्वभावता, मान प्रत्ये तो दीनपणानुं मान जो, माया प्रत्ये माया साक्षीभावनी; लोभ प्रत्ये नहीं लोभ समान जो..... । अपूर्व अवसर... । "बहु उपसर्गकर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहीं, वंदे चक्री तथापि न मळे मान जो, देह जाय पण माया थाय न रोममां; लोभ नहीं छो प्रबळ सिद्धि निदान जो..... । अपूर्व अवसर..... । (16) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 : 17 • महासैनिक. "शत्रु मित्र प्रत्ये वर्ते समदर्शिता, मान अमाने वर्ते ते ज स्वभाव जो, जिवित के मरणे नहीं न्यूनाधिकता, भय मोक्षे पण शुद्ध वर्ते समभाव जो..... । . अपूर्व अवसर.....। "एकाकी विचरतो वळी स्मशान मां, वळी पर्वतमा वाघ सिंह संयोग जो अडोल आसन, ने मनमा नहीं क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो..... अपूर्व अवसर..... । (- श्रीमद् राजचन्द्र) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री-स्वर) : यह है आत्मा के आराधक, सत्य-अहिंसा के साधक और गांधी के मार्गदर्शक श्रीमद् राजचन्द्र : अकेले और ध्यानस्थ । और ये हैं इडर की एकान्त, नीरव पहाड़ियाँ...! यहाँ न इन्सान की बस्ती है, न दूसरे पशु पंछियों की ! बस्ती है तो कुछ वाघों की, जिन की दहाड़ (गर्जना) कभी कभी यहाँ के सन्नाटे में गूंज उठती है (बाघ की दहाड़..... वातावरण में प्रतिध्वनियाँ ।) पार्श्वगीत-पंक्ति : (पुरुष स्वर) "एकाकी विचरतो वळी स्मशानमा, वळी पर्वतमां वाघ-सिंह संयोग जो....." प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर):- ये रहे वे वाघ-खूखार और क्रूर । लेकिन इनको भी इस साधक ने मित्र बनाया है - पार्श्वगीत-पंक्ति (पुरुष स्वर): "अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो....." (स्वप्न दृश्य से वाघों का चले जाना । अंधेरे के बाद अकेले ध्यानस्थ श्रीमद् राजचन्द्र का और बाद में कुछ क्षणों के लिए गांधीजी का दिखाई देना-नौजवान बैरिस्टर के रूप में ।) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर): हिंसक बाघ जैसे मित्रों के बीच अहिंसा की साधना करनेवाले इस साधक पुरुष की अब एक दूसरे मित्र से भेंट होनेवाली थी। यह मित्र थे एक होनहार शेर.....( वाद्यसंगीत) एक दिन की बात है। (17) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 18 • महासैनिक . इसी स्थान पर ध्यान की अवस्था में उन्हें एक झांकी हुई.... उन्हें दिखाई दिया यह शेर - हिंसक नहीं, अहिंसक ! अहिंसा के यह शेर थे एक नौजवान बैरिस्टर - (दृश्य में गांधीजी के युवा रूप का दर्शन-श्रीमद राजचन्द्र की (पुरुष-स्वर में श्रीमद् राजचन्द्र की वाणी): प्रवक्तावाणी (पुरुष-स्वर में श्रीमद् राजचन्द्र की वाणी): "वही.... बिलकुल वही.... यह वही आत्मार्थी है कि जिस की मैं प्रतीक्षा में था....." (वाद्यसंगीत) प्रति-ध्वनि : (बड़ी आवाज़) "वही... बिलकुल वही... यह वही आत्मार्थी है कि जिस-की मैं प्रतीक्षा में था...." ( वाद्यसंगीत) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर): (स्वप्न छायादृश्य क्रमशः समाप्त । अंधेरा, मंद मंद प्रकाश....) यह नौजवान आत्मार्थी बैरिस्टर, यह होनहार-अहिंसक शेर उन दिनों इस इडर से हज़ारों मील दूर था.... दूर.... सागर के उस पार.... अफ्रीका के अंधकार भरे जंगलों में । (सागर के मौजों का और भयानक जंगल की आवाज़ों का effect) प्रवक्ता-वाणी (पुरुष स्वार) : (अंधकार : वाद्य संगीत) यह अफीका हैं... वही अंधकार भरा काला काला खंड..... ! अंधकार.... असमानता.... अन्याय... शोषण... और अत्याचार से भरा अंधार-खंड़ !! यहाँ के दिल के भोले लेकिन चमड़ी के काले लोगों के नसीब में यह अंधकार ही शेष है। दिल के काले लेकिन चमड़ी के उजले इन्सानों ने इन काली चमड़ी के निवासियों को अत्याचारों के काले अंधेरे गड्डे में ही ढकेले हुए रखे हैं। (काले उसी लोगों की आकृति में और आर्तनाद) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर) : अंधकार के गर्त में खाँच हुए इस काले लोगों का दर्द एक 'काला' आदमी महसूस कर रहा था। वह वही अहिंसक शेर था, जो शक्तिमान होते हुए भी स्वेच्छा से सितमों को सहन कर रहा था और अंधेरे के बीच से मार्ग खोज रहा था। (अंधकार के बीच मार्म खोजती हुइ एक आकृति और पार्श्वगीत) पार्श्वगीत ( पुरुष स्वर): "प्रेमन ज्योति तारो दाखवी मुज जीवनपंथ उजाळ, दूर पड्यो निज धामथी हुँ ने घेरे धन अंधार, मार्ग सुझे नव घोर रजनीमां निज शिशुने संभाळ.... मारो. (दूर एक प्रकाश दिखाई देता है) डगमगतो पग राख तुं स्थिर मुज, दूर नजर छो न जाय, दूर जोवा लोभ लगीर न, एक डगलुं बस थाय, मारो. 1. 6 (18) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 19 (जल के बहने की आवाज़ ) कर्दम भूमि कळणभरेली ने गिरिवर केरी कराड, धसमसता जळ केरा प्रवाहो, सर्वे बटावी कृपाळ..... मने पहोचाडशे निज धाम....... ( दूर उषा का मंद प्रकाश : पंछियों का गान ) रजनी जशे ने प्रभात उजळशे, ते स्मित करशे प्रेमाळ दिव्यगणोनां वदन मनोहर मारे हृदय वस्यां चिरकाळ जे में खोयां हतां क्षण वार...... (उषा का प्रकाश अधिक तेजस्वी दिखाई देता है..... प्रवक्तावाणी चलती रहती हैं। कुछ क्षण बाद बालसूर्य पूरब में दिखाई देता है, वह अगली आकृति क्रमशः सूर्य की ओर जाती हुई और सूर्य से मिलती हुई दिखाई देती है - गांधीजी की आकृति का केवल पीठ भाग । वाद्यसंगीत चालु है ) प्रवक्ता - वाणी (स्त्री स्वर) : प्रकाश के इस शोधक को प्रकाश दिखाई दिया, अधिकतर के प्रदेशों को पार कर उसने पूरब में अपने ही वतन, भारत में, सत्य-सूर्य का दर्शन किया । इसी खोज की अभीप्सा उसे अनजाने ही बम्बई की ओर ले गई। उसकी प्रार्थना प्रेमळ ज्योति ने सुनी थी... दूर दूर से उसके आंदोलन इडर की उस पहाड़ी पर पहुँच चुके थे...) (वाद्यसंगीत • महासैनिक • 1 प्रवक्ता - वाणी (पुरुष स्वर ) : इड़र में अपनी चेतना के द्वारा गांधी के आगमन की पूर्वसूचना श्रीमद् राजचन्द्र ने पा ली थी फिर जब वे बम्बई लौटे तब बड़े ही अप्रत्याशित रूप से दोनों की प्रथम मुलाकात हुई एक अहिंसा के जन्मजात उपासक, दूसरे अहिंसा के प्रतिष्ठायक भावी महासैनिक ! अपनी सत्य की खोज के उपक्रम में युवा गांधीने श्रीमद् राजचन्द्र जैसे अहिंसानिष्ठ और सत्यसंपन्न आत्मदर्शी को अपने मार्गदर्शक के रूप में पाया, तो राजचन्द्र ने उनके जैसे आत्मार्थी अभीप्सु को परममित्र के रूप में ! — प्रवक्तावाणी (स्त्री स्वर) फिर गांधी गये अफिका और राजचन्द्र रहे भारत में परन्तु दूर दूर से भी उनके दिशा-दर्शन में गांधी की अहिंसा साधना चली - शोषण, सितम और हिंसा से त्रस्त मानवता के लिए नूतन क्षितिजों को खोजती हुई... । इस बलवती साधना से गांधी में सोया हुआ यह महासैनिक जाग उठा... काले अंधेरे बीहड वनों में मार्ग खोजनेवाला वह अहिंसक शेर संसार के सितमों, अन्यायों और अत्याचारों के सामने दहाड़ उझ ! ठा (शेर की गर्जना, धीर गंभीर आवाज़ में बालसूर्य और आकृति वाले दृश्य का समाप्त होना और शेर की गर्जना के साथ ही जनरल का... नींद से जाग जाना... स्वप्न के दृश्यों और आवाज़ों की ही धुन में । खिड़की के बाहर दूर सूर्यदर्शन प्रभात का वातावरण, पंछियों का थोड़ा-सा भास क्योंकी आवाज़े बंद हैं ।) (19) 1276 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proor Dr. 23-5-2017 - 20 • महासैनिक . अंक-२ दृश्य : तीसरा जनरल (स्वप्न से जागकर, कुछ भयभीत, अपने पलंग के बाहर खिड़की की ओर देखकर)"शेर... शेर... बाघ बाघ..." सिपाही (बाहर पेहरे पर से दौड़े आकर): .... क्या है, क्या है साहब ? कोई सेवा... ? जनरल : (स्वस्थ होकर) : कुछ नहीं, तुम जा सकते हो... (सिपाही सॅल्युट कर बाहर जाता है। जनरल स्वगत बोलता है-) ओह ! वह सिर्फ सपना ही था !! अपने को ही शोभा दें ऐसी दिखती है गांधी के अहिंसक मार्ग-दर्शक की और गांधी जैसे अहिंसक सैनिक की बात । हाँ, यह अगर सही हो तो बड़े ही ताज्जुब की बात है कि... वाघ जैसे क्रूर हिंसक जानवर भी किसी योगी के सामने कूत्ते की तरह बैठ जायें, लेकिन इसमें या तो सरासर झूठ है, या कोई जादू ! ( उठता है, टेइप रिकार्डर चालु कर मुँह धोता है। टेइप रिकार्डर से गांधीवाणी सुनाई देती है-) गांधी-वाणी : "अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः". भारत के ऋषियों ने यह अपने अनुभव से कहा है कि जहाँ अहिंसा की प्रतिष्ठा होती है, अहिंसा में निष्ठा होती है, वहाँ सामनेवाला अपना स्वभावगत वैर भूल जाता है, चाहे वह फिर हिंसक पशु भी क्यों न हो।" (जनरल चौंकता है और टेइपरिकार्डर बंद कर, खिड़की से बाहर देखकर सोचता हुआ बोलता है -) जनरल : तो क्या गांधी के मार्गदर्शक ने सचमुच ही बाघ-शेर को वश किया था? उसमें कोई झूठ या जादू क्या नहीं था? क्या वह सिर्फ प्रेम और अहिंसा की निष्ठा का ही प्रभाव था..... ? (घूमता है -) मार्शल : (प्रवेश करते हुए) "गुड मोर्निंग, सर ! क्या मैं आ सकता हूँ अंदर ?" जनरल : वॅरी गुड मोर्निग मार्शल, कम इन, बेशक कम इन । मार्शल : कहिये साहब ! रात नींद कैसी आयी? मैं तो आप को नींद आती देख किताब आधी छोड़कर ही चला गया था - जनरल : तुमने ठीक ही तो किया था। नींद तो मुझे अच्छी आ गई । इतना ही नहीं, तुम जो पढ़ रहे थे उसके सिलसिले में मैंने एक ख्वाब भी देखा । + "अहिंसा.... वैरत्यागः ।" : पातंजलयोगदर्शन । (20) Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 21 मार्शल : ख्वाब ? आप जैसे के ख्वाब की बात भी जनरल : (मार्शल का वाक्य काटते हुए ) - बड़ी दिलचस्प भी हैं, अजीब भी हैं और उलझन में डालनेवाली भी ! • महासैनिक • - मार्शल : अगर आपको कष्ट न हो तो क्या मैं वह जान सकता हूँ ? जनरल वही गांधी के मार्गदर्शक की बाघों वाली और अहिंसा की ताकतवाली बात, जिसे कल रात तुम पढ़ रहे थे..... 1 मार्शल : ओह.... मुझे भी वह बड़ी अजीब और दिलचस्प लगती थी घड़ीभर जी में आया कि रात उस किताब को पढ़ डालूँ, लेकिन इन प्लानों को तैयार करने का फर्ज़ सामने था इसलिए अपने को रोक लिया । जनरल : ओह ! तुम्हें भी इतनी दिलचस्पी है तो लो ये किताबें, ज़रुर पढ़ लो । पढ़ने के बाद तुम से बहस करने से शायद हम कुछ ज़्यादा समझ सकें। यह लो मार्शल को "गांधी- एक सत्यशोधक" एवं गांधी- एक महासैनिक", "गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक" ये तीन किताबें देता है ।) मार्शल : बहुत बहुत शुक्रिया, साहब ! जनरल इसे तुम देख जाओ, मैं तैयार हो जाता हूँ। बाद में हम हमारे प्लान्स के बारे में सोचेंगे और इस बारे में बहस भी करेंगे और तुम इस टेप रिकार्डर का भी उपयोग कर सकते हो । 1 (21) मार्शल : बहुत अच्छा, साहब । ( जनरल टैन्ट के अंदर जाता है, प्रातः कर्म निपटाता है मार्शल ('गांधी- एक सत्यशोधक' एवं 'गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक किताबें पढ़ते हुए - ) - " अपने अहिंसक मार्गदर्शक के बारे में गांधी ने खुद कहा था - 'मुझ पर सबसे ज्यादा असर और उपकार रायचंदभाई ( श्रीमद् राजचंद्र ) का है। खून करनेवाले से भी प्रेम करने का दयाधर्म उन्होंने मुझे सीखाया है। मैंने उनसे इस धर्म का आकंठ है.....।' इस प्रकार श्रीमद राजचन्द्र के जीवनभर के प्रभाव ने गांधी को अहिंसा तत्त्व को अपनाने और विकसित करने में सहायता की। बाहरी और भीतरी आसुरी बलों से लड़ने का आदर्श उन्हें अपने प्रिय धर्मग्रंथ गीता से प्राप्त हुआ था । इसी आदर्श के साथ उन्होंने अहिंसा के तत्त्वको दिया और अपने अहिंसक प्रतिकार या शांत सत्याग्रह के हथियार का निर्माण किया....... और इस प्रकार.... इस प्रकार 'सत्यशोधक गांधी' से 'अहिंसा के महासैनिक' ऐसे गांधी का जन्म हुआ... !" ( वाद्यसंगीत । मार्शल का रुक जाना। 'गांधी एक सत्यशोधक' किताब रख देना और 'गांधी एक महासैनिक' किताब खोलकर घूमते हुए और खिड़की के पास खड़े खड़े मन ही मन पढ़ते रहना... वाद्यसंगीत लगातार चालु । ) १७. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017.22 महासैनिक. मार्शल : (प्रगट) : अहिंसा के महासैनिक गांधी... अहिंसा के महासैनिक गांधी ! बड़ी अजीब बात (घूमता है और स्वीच दबाकर टेइप रिकार्डर चालु कर खिड़की से दूर देखता रहता है । टेइप सुनकर सोचता रहता है।) पार्श्ववाणी : प्रवक्ता : पुरुष स्वर (टेइप से) "गांधी संसार के सबसे बड़े योद्धा थे - हिंसक युद्धों के विरोधी और अहिंसक युद्धों के महासैनिक, सत्याग्रही । धरती पर से जिन का सूरज कभी ढ़लता नहीं था वैसे ब्रिटिश एम्पायर को उन्होंने हिला दिया... । उनका नया 'अहिंसक दल' अंग्रेजों के लिए एक सरदर्द था, एक चुभता हुआ तीर था, उन्हें तंग कर देने वाला एक बड़ा निराला बम था !... "दक्षिण आफिका का सत्याग्रह, रालैट एक्ट - 'काले कानून' - का सविनय भंग, जलियाँवाला काण्ड के खिलाफ सामूहिक सत्याग्रह, खिलाफ़त आंदोलन, चौरीचौरा सत्याग्रह पर का असहयोग आंदोलन ऐतिहासिक दांडीकूच, १९४२ का भारत छोड़ो आंदोलन इन सभी अहिंसक संग्रामों ने सिद्ध कर दिया कि गांधी एक ऐसा निराला योद्धा था, एक ऐसा महासैनिक था जो कि मानव इतिहास में पहले कभी पैदा नहीं हुआ.... ॥ मार्शल : (टेइप की.... पार्श्ववाणी से प्रभावित होकर उसे सोचते और दोहराते हुए -) "गांधी ! - एक ऐसा महासैनिक, जो कि मानव इतिहास में पहले कभी पैदा नहीं हुआ !" ('गांधी - एक महासैनिक' किताब पढ़ता हुआ मार्शल बैठ जाता है।) ( वाद्यसंगीत : अंधेरा : पर्दा गिरता है।) ( यहाँ तीसरा दृश्य और दूसरा अंक समाप्त) (22) 1016/ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017 - 23 • महासैनिक • अंक-३ दृश्य : प्रथम स्थान : वही समय : प्रातःकाल मार्शल : (आरम्भ में खिड़की के पास कुर्सी पर किताब में मुंह डाले पढ़ते हुए, बाद में खिड़की के बाहर विचारमुद्रा में देखते हुए और बाद में उस कमरे में चक्कर काटते हुए : किताब हाथ में ही है : 'गांधी - एक महासैनिक'।) गांधी के मार्गदर्शक ने अपनी अहिंसा के जरिये बाघ-शेर को अपने मित्र बना कर जीत लिया है,तो गांधी ने अपने देश के दुश्मन शासक अंग्रेजों को ! जनरल (अंदर से युनिफोर्म पहनकर आते हुए): लेकिन मुझे तो मार्शल, ये सारी बातें बनावटी दिखाई देती हैं। ऐसा कैसे मुमकिन हो सकता है ? सवाल यह है कि दुश्मन को या तो मारकर जीता जा सकता है या हराकर ।.... अहिंसा या प्रेम से युद्ध में काम किस तरह चल सकता है? मार्शल : मैं भी यही सोचता हूँ, साहब ! जनरल : अच्छा, इस किताब में गांधी के उन अहिंसक युद्धों के बारे में उनके तरीकों के बारे में क्या बताया है ? मार्शल : उनके सभी ऐसे युद्धों में - सच्चाई पर डटे रहना, खुद मरना पड़े तो भी हथियार नहीं उठाना और दुश्मन के खिलाफ नफरत नहीं रखना, वगैरह तरीके खास तौर पर जान-पड़ते हैं। इन तरीकों के साथ 'असहयोग' को जोड़कर वे सब युद्धों में लड़े हुए दिखाई देते हैं। जनरल : लेकिन इसके परिणाम क्या आये है ? मार्शल : परिणाम में या तो दुश्मन झुक गया है, या बदला है । कहीं कहीं असफल भी होना पड़ा है। हकीकत में शुरु में तो असफलता ही असफलता रही; लेकिन कहते हैं कि, गांधी अडिग रहे, उनके पीछे उनका सारा देश चलता रहा और आखिर दुश्मनों को अपने देश से हटाने के हद तक तो वे सफल हुए ही ।। जनरल : गांधी की सफलता जिस-से बढ़ी हो ऐसे उनके युद्ध कौन कौन से थे ? मार्शल : वैसे तो सभी युद्धों का बड़ा असर है लेकिन १९३० का 'दांडीकूच' का नमक का सत्याग्रह और १९४२ का 'भारत छोड़ो' आन्दोलन - ये दो उनके सारे देश को जगाने वाले और आखिर को सफलता दिलानेवाले साबित हुए । (23) Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof DL. 23-5-2017 - 24 • महासैनिक जनरल (कुछ याद कर) : अरे हाँ, शायद बूढ़े बाबा ने- उन्हीं युद्धों के कुछ चार्ट्स भी बंडल में रखे हैं, देखें । (बंडल को भीतर से दोनों मिलकर चार्ट्स निकालते हैं और दीवारों पर अपने युद्ध के नकशों के पास लटकाते हैं -) और शायद इन युद्धों के बारे में कुछ टेइप्स भी हैं। अगर हमारे प्लानों की मिटिंग की देरी न होती हो तो यह भी सुनें । मार्शल : (घड़ी देखकर) अभी १५ से २० मिनट काफी हैं, साहब ! जनरल : तब तो हम जरुर सुन लें,(टेइपरिकार्डर चालु करते हैं, एक बार पट्टी को आगे-पीछे करने के बाद - दोनों टेइप को सुनते रहते हैं और चार्ट्स को देखते रहते हैं, जो कि बड़े, साफ, कलात्मक और दर्शनीय हैं।) पार्श्ववाणी : गांधीजी की आवाज़ अथवा पुरुष-स्वर (टेइप से) "मैं कौओं और कुत्तों की मौत मरना पसन्द करूँगा, लेकिन आजादी पाये बिना मैं आश्रम लौटूंगा नहीं... ।" पार्श्ववाणी : स्त्री स्वर : - इस प्रतिज्ञा के साथ गांधीजी ने अपनी और देश की साधना का प्यारा केन्द्र साबरमती आश्रम छोड़ा - १२ मार्च, १९३० के रोज़ । इस २४१ मील लंबी महान ऐतिहासिक कूच में साबरमती से दांडी के सागरतट तक अपने ७९ अहिंसक साथी सैनिकों के साथ गांधीजी पैदल चलते हुए गये । उनके पीछे हज़ारो और लाखों लोग चल निकले - सब के सब बिना हिंसक हथियारों के ! हाथ में 'चरखा', दिल में सरफ़रोशी की तमन्ना और मुख में राम का मालिक का नाम लिए !! कूच के गाँव गाँव में गूंजता रहा चरखा और रामनाम और जाग उठा विराट लोकसमाज - पार्श्वगीत : एकाकी पुरुषस्वर (गुजराती दोहे): "वण भालां, वण बरछी, वण तलवार वण तोप, तारं कटक काळो कोप, वण हथियारे वाणिया... ! "एक रणुंके रेंटियो ने बीजो रणुंके राम, साबरमतीनो श्याम, तें तो घेलां कीधां गाम !" (संकलित) पार्श्व (प्रवक्ता) वाणी (स्त्रीस्वर): क इस कूच का मकसद था 'नमा का कानून' तोड़ना और इस बहाने सारे मुल्क को जगाना । नमक - आम जनता और मुल्क की आज़ादी का प्रतीक !! नमक बनाना और उसके कानून को तोड़ना सीधी सादी लेकिन असर के लिहाज से एक बड़ी बात थी । दांडीकूच के इस नमक सत्याग्रह के मकसद को समझाते हुए गांधीजी ने तब कहा था - (24) / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 25 पार्श्व- गांधी - वाणी (पुरुषस्वर ) : "नमक का बनाना सिर्फ प्रतीक के तौर पर है। चूँकि देश के गरीब से गरीब आदमी के लिए आज़ादी का आंदोलन जरुरी है, शुरुआत इससे की जाएगी... इस सत्याग्रह में भाग लेनेवाला सत्याग्रही अपने कार्य की सच्चाई में निष्ठा और अपने साधनों की शुद्धि इन दोनों को लेकर काम करेगा । जहाँ साधन शुद्ध होते हैं, वहाँ परमात्मा अपने आशीर्वादों के साथ निःसंदेह हाज़िर रहता है । और इन तीनों का मेल जहाँ होता है वहाँ हार असंभव हो जाती है। एक सत्याग्रही का नाश तब होता है जब वह सत्य, अहिंसा और अंतरात्मा की आवाज़ को भूल जाता है..... ।” - (वाद्य संगीत ) • महासैनिक • पार्श्ववाणी - स्त्रीस्वर ( मार्शल चार्ट्स को, जनरल दूर बाहर को देखते सोचते रहते हैं ।) और सत्य, अहिंसा एवं अंतरात्मा की आवाज़ जैसे इन विशुद्ध साधनरूपा... प्रवाह लिए गांधीजी की सत्याग्रही शांतिसेना रूपी सरिता साबरमती नई दिशा में बहती रही दांडीतट के सागर की ओर - पार्श्वगीत (पुरुषस्वर ) "साबरमती से चला संत एक अहिंसा का व्रतधारी दुनिया में सन्नाटा छाया, कांपे पृथ्वी सारी... साबरमती से कंधे कंबलिया, हाथ में लाठी एक लंगोटी धारी, चला 'नमक कानून तोड़ने, स्वराज का अधिकारी.... साबरमती से" पार्श्ववाणी (स्त्रीस्वर ) ) इस संत और उसकी सत्याग्रह रूपी सरिताने जब दांडी के तट पर पहुँचकर अपना विराट रूप विस्तृत किया तब उसके इस नारे की गूँजने ब्रिटिश सल्तनत को हिला दिया - पार्श्ववाणी (समूहघोष ) "नमक का कानून तोड़ दिया... !'' ( २ ) पार्श्ववाणी ( स्त्रीस्वर ) निर्भयता और अपने विशुद्ध साधनों को लिए इस अहिंसक युद्ध के महासैनिक गांधीजी और उनके सैनिकोंने हँसते-हँसते कैद, मार और मोत सब कुछ स्वीकार किया। इसके परिणामरूप दिनोंदिन देश जागता रहा और १९४२ तक तो उसकी गूंज प्रचंड हो गई... कोटि कोटि कंठों से आवाज़ निकली (25) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-26 महासैनिक . पार्श्ववाणी ( समूहघोष): "भारत छोड़ो, भारत छोड़ो... ! इन्कलाब जिंदाबाद... करेंगे या मरेंगे, करेंगे या मरेंगे।" (वाद्यसंगीत) पार्श्ववाणी (स्त्रीस्वर): _____ और आखिर भारत आज़ाद हुआ । अहिंसा के महासैनिक गांधीजी के युद्ध सफल ही नहीं, मिसाल भी बन गये। (वाद्यसंगीत : सितार । एफेक्ट्स : अन्य ध्वनि : घंटनाद, ट्रम्पेट्स ।) जनरल : (प्रतिक्रिया के साथ ) तो आखिर भारत अहिंसक युद्धों के जरिये आज़ाद हुआ? और वह भी लहू लेकर नहीं, लहू देकर... ? (टेइप रिकार्डर बंद करता हैं ।) मार्शल : बड़ी अजीब बात है ! ऐसा कभी हो सकता है ? जनरल : मैं भी यही सोचता हूँ, ऐसा कभी हो सकता है ? ऐसा सैनिक भी कहीं हो सकता है ? मार्शल : सवाल तो मेरा भी यही है, साहब ! पर फिर भी यह है एक हकीकत ! इतिहास इसका गवाह है !! . जनरल : ..... हो सकता है, लेकिन हमारे लिए ये बातें fairy tales परियों की कहानियों से अधिक नहीं हैं ।... अगर हम हमारे युद्धों में इस तरीके को अपनाना चाहें तो किस प्रकार अपना सकते हैं ? यह बात तो सोचने जैसी और पेचीदी है, और सचाई रखकर शायद इस का हल लेकिन बूवी ढूँढ सकते हैं, साहब !,(घड़ी में समय देखकर ) अब हमारे प्लान-मिटिंग का वक्त हो चुका जनरल : ओह, छोड़ें इन फिजूल की बातों को, आओ, बैठें । मार्शल : (बाहर दरवाजे की ओर देखते हुए) ये फिल्ड मार्शल भी आ गये... । फिल्ड मार्शल : (प्रवेश करते हुए, फौजी अदब में) गुड मोर्निंग सर, क्या मैं आ सकता हूँ? जनरल : यस, कम इन । फिल्ड मार्शल : (सेल्युट.कर, प्लान्स देते हुए) ये हमारे आज के प्लान्स, साहब । (जनरल ले लेते हैं और मार्शल के साथ देखकर कुछ प्लान दीवार पर लटकाने को देते हैं और कुछ टेबल पर रखवाकर work out करने बैठते हैं । फिल्ड मार्शल फोल्डिग टेबल को सामने रख देते हैं, तीनों बैठते हैं ।) फिल्ड मार्शल : ( साथ में एक बड़ा प्लान रखकर) इस प्लान को भी लटका दूँ न साहब ? (26) Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 27 • महासैनिक . मार्शल : कौन सा प्लान है वह ? फिल्ड मार्शल : “SPACE WAR PROGRAMME-2048" A.D. का । जनरल : हाँ, यहीं नज़दिक ही लटकाओ। (फिल्ड मार्शल बैठक टेबल के नजदिक की दीवार पर वह लटकाते हैं । बड़े अक्षरों में उस पर लिखा हुआ है "SPACE WAR PROGRAMME - 2048 A.D.'.....) मार्शल : (प्लान-टेबल पर जनरल और फिल्ड मार्शल को एक प्लान में कुछ बतलाते हुए ।) यह है हमारा एक (Important spot) इम्पोर्टेन्ट स्पोट । आज हमारा राकेट स्पेइस सोल्जर्स (Space soldiers) के साथ यहाँ तक पहुँच जाएगा। वहाँ उसे हमारे स्पेइस स्टेशन (Space station) के जरिये सीधे ही 'डिरेक्टीव्ज़' (Directives) मिल सकेंगे। जनरल : ( देखकर अभ्यास करते हुए और पोइन्टींग स्टीक से दीवार पर स्थित Space War Programme-2048 A.D." वाले प्लान को दिखलाते हुए।) यह हमारा ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन.... यह स्पेइस स्टेशन... और यहाँ होना चाहिए वह नया स्पोट, क्यों ? मार्शल : ऐक्जेटली, सर । जनरल : (सोचकर, फिल्ड मार्शल से) हमारे ग्राउन्ड स्टेशन कन्ट्रोलर को और कोस्मोनोट स्पेइस सोल्जर को फौरन बुलाइए । (फिर प्लान के साथ उठकर, जाते हुए) यस सर । (दरवाजे के पास जाकर सोल्जर को सूचना देते हैं और वापिस आकर टेबल के पास बैठ जाते हैं । जनरल और मार्शल के प्लान-निरीक्षण के काम के साथ जुट जाते हैं।) जनरल : (मार्शल से, गंभीरता के साथ) कल हमने हमारे प्रेसिडैन्ट और डिफैन्स मिनिस्टर के साथ तय किया है कि हमारे प्लान्स में कुछ चैन्ज किया जाय - मार्शल : मतलब हमारा आज का राकेट छोड़ने का प्रोग्राम..... ? जनरल : वह तो होगा ही । लेकिन साथ में कुछ और भी करना है। मार्शल : ( आतुरता से ) क्या ? फिल्ड मार्शल : एकस्क्यु ज़ मि सर, लेकिन आज के राकेट छोड़ने के अब छ घंटे ही बाकी रह गये हैं। जनरल : दैट आइ नो, आइ एम कॉन्ण्यस आठ इट. अबा34 b०५) (That I know, I am conscious of/it...) राकेट छोड़ने के काम में इस से कोई बाधा नहीं पड़ेगी, उसके बाद का यह काम है । ( प्लान... देखते हैं) (सिपाही आकर सेल्युट करता है) सिपाही : साहब, स्टेशन कन्ट्रोलर सा'ब आ गये हैं ... । (27) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017- 28 जनरल : अंदर भेज दो सिपाही: जी, अच्छी बात । (जाता हैं। ) ग्राउन्ड स्टेशन कन्ट्रोलर : गुड मोर्निंग, सर । जनरल : गुड़ मोर्निंग ( इशारे से बैठने को कहता है, बैठता है ।) ... 1 हमारा पहला राकेट अब कहां तक पहुंचा है ? स्टैशन कन्ट्रोलर ( नकशे में बतलाकर) वह अब ठीक उसी स्पोट पर पहुँच चुका हैं । • महासैनिक • जनरल (घड़ी देखते हुए) : तो अब थोड़ी ही देर में उस राकेट के हमारे अवकाशी सैनिक अपना काम शुरु कर देंगे न ? मार्शल (बीच में) शुरू ही क्या, तमाम हुआ समझें क्यों मि. कन्ट्रोलर ? : स्टेशन कन्ट्रोलर जी हाँ साहब, दुश्मन देश के करीब सभी आदमियों का अब खात्मा ही हुआ समझो... - जनरल : ( दीवार पर दूर लटकते हुए दुनिया के नकशे के पास जाकर ) बहुत अच्छा । आज इस देश का यह रंग..... दुनिया से मिट जायगा और दुनिया देखती रह जायगी । ( उतना रंग मिटाने की कोशिश करता है निकट का गांधी का नकशा मानों उसे कुछ कहता हुआ रोकता है वहाँ लिखा हुआ "विश्वशान्ति का महासैनिक महात्मा गांधी ।....." — : "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं। इसलिए दूसरों को मिटाने की महत्त्वाकांक्षा I छोड़ो जीयो, जीने दो और संसार को सुंदर रहने दो... " ( पार्श्वगीत की पंक्ति सुनाई देती है - 'गर्व कियो - सोई नर हार्यो...." ) पार्श्वगीत पंक्ति : ( स्त्रीस्वर ) "गर्व कियो सोई नर हार्यो..." जनरल : ( प्रतिक्रिया के साथ नशे का रंग मिटाते हुए और गांधीवाले नकशे का सूत्र पढ़ते हुए ) "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं....." ( सोच में पड़ जाता है । जनरल रुककर विचार में खो जाता है, दूसरे सब स्तब्ध रहते हैं। कुछ क्षणों के बाद जनरल का सुप्त अहंकार प्रबुद्ध होकर जाग उठता है और उसकी घनी आवाज़ सुनाई देती है, प्रथम पार्श्वघोष के रूप में और बाद में जनरल के प्रकट वाक्योच्चार के रूप में - ) (28) पार्श्वघोष (जनरल का ): "नहीं.... नहीं... हम कैसे मिट सकते हैं? हमें कौन मिटा सकता है ? तीसरे विश्वयुद्ध के हम विजयी लोग और मैं... मैं भी कौन ? हम इस चौथे विश्वयुद्ध में दुश्मन देशों का रंग मिटाकर ही रहेंगे....." Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proor Dr. 23-5-2017 - 29 .महासैनिक. ( वाद्यसंगीत और पार्श्वगीत पंक्ति : 'गर्व कियो सोई नर हार्यो') जनरल (प्रकट): "..... तीसरे विश्वयुद्ध के हम विजयी लोग और मैं... मैं भी कौन ? हम इस चौथे विश्वयुद्ध में दुश्मन देशों का रंग मिटाकर ही रहेंगे.... ।" . मार्शल : ( उसी भाव में) अब मिटने मे थोड़ी ही देर है साबह.. ! पार्श्वघोष (मार्शल की प्रतिध्वनि): "अब मिटने में थोड़ी देर है..... ।" ... पार्श्वगीत पंक्ति : "गर्व कियो सोई नर हार्यो...." (जनरल, मार्शल, फिल्ड मार्शल, ग्राउन्ड कन्ट्रोलर - सभी फिर प्लान्स पर केन्द्रित होते हैं।) फिल्ड मार्शल (जनरल से): तो आप क्या चैन्ज बतला रहे थे, साहब ? जनरल : हाँ, देखो हमारे इस दूसरे राकेट को छोड़ने के बाद तुरन्त ही तीसरा राकेट हम छोड़ना चाहते हैं जिससे हम दुश्मन देश के एटमास्फीयर को एफेक्ट कर सकें- हमें पहले बरसात बरसानी है और बाद में पाइजन गैस छोड़नी है ... । मार्शल : Artificial Rain और फिर Poison Gas ? जनरल : हाँ, हमारे प्रेसिडैन्ट यह चाहते हैं । पार्श्वगीत पंक्ति: ___ "पांच सात शूराना जयकार काज खेलाणा खूब संहार - (२)" फिल्ड मार्शल : Excuse me, Sir, लेकिन इस से तो दुश्मन को ही नहीं दूसरे और हमारे देश पर भी असर होगा। जनरल : इन सारी सम्भावनाओं को सोचा गया है Poision Gas के बाद हमारे देश तक असर होने में आठ-दस रोज लग जायेंगे। उसके पूर्व तो हमारे देशवासी पृथ्वी को खाली कर चंद्र पर बसने पहुंच गये होंगे ! स्टेशन कन्ट्रोलर : तो क्या चन्द्र पर बसने जल्दी ही जाने का प्रोग्राम है ? जनरल : जल्दी ही, कल तो सारे Moon Crafts हमारी बस्ती को उड़ाकर ले जानेवाले हैं और उधर चन्द्र की भूमि पर सब कुछ करीब करीब तैयार है। मार्शल : तो प्रेसिडैन्ट ने हमारे लोगों को यह सूचित भी कर दिया है क्या ? जनरल : हाँ, सभी को । अब तो वहाँ बड़ी जोरों की तैयारियां चल रहीं हैं। स्टेशन कन्ट्रोलर : फिर तो हमें भी जल्दी करनी चाहिए । जनरल (कन्ट्रोलर से) सारी आवश्यक साधन-सामग्री तो तैयार है न ? (29) Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 30 • महासैनिक • स्टेशन कन्ट्रोलर सब तैयार है, चैकिंग कर लेना होगा और चालु प्रोग्राम की ओर ज्यादा कानश्यस (Conscious) रहना पड़ेगा । dalise the जनरल : (मार्शल से) और हमारे अवकाश सेना (Space Force) के सैनिक भी सारे तैयार हैं न ? मार्शल : सब तैयार, all are well equipeed & कॉस्मोनोट ever ready, Sir यह देखिए हमारे स्पेस सॉल्जर की आ गयें । 아 (अवकाशी सैनिक Space Soldier का अपनी विशेष अवकाशी वर्दी युनिफोर्म में प्रवेश ) स्पेइस सॉल्जर : ( प्रवेश कर सेल्युट करते हुए) गुड़मोर्निंग, सर ! : । जनरल (सॅल्युट करते हुए) गुड़ मोर्निंग देखो, तुम तो आज की फ्लाइट (Flight) राकेट लिए जाओगे, लेकिन तुम्हें बहुत ही कानश्यस (Conscious) रहना है और सारे प्लान को केरी आउट (Carry out) करना है । स्पेइस सॉल्जर : यस सर । जनरल तुम्हारे राकेट के बाद पाइजुन गैस (Poision Gas) का राकेट छोड़ा जानेवाला है इस के बारे में सारा ख्याल तुम्हें भी होना चाहिए। स्टेशन कन्ट्रोलर साहब से यह समझ लेना । स्पेइस सॉल्जर जो आज्ञा । (कन्ट्रोलर से) साहब ! स्पेस स्टेशन से कुछ इंडिकेशन्स (Indications) : संकेत आ रहे हैं, यदि आप कन्ट्रोल रुम पर अब चल सकें तो.... ( सब घड़ी देखते हैं ) जनरल : ( इशारे से ) हाँ अब तुम्हें जाना चाहिये । आप भी मार्शल मैथ्यु, जाकर सारी डेवलपमेन्टस का स्टडी करें और मुझे इन्फार्म करें। : मार्शल यस सर (मार्शल, कन्ट्रोलर, स्पेइस सॉल्जर सभी जाते हैं, फिल्ड मार्शल अकेले जनरल के साथ हैं ।) जनरल : (फिल्ड मार्शल से ) इन सारे प्लान्स को एक ओर रख दो और वायरलैस फोन के साथ राकेट मुवमैन्ट इन्ड्रकेटर जो दूसरा है वह यहाँ भिजवा दो । फिल्ड मार्शल : अच्छी बात, साहब। (जाता है ।) जनरल : ( अकेला, चक्कर काटता हुआ, घड़ी देखता हुआ ) अब थोड़ी ही देर है ... थोड़ी ही देर... ! थोड़ी देर के बाद दुनिया चौंक उठेगी हमारी सिद्धि पर.... । थोड़ी देर के बाद दुश्मन का रंग मिट जायगा इस नकशे से... । ( नकशे के पास जाता हैं, जो अभी लटक रहा है, लेकिन बाजु का गांधीजी वाला यह चार्ट उसे फिर रोकता हैं । उसके चित्र को एवं शब्दों को एकटक देखतेपढ़ते हुए यह दोहराता हैं -) " दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं।" (30) Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 M Second Proof Dt. 23-5-2017 - 31 ( टेपरिकार्डर चालु करता है।) पार्श्ववाणी (पुरुषस्वर : टेइप से ) "वैर का शमन वैर से कभी नहीं होता...." (वाद्यसंगीत ) • महासैनिक • जनरल (प्रतिक्रिया से टेइप बंद करते हुए) ये सब अहिंसकों के बकवास की पुरानी, युटोपियन (Utopian) बाते हैं। इन बातों को रहनेवाले गांधी अपने ढंग के एक सैनिक हो तो भी वे अब तक संसार को एक नहीं कर पाये । उनके सामने अब मुकाबला है हमारे ढंग का । देखें, अब इस नकशे का रंग हमारे ढंग से बदलता है या नहीं ? अब थोड़ी ही देर है (घड़ी देखकर ) बहुत थोड़ी..... (सिपाही आकर टेबल पर 'वायरलैस फोन' और 'राकेट मुवमैन्ट इन्डीकैटर' रख जाते हैं । जनरल घड़ी देखते हुए उनके सामने बैठ जाता है। उसकी वाणी की प्रतिध्वनि गूंजती रहती है) पार्श्वघोष (जनरल का ) "अब थोड़ी ही देर है, बहुत थोड़ी...' (वाद्यसंगीत ) जनरल : ( इन्डीकैटर पर दिखाई देनेवाली राकेट की मुवमैन्ट्स को गौर से देखते हुए, कुछ गरबड़ पाकर सचिंत होते हुए - ) यह क्या बात हैं, क्या गरबड़ हैं ? ( घड़ी देखकर ) समय तो बिल्कुल ठीक हो चुका... ! ( अचानक इन्डीकेटर पर गरबड़ बढ़ती है और भयसूचक चेतावनी की आवाजें आती है, जिन्हें सुनकर और मुमेन्ट्स देखकर अत्यन्त उद्विग्न होकर घबड़ाये हुए - ) यह क्या हो रहा है, यह क्या ( वायरलैस फोन उठाता है और स्पेइस स्टेशन से जोड़ता है ।) हलो ! हलो ! स्पेस स्टेशन - T ? आवाज़ : यस आरन्ट कन्ट्रौल ? यह स्पेस स्टेशन 'T' है..... जनरल : मैं जनरल व्हाइटफिल्ड बोल रहा हूँ... यह इन्डीकैटर क्या बता रहा है, राकेट की क्या कंडीशन हैं ? आवाज़ हमारे स्पेश सोल्जरों ने कुछ गलती की दिखाई देती है, Excuse me मै अभी एक मिनट में फिर आप से बात करता हूँ... ( भयसूचक आवाज़े चालू, जनरल तो उद्विग्न और क्रुद्ध होकर कमरे में हाथ मलते हुए चक्कर काटते हैं ।) जनरल : यह क्या unexpected ? ( फोन की घंटी बजती है ।) आवाज़ : "हलो... हलो... धीस इज स्पेस स्टेशन ०००...... I am very very sorry to inform you General, that our Space soldiers missed the point -( हमारे स्पेइस सिॉल्जरों ने निशान चुका दिया है) / (चुक गये है हमारे स्पेस सोनजर निशाना (i) चुक गये हैं। ए ---- Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017 - 32 • महासैनिक. जनरल : हमारे सॉल्जरों ने निशान चुका दिया है ? बड़ी ही खौफनाक बात है यह... आख़िर हुआ है क्या ? दुश्मन की चाल ? आवाज़ : दुश्मन की चाल तो नहीं, क्योंकि राकेट वैसे पूरा कन्ट्रोल में है, खाली कॉन्टैक्ट टूट गया है कम्युनिकेशन्स नहीं हो पा रहा, लेकिन साफ़ है कि हमारे सॉल्जरों ने भारी गलती कर निशान चुका दिया है। जनरल : मतलब, बॉम्बिग निशान पर नहीं हुआ ? आवाज़ : नहीं, साहब.... । जनरल : अच्छा तुम फिर से सूचना देना अब राकेट कान्टैक्ट जोड़ने की कोशिश करो। मैं हमारे H.Q. से बात करता हूँ। (फोन रखता है, इन्डीकैटर की गरबड़ और आवाजें बढ़ जाती हैं, बाहर से मार्शल और फिल्ड मार्शल दौड़े दौड़े आते हैं...) मार्शल (घबड़ाये हुए) H.Q. से बड़ी ही कमनसीब खबरें हैं साहब... (जनरल की उत्सुकता और चिंता बढ़ जाती है।) फिल्ड मार्शल : यह कमनसीब और ख़तरनाक खबर यह है कि हमारे स्पेइस सॉल्जर निशान चुक गये और बॉम्बिग हमारे ही देश.... (आवाजें, प्रत्याघात, वाद्यसंगीत एफेक्ट्स ) जनरल : हमारे ही देश पर हमारे ही सॉल्जरों द्वारा बॉम्बिग ? Oh my God ! (कठारे आघात से कुछ लुढ़क जाता है....) (वाद्यसंगीत) जनरल (शीघ्र ही स्वस्थ होकर H.Q. से फोन जोड़ते हुए): हलो, धीस इज़ जनरल व्हाइटफिल्ड फोम ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन... क्या ये कमनसीब खबरें सच है ? आवाज़ H.Q. से : We very very regret Sir यह सच है कि - बॉम्बिग हमारे ही देश पर हुआ... ! पूरा का पूरा उत्तरी हिस्सा तबाह हो चुका है (वाद्य effect)... !! जनरल : (अधिक प्रत्याघात अनुभव कर) पूरा का पूरा उत्तरी हिस्सा तबाह... ? (फौन रख देता है, सब के सब बैठ जाते हैं -) पार्श्वसंगीत (दोहा). "तेरे मन कछु और है, कर्ता के मन और.....'' (कबीर) मार्शल : ( उठकर, हिंमत बटाकर फोन उठाते हुए ) हलो, H.Q. ? धीस इज़ ग्राउन्ड कन्ट्रौल, मार्शल मॅथ्यु स्पीकींग । बॉम्बिग की और डिटेइल्स क्या मिली हैं ? (32) Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 33 • महासैनिक. आवाज़ : H.Q. से : Excuse us, Sir, डिटेइल्स अभी पूरी मिल ही नहीं रही, बड़ी ही ०० और गमख्वार घटना है यह, अंदाज़ डिटेइल्स मिल रही हैं कि उत्तरी हिस्से के करीब पांच करोड़ लोगों पर उसका असर हुआ है और शायद वे इस दुनिया में नहीं रहे... (मार्शल, जनरल चौंकते हैं) और डिटेइल्स मिलते ही हम आपको सूचना देंगे (फोन रख देते हैं।) मार्शल : (चौंककर ) करीब पांच करोड़ लोग..... !! जनरल : पांच करोड़...? पांच करोड़ ? (प्रतिध्वनियाँ उठती हैं, इण्डीकैटर पर गरबड़ सूचक आवाजें आती हैं, जनरल पागल-सा हो उठता है-) मार्शल मेथ्यु ! मार्शल : यस सर। जनरल : स्टेशन कन्ट्रोलर से सूचना दो कि दूसरा राकेट शियल के काफी पहले (६ घंटे में ही छोड़ दें, पहले राकेट के प्लानों के साथ और फिर तीसरे की तैयारी करें..... । मार्शल : लेकिन - जनरल : (बौखलाकर ) लेकिन बेकिन कुछ नहीं, जाओ और तैयारी करवाओ। मार्शल : बहुत अच्छा साहब । (जनरल कुछ उद्विग्न, पालन-सा चक्कर काटता है। उसके सामने गांधी के चित्र और शान्ति के सूत्रवाला चार्ट दिखाई देता है तो उस पर पान का ग्लास फेंककर क्रोध में उसे फाड़ डालने की कोशिश करता है इतने मैं फॉन की घंटी सुनकर रुक जाता है-) आवाज़ : हलो.... ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन ? जनरल : यस, जनरल व्हाइटफिल्ड स्पीकींग..... । आवाज़ : धीस इज स्पेइस स्टेशन 'T' सर, हमें खेद है हमारा कॉन्टेक्ट उस राकेट से अभी तक नहीं हो पा रहा । हमें शक है कि राकेट के सारे सॉल्जर किसी कारण से बम छोड़ने के बाद मर चुके हैं और राकेट बिना आदमी के चक्कर काट रहा है। जनरल : वेरी सॅड न्युज.... उधर तबाही के न्युज भी बड़े खौफनाक हैं अच्छा - देखो हम यहाँ से राकेट नं. २ शिड्युल से पहले छोड़ रहे हैं, दूसरी सूचना के लिए इंतज़ार करें। आवाज़ : अच्छी बात सर । ( फोन रख देता है और घंटी बजते ही फिर उठाता है -) आवाज प्रेसिडैन्ट की : H.Q. This is President speaking जनरल : ओह, Excuse me Sir, आपने सारी खबरे - (33) Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 34 • महासैनिक. प्रेसिडैन्ट (आवाज): जान ली हैं । बड़ी ही गमख्वार खबरें हैं, और हमारे ही राकेट के सॉल्जरो से हुई तबाही की... हमारा सारा प्लान डिस्टर्ब हो गया इतना ही नहीं देश का एक बड़ा हिस्सा तबाह हो चुका - जनरल : यह जानकर मेरी हालत... का तो आप अंदाज़ ही नहीं लगा सकते, साहब ! प्रेसिडैन्ट : मैं समझता हूँ और मेरी हमदर्दी है तुम्हारे साथ । अब हमारे आगे के प्लान के बारे में क्या सोचते हो? जनरल : उसी की तैयारी में हैं। कुछ समय के बाद फिर बताउंगा जल्दी करने का तो कह ही दिया प्रेसिडैन्ट (आवाज) : All right.... wish you all success now. Good Bye. जनरल : Thank you Sir, Good Bye ( फोन काट देता है।) (जनरल बड़ी जल्दी से घूमता रहता है, पागलपन के साथ ।) जनरल : पांच करोड़ लोग । मेरे ही देश के पांच करोड़ लोग !! पांच करोड़..... !!! और मेरी ही सेना के हाथ... (इन्डीकैटर पर गरबड़ की आवाजें, चीखें, बम की प्रतिध्वनियाँ - तंग आकर जनरल टेइपरिकार्डर के पास बैठ जाते हैं और उसे चालु करते है-) पार्श्ववाणी (टेइप से : स्त्रीस्वर) दुनिया हिंसा से पागल होती जा रही है, रोज-रोज घोर युद्ध और रक्तपात ! रोज रोज घोर युद्ध और रक्तपात । रोज रोज बेगुनाहों की कत्लेआम.... !! दुनिया की वह प्रथम महाहिंसा, प्रथम बम (बम की आवाजें effects)६ अगस्त १९४२ : जापान के हीरोशीमा और नागासाकी : (बच्चों की, स्त्रियों की चीखें) बेहाल हो मरे हुए लाखों बच्चे और स्त्रियाँ..... ! संसार इस हत्या से काँप उठा, गांधीजी हिल उठे, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की आत्मा गा उठी (२ वर्ष पूर्व ही दिवंगत) . पार्श्वसंगीत (करुण : भैरवी : पुरुषस्वर : बंगला रवीन्द्र संगीत) "हिंशाय उन्मत्त पृथ्वी, नित्य निठुर द्वन्द्व घोर कुटिल पंथ तार, लोभ जटिल बंध.... हिंशाय.....।" पार्श्ववाणी : हिरोशीमा के सर्वप्रथम बम से एक लाख आदमी मरे, तीसरे विश्वयुद्ध के सब से बड़े बम से एक करोड़ आदमी मरे, लेकिन अब..... । (34) Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 35 • महासैनिक . (टेइप बंद करते हैं जनरल) जनरल : अब पांच करोड़ । (पागल की तरह) पांच करोड़ । अब शायद उससे भी ज्यादा - आह । (वाद्यसंगीत) (फोन की घंटी सुनाई देती हैं।) आवाज़ : हलो, धीस इज़ H.Q. Speaking, Sir. जनरल : यस क्या डिटेइल्स मिली हैं ? आवाज़ : वही, पांच करोड़ से ज्यादा लोग मर चुके हैं जिसमें बच्चे और स्त्रियाँ अधिक थीं.... और हमें यह बताते हुए बड़ा खेद है कि - (रुक जाते हैं) जनरल : क्यों, क्यों रुक गये? . आवाज़ : हमें माफ करें, आपके और ग्राउन्ड कन्ट्रोलर साहब के सारे के सारे family members मारे गये हैं... (आवाज़ बम के प्रत्याघात, वाद्य) (मार्शल प्रवेश करते हैं, फोन चालु है।) जनरल : (प्रत्याघात के और धक्के के साथ, टूटते हुए...) मेरे और ग्राउन्ड कन्ट्रोलर के सारे के सारे family members मेरे देश के ही नहीं, मेरे परिवार के भी सब के सब मिट चुके... ? ( टूट कर गिर पड़ता है, मार्शल उसे आधार देकर सम्हाल लेते हैं और पलंग पर लिटा देते है, फोन रख दिया जाता हैं, सिपाही दौड़े आते हैं..... वाद्यसंगीत) मार्शल : (सिपाही से) फौरन ही डॉक्टर को बुला लाओसिपाही : जो आज्ञा । जाता है । (फिल्ड मार्शल प्रवेश करते हैं) . मार्शल : (फिल्ड मार्शल से): तबाही के खौफनाक समाचार है, साहब के और ग्राउन्ड कन्ट्रोलर के सारे कुटुम्बीजन मारे गये हैं... ! (व्यथित) फिल्ड मार्शल : क्या कहते हैं, आप ? (प्रत्याघात) मार्शल : अभी मॅसेज आया है... आप जरा सम्हालकर ग्राउन्ड कन्ट्रोलर को सूचित करें, लेकिन अब नहीं, मौका देखकर बाद में । फिल्ड मार्शल : अच्छी बात है। (जाता है) (आवाजे बंद है । सन्नाटा छाया है । कुछ देर खामोश)श! जनरल ( मार्शल से): देखो मार्शल मेथ्यु, वह टेइप रिकार्डर जरा चालु करें, अच्छा गाना आ रहा था - मार्शल : अच्छा साहब, करता हूँ। आप लेटे रहिए - (35) Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -36 • महासैनिक . (टेइप रिकार्डर चालु करता है।) पार्श्वगीत : (करुण भैरवी : पुरुष स्वर : बंगला रवीन्द्रसंगीत) "हिंशाय उन्मत्त पृथ्वी..... नूतन तव जनम लागि, कातर जत प्राणी, करो पीण महाप्राण ! आनो अमृत बानी.... बिकसित करो प्रेम पद्म चिर मधु निष्यंद, शांत हे, मुक्त हे, हे अनंत... पुण्य... ! करुणाधन ! धरणीतल की कलंक-शून्य - हिंशाय "क्रंदनमय निखिल हृदय ताप दहनदीप्त विषय विष विकार जीर्ण, खिन्न अपरितृप्त, देश देश परिल तिलक, रक्त कलुष ग्लानि, तव मंगल शंख आनो, तव दक्खिन पानि, तव सुंदर संगीत राग, तव सुंदर छंद शांत हे पंथी हे, हे अनंत पुण्य ! (- रवीन्द्रनाथ ठाकुर) पार्श्ववाणी (चालु टेइप से : स्त्रीस्वर) "हिंसा से पागल बनी यह पृथ्वी । इसे मुक्त करो हिंसा से, शून्य करो कलंक से हे शांत, मुक्त, अनंत पुण्य करुणाधन बुद्ध ! (वाद्यसंगीत) (बच्चों और स्त्रियों की आहे और कराहें, मारकाट की आवाजे) निरीहों की ये आहे और कराहें... ! ये विकार-वासना की... उफ़ानें !! देश-देश में बहती हुई रक्त की ये धाराएँ..... !!!! इन सबसे शीघ्र ही मुक्त करो, हे करुणाधन ! तुम्हारा मंगलमय दक्षिण हाथ बढ़ाओ, हे.... अनंत पुण्य !! तुम्हारा शांत सुंदर संगीत राग छोड़ो, हे शांत बुध्ध !!!....." (वाद्य संगीत) - (जनरल शांति से सुन रहे हैं। मार्शल बैठे हुए हैं - टेइप चालु ही हैं।) पार्श्ववाणी ( पुरुष स्वर): इस प्रार्थना में अपने स्वर मिलाते हुए गांधीजीने एक ओर से अहिंसामूर्ति भगवान बुद्ध से यह प्रार्थना की थी, तो दूसरी ओर से क्रूर और हिंसा-मत्त लोगों से यह : "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं । इसलिए दूसरों को मिटाने की महत्त्वाकांक्षा छोड़ो । जीयो, जीने दो और संसार को सुंदर रहने दो... ।" (36) Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-37 (जनरल सामने लटकते हुए इसी सूत्र वाले चार्ट को और गांधी की रेखा छबि को देखते रहते हैं.... उनकी आंखों से पहली बार आंसू निकलकर बहते रहते हैं टेइप से पार्श्वगीत पंक्ति आती है - ) - • - पार्श्वगीत पंक्ति (स्त्री स्वर ) "गर्व कियो सोई नर हार्यो..." (वाद्यसंगीत ) जनरल : (दोहराते हुए ) "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं !" कितना सच है यह, लेकिन लेकिन ( दर्द से ) अफसोस ! मैंने गर्व में यह नहीं माना और मेरा ही देश... मेरा ही परिवार... ( रो देता हैं ।) (वाद्यसंगीत) पाश्र्ववाणी ( चालु टेइप से मिटाओ... इस प्रकार मिटने 0000000 1" - पुरुष स्वर ) "अगर मिटाना है तो अपने को मिटाओ, अपनी खुदी को मिटाने से शायद कुछ अद्भुत हाथ लग जायेगा और तुम देखोगे कि पार्श्वगीत ( पुरुष स्वर : शेर ) "अगर कुछ मरतबा चाहो, मिटा दो अपनी हस्ती को, कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है ।" (संकलित ) • महासैनिक • (जनरल आँसू बहाता हुआ सो जाता है। मार्शल टेड़प बंद करता हैं। इतने में मिलीट्री डोक्टर आते हैं - दबे पाँव । चुपचाप संकेत से मार्शल बात कर नब्ज़, सर, छाती देखते हैं जनरल की ) मार्शल बहुत अच्छा डोक्टर ! : डोक्टर : (मार्शल से) फिकर का कोई कारण नहीं, साहब ! tension और shock का असर है। अब सोने दें उन्हें जागने पर ये Pills आप दे दें। Good Bye (जाते हैं । ) 1 (वाद्यसंगीत / खामोशी / जनरल निद्राधीन / मार्शल किताबे देखते हुए बैठे हुए। बाद में उस चार्ट के के पास जाकर स्वगत बोलते हुए । ) सूत्र मार्शल : क्या सोचा था, क्या हो गया ।..... ( दर्द से ) "गर कोई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता हैं, जो मंजूरे खुदा होता है...।" (37) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -38 • महासैनिक . "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं...!" यह तो हमारे लिए ही सही निकला...।" फिल्ड मार्शल (प्रवेश कर, मार्शल से धीरे से -) दूसरे राकेट को छोड़ने की तैयारी सारी हो चुकी है। मार्शल (स्वगत) अब भी, यह तैयारी, यह पागलपन...? पर खैर, जनरल साहब को उठने दें।(मार्शल से) अब जल्दी न करें मार्शल, जनरल साहब को उठने दें... शायद... । आप जाईये, ग्राउन्ड कन्ट्रोलर साहब से यह कहें और उनका भी ख्याल रखें। फिल्ड मार्शल (जाते हुए) अच्छी बात है) (फिर सन्नाटा । मार्शल उन किताबों को फिर उठाता है। "गांधी एक महासैनिक" के पन्ने पलटता है। थोड़ी देर में जनरल उठते हैं -) जनरल : ओह मार्शल आप अब तक बैठे हैं? जाइये आप भोजन और आराम करके आइये । मुझे कुछ भी नहीं खाना है, थोड़ी देर लेटा रहूंगा। मार्शल : लेकिन ये Pills खा लें । डोक्टरने दी हैं। ००० सिपाही को सूचना देते हैं ।) जनरल : (अपने स्वजनों की स्मृति में खोया हुआ).... क्या सचमुच ही सब के सब तबाह हो गये ?... सब चल बसे ? ( उठकर घूमता है, रो देता है । चार्ट से सूत्र को पढ़ता हैं । संदूक से दो तस्वीरें निकालकर देखता है और टेबल पर रखता है।) मेरे प्यारे बेटे ! और उनकी ये... नन्हीं नन्हीं बिटिया... ! सब-सब के सब गये... ? ओह ( रोता हैं) बूढ़े बाबा ने ठीक ही तो कहा था - तब मैंने वह बात नहीं मानी - पार्श्वघोष (बूढ़े बाबा की वाणी) "..... और आपने अपने दुश्मन देशों के लाखों नाजुक नवजात, निरीह बच्चों को मौत के घाट उतारे थे बराबर है न... ? (जनरल डरते हैं, रोते हैं।) "..... आप चाहते हैं कि आप के देश के बच्चे बच जायँ और दूसरों के मर जायें ?...." (जनरल बड़े ही प्रभावित और परिवर्तित-से होने लगते हैं । पश्चाताप और भाव की दशा में-) जनरल : (बाकी के बंडल पर सर रखकर )"नहीं बाबा, नहीं.... मैंने बहुत भारी गलती की बहुत भारी... !" पर क्या अब वह सुधारी नहीं जाती ? मेरे बच्चे जिंदा नहीं हो सकते ? बोलो, बाबा, बोलो । (38) Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 39 • महासैनिक. नहीं बोलेंगे ?.... (पागल सा) स्मृति से - हाँ, आपने कहा था कि दुःख के समय आपकी इस भेट से मुझे शांति मिलेगी, प्रेरणा मिलेगी-ठीक... ठीक है-(टेइप रिकार्डर के पास जाता है, चालु करता है।) पार्श्ववाणी : (बूढ़े बाबा की आवाज़) "कुछ गलतियाँ सुधारी नहीं जा सकतीं । लेकिन पश्चाताप से ज़रूर पावन हुआ जा सकता है। इसके लिए अपने को बदलना पड़ता है, प्रेम अहिंसा और शांति के पथ पर चलना होता है...।" वाद्यसंगीत - जनरल (बाबा की वाणी दोहराते हुए, टेइप बंद करके ।)... इसके लिए अपने को बदलना पड़ता है... प्रेम, अहिंसा और शांति के पथ पर चलना होता है।" (भाववश, दर्द के साथ, परिवर्तित होकर ) ठीक ही है, मैं अपने आप को बदलूंगा... प्रेम, अहिंसा और शांति के पथ पर चलूंगा... बाबा की उस आशा को, उस प्रार्थना को साकार करुंगा.... (बाबा का बंडल अपनी छाती पर रख लेट जाता है। सोच में) पार्श्वघोष (बाबा की वाणी): "जनरल साहब ! आप एक सेनानी है। परमात्मा आप को एक सचमुच ही बहादूर सेनानी बनाएँ - बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफरत के सेनानी । गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !!... सारे संसार को तबाह करनेवाला यह युद्ध आप ही के जरिये रोका जाय और मेरा सपना सच बने - इस शरीर को छोड़ने से पहले की मेरी यह गहरी प्रार्थना है... भगवान आप का कल्याण करें । अल्विदा.... जय जगत्.... जय शान्ति... !" पार्श्वगीत : (समूहगान : पंक्ति) "शांति के सिपाही चले, शांति के सिपाही.... वैर-भाव तोड़ने, दिल को दिल से जोड़ने, काम को सँवा, जान अपनी वारने, रोकने तबाही चले । शान्ति के...." ( वाद्यसंगीत : जनरल पूरे परिवर्तित और कुछ स्वस्थ ) जनरल : ( उठकर हाथ से ताली बजाकर सिपाही को बुलाकर सिपाही से): जाकर मार्शल साब और कन्ट्रोलर सा'ब को खबर दो कि राकेट छोड़ने का प्रोग्राम मोकूफ रखा जाय । और मार्शल साहब को यहाँ आने को कहो - । ( सिपाही ००) क (39) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof DL. 23-5-2017 - 40 • महासैनिक. (जनरल दीवार के नकशे “SPACE WAR PROGRAMME 2048" को पलटता हैं उलटा कर रख देता है, उसी वक्त मार्शल का प्रवेश) मार्शल : Good afternoon, Sir सेहत कैसी है आपकी ? (जनः ठीक है।) और यह क्या, आप हमारे राकेट लोचिंग के और आगे के प्रोग्राम को बदलना चाहते हैं ? जनरल : .... ( दृढ़ता से) प्रोग्राम बदलना ही नहीं; ढंग भी बदलना ही चाहता हूँ हमारी लड़ाइ का - बाबा के और गांधी की लड़ाई के ढंग पर । मार्शल : साहब, आप को बहुत सदमा पहुँचा है और चोट लगी है यह मैं समझ सकता हूँ परन्तु आप जैसे इस 'हार' से हार गये ? जनरल : 'हार' से नहीं, हमारी ही 'गलती से- ऐसी गलती कि जिसने आंखें खोल दी हैं अब आँख खुलने के बाद फिर अंधा बनना या सोये रहना कौन चाहेगा ? हार नहीं, यह दर्शन है । तुम अब कुछ सूचनाओं को जल्दी ही Carry out करो - मार्शल : जो आज्ञा, साहब । जनरल : 'पहली बात तो रोकट लोन्चिंग के और नये आक्रमण के सारे प्लान मोकूफ रखवाओ। मार्शल : अच्छी बात है । (डायरी में नोट करता है, खड़े खड़े) जनरल : (घूमते हुए) दूसरी बात : स्पेइस स्टेशन और हेडक्वार्टर्स को इस फैसले की खबर दे दो। मार्शल : अच्छी बात है । ( नोट करता है।) जनरल : तीसरी बातु प्रेसिडैन्ट और डिफैन्स मिनिस्टर साहब को मेरी ओर से खबर दो कि मैं उनसे फिर बात करूंगा अभी मैं कुछ समय आराम करूंगा। मार्शल : बहुत अच्छा ।... बस, और कुछ... ? जनरल : हाँ, और एक चौथी बात : हमारे इस ग्राउन्ड कन्ट्रोल स्टेशन और लैन्ड फाइटींग स्पोट के सभी अफसरों को सूचना दे दो कि आज शाम ५-०० बजे हम सब बूढ़े बाबा को कल जहां हमने दफनाया हैं वहाँ मिलेंगे । वहाँ इस मिटिंग के लिए सारा बंदोबस्त करवाओ। मार्शल : जो आज्ञा, साहब ! ( जाता है।) जनरल : ("गांधी : एक सत्यशोधक", "गांधी : एक महासैनिक" किताब को निकालता है, अपनी पौत्रियों की तस्वीर को निकालता है, छाती पर रखता है। बूढ़े बाबा के उस बंडल से 'शांतिसैनिक' का एक सफेद बड़ा लंबा robe और ब्लू Scarf निकालकर पलंग के पास की दीवार पर लटकाता है और बच्ची की तस्वीर छाती पर रखे - "गांधी एक महासैनिक" किताब पढ़ता हुआ पलंग पर लेटता हैं।) (40) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 41 जनरल : ( कुछ देर तक पढ़ते हुए लेटे रहने के बाद : चिंतन ) (पार्श्वघोष ) - "अगर गांधी एक सत्यशोधक और शूर सैनिक साथ साथ बने रह सके तो मैं क्यों नहीं ? अगर बाबा जिंदगीभर इन युद्धों को रोकने टूटते तड़पते कोशिश करते रहे, तो मैं क्यों नहीं ? और अगर गांधी के मार्गदर्शक अपने प्रेम और अहिंसा के बल से क्रूर बाघ-शेरों को पलटते रहे... तथा गांधी उसी बल पर एक विराट साम्राज्य को हिला कर अपने देश को आज़ाद कर सके तो... तो... मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता ? • मेरे देश के लिए, बिलखती हुई मानवजाति के लिए, विश्वशांति के लिए... ? — ( कुछ क्षण रुकता है, खिड़की के बाहर झांकता है .... ) "मैं कर सकता हूँ, मैं कर सकूंगा... अब से लेकर मेरा यह मिशन बनेगा : भूमि पर और अवकाश में तूफान उठाने का युद्ध के विनाश के लिए नहीं, विश्वशांति के लिए योद्धा बनूंगा एक संपूर्णतया नया योद्धा !... तब ही मेरे आज तक के तब ही.... ।' आज से मैं एक नया महापाप धुल सकेंगे, (वाद्यसंगीत : पुन: बाबा की वाणी की प्रतिध्वनियाँ जनरल के कानों में गुंजती है - ) (वाद्यसंगीत ) पार्श्वघोष : ( बाबा की वाणी ) ( गंभीर प्रतिध्वनिपूर्ण आवाज़ ) 44 '.... परमात्मा आप को सचमुच ही बहादुर सेनानी बनाएँ बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफ़रत के सेनानी ! गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !!" (वाद्यसंगीत) - - • महासैनिक • ... फिल्ड मार्शल ( अचानक द्वार पर आकर ) : Excuse Me Sir, may In come in ? ( जनरल : Yes, come in) साहब ! अवकाशी छत्रियों से अचानक ही कुछ एक स्प्रे शांतिसैनिक आ रहे हैं - जनरल (बीच में ही, सहर्ष उठकर ) : शांतिसैनिक ? बड़ी खुशी की बात है ! फिल्ड मार्शल (झिझक के साथ) लेकिन.... लेकिन वे आप से मिलना चाहते हैं और कहते हैं कि अगर हम प्रेम से नहीं मानते हैं तो वे अपना बलिदान दे देंगे, लेकिन हमें और राकेट छोड़ने नहीं देंगे.... । (सत्याग्रह के मूड में) फिल्ड मार्शल नहीं तो मैं फिल्ड वर्क से सीधा ही भागा भागा आ रहा हूँ। ! (41) जनरल (हँसकर ) : मार्शल को मैंने राकेट लॉन्चिंग प्रोग्राम को ही बंद करने की सूचना कभी की दे दी है इस बात का शायद तुम्हें पता नहीं दिखता.... । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 42 1 .... 1 जनरल : . कोई बात नहीं मार्शल से मिलो और उन शांतिसैनिकों को अपने कैम्प में ही ठहराकर कहा कि उन्हें यहाँ न सत्याग्रह करने की ज़रूरत है, न बलिदान देने की उनकी सेवा और उनके रक्त की अभी और जगह बहुत जरुरत है। उनके आने से पहले ही यहाँ शांति-विचार के आंदोलनों के रूप में शांतिसेना पहुँच चुकी है... फिर भी मिलना चाहें तो उनके लीडर आज शाम पांच बजे की हमारी मिटिंग में आ सकते हैं.... । फिल्ड मार्शल : जी अच्छा । (सॅल्युट कर के जाता है ।) (वाद्यसंगीत) (जनरल टेइपरिकार्डर चालु करके किताब पढ़ते हुए लेटे रहते हैं। टेइप पर प्रथम पार्श्ववाणी और पार्श्वगीत - शेर सुनाई देते हैं और बाद में वाद्यसंगीत - जनरल के वाद्यसंगीत सुनते और किताब पढ़ते लेटे रहने की अवस्था में ही दृश्य समाप्त होता है। शेर की पंक्ति सुनाई देते ही रंगीन प्रकाश अंधेरे के रूप में रह जाता है और एक कोने में, दीवार एक दीपक जलता रहता है ।) और बाद में मंद मंद प्रकाश, जो क्रमशः पर के गांधी के उस चार्ट सूत्र के नीचे पार्श्ववाणी : ( टेइप से : पुरुष स्वर ) "अगर मिटाना ही है तो अपने को मिटाओ, अपनी खुदी को मिटाओ... इस प्रकार मिटने मिटाने से शायद कुछ अद्भुत हाथ लग जायेगा और तुम देखोगे कि हकीकत में तुम मिटते' नहीं, 'बनते हो, फूलते-फलते हो... !" - महासैनिक • पार्श्वगीत : ( पुरुष स्वर : शेर ) "अगर कुछ मरतबा चाहो, मिटा दो अपनी हस्तीको कि दाना खाक़ में मिलकर गुले गुलज़ार होता है । कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है' '' ( रंगीन के बाद मंद प्रकाश - ) ( मंद स्वर, गीत और वाद्य के ) ( अंधेरा और दीपक ) ( लेटे हुए, पढ़ते हुए जनरल ) (42) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 . 43 • महासैनिक. अंक-३ दृश्य : दूसरा अंतिम दृश्य स्थान : प्रथम अंक के प्रथम दृश्यवाला युद्धभूमि और बूढ़े बाबा की मृत्यु का, मृतदेह को दफनाने का (कब्रस्तान)। समय : संध्या के ५-०० (दृश्य में खुला स्थान : चारों ओर कुछ वृक्ष : बीच में बूढ़े बाबा की दफ़नाने की जगह पर एक लकड़ी के साथ पोस्टर, जिस पर लिखा हैं-"यहाँ सोये हैं १०६ साल के शांतिसैनिक बूढ़े बाबा, जिन्होंने संसार को युद्ध और सर्वनाश से बचाने में अपनी सारी जिंदगी बीता दी...।" एक ओर एक पेड़ के सहारे लटकाया है वह चार्ट जिस पर गांधी का चित्र है और यह सूत्र लिखा हुआ है : “दूसरों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं...." दूसरी ओर कुछ फॉल्डींग कुर्सियाँ हैं अफसरों के लिए : जनरल, मार्शल, फिल्ड मार्शल, लौफ्टेनन्ट, ग्राउन्ड कन्ट्रोल, स्पेइस सॉल्जर ओर शांतिसैनिकों के एक लीडर - सभी अपने अपने युनिफोर्म में कुर्सियों पर बैठे हुए हैं । केवल जनरल ने अपने युनिफोर्म के स्थान पर शांतिसैनिक का Robe और Scarf गले में पहना है। एक स्कूल पर कुछ किताबें और टेइप रिकार्डर-बाबा के बंडलवाला सब सामान पड़ा है। बीच में इस पाश्चात्य राष्ट्र के ध्वज को झुकाया हुआ गाड़ा है। जनरल के साथ ही आगे कन्ट्रोलर का स्थान रखा गया है इन दोनों के परिवारों के मृतजनों की शांति प्रार्थना के हेतु । बाकी के सब लोग नीचे दरी पर बैठे हुए हैं। करीब २५ लोग कुल मिलाकर एकत्रित हुए हैं। - मार्शल मेथ्यु : मेरे प्यारे अफसरों ! आप सब जानते हैं कि हमारी ही गलति से आज हमारे देश पर क्या गुज़री है। यह भी बड़े ही दुःख की बात है कि हमारे सब के आदरणीय जनरल व्हाइटफिल्ड साहब और ग्राउन्ड स्टेशन कन्ट्रोलर साहब के सारे के सारे परिवार इस महानाश में खो गये हैं। हमारे इस अभूतपूर्व संकट की बेला में सब से ज़्यादा दुःखी हमारे जनरल साहब हैं। उन्होंने प्रायश्चित का दोष अपने पर लेकर उपवास शुरु कर दिया है, जब कि इस गलती के हम सब भी हिस्सेदार हैं। दूसरी ओर जनरल साहब - इस संकट से कोई नया मार्ग खोज रहे हैं । इस विषय में हमसे वे बात करना चाहते हैं । आशा करता हूँ कि उसे हम समझेंगे और जनरल साहब को हम पूरा सहयोग देंगे। इसके पहले कि मैं जनरल साहब से कुछ कहने की प्रार्थना करूं, हमारे देश के पांच करोड़ मृत नागरिकों की एवं हमारे जनरल और कन्ट्रोलर साहब के परिवारों की आत्मशांति के लिए हम खड़े रहकर मौन प्रार्थना करेंगे । (43) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -44 • महासैनिक. A (सब खड़े हो जाते हैं, सन्नाटा छाया रहता है, पेड़ पर से सूखे पत्ते गिरते हैं, वाद्यसंगीत के करुणतम मंद स्वर के बाद में सुनाई देते है और दो मिनट के बाद सब बैठ जाते हैं।) जनरल : (अपने नये वेश में शांति सैनिक के : लंबा सफेद robe और गले में ब्लु Scarf |शांतिसेना का प्रचलित 'पीला' Scarf जान बुज़कर नहीं लिया गया).... मेरे प्यारे साथियों.... ! (कुछ रुक जाते हैं : गंभीर आवाज़ में) सब से पहले तो मुझे हमारे देश के पांच करोड़ निरपराधी लोगों की हत्या के लिए माफी मांगनी है । यह अपराध इतना बड़ा है कि इसे माफ़ ही नहीं किया जा सकता। इस लिए मैं पश्चाताप द्वारा और परिवर्तन के द्वारा अनेक हिमालयों से भी बड़े इस अपराध को कुछ धोना चाहता हूँ। इस हेतु मुझे प्रेरणा हुई है पांच दिन के उपवास, सतत प्रार्थना और सत्य, अहिंसा के शस्त्र अपनाकर शांति सैनिक के रूप में अपना रूपांतर करने की। सब : धन्य हैं आप, धन्य हैं। मार्शल : इसमें आप तो जनरल साहब दोषित हैं ही नहीं, दोष अगर है तो राकेट नंबर १ के भटके हुए स्पेइस सॉल्जरों का या हम सब का । इस लिए हम सब भी आपके साथ उपवास और प्रार्थना में शामिल होंगे। सब : बिल्कुल ठीक है, हम सब शामिल होंगे। जनरल : लेकिन मेरे लिए तो इतने से नहीं चलता। मेरी जिम्मेदारी और मेरी गलती बड़ी है। मेरे पद के कारण मेरे अहंकार की भी कोई कमी नहीं थी। और इस लिए मेरा सब से आवश्यक प्रायश्चित होगा सेना के जनरल के पद से मेरा त्यागपत्र... ( वाद्यसंगीत । सब झटका-सा अनुभव करते हैं) मार्शल : त्यागपत्र ? फिल्ड मार्शल : त्यागपत्र ? लैफ्टेनन्ट : त्यागपत्र ? सब : नहीं, हरगिज़ नहीं । आप को त्यागपत्र हम हरगिज़ नहीं देने देंगे। जनरल : आपके प्रेम के लिए मैं आप सब का आभारी हूँ, लेकिन मैं अब जो परिवर्तन अनुभव कर रहा हूँ और नये ढंग की सेना का काम करना चाहता हूँ उसमें या तो यह पद छोड़ना चाहिए या लड़ने का ढंग बदलना चाहिए... । मार्शल : लड़ने का ढंग आप बदल सकते हैं। सब : हम सब उसमें साथ देंगे आप का । जनरल : आप सब साथ दें तो तो बड़ी अच्छी बात है। तब तो कुछ हो सकता है । लेकिन आपमें से सब के सब - इस शांत प्रक्रिया को पूरी की पूरी समझ लें यह आवश्यक है । मैं नहीं चाहता कि मेरे प्रति रहे हुए प्रेम और आदर के कारण आप मेरा अंधानुसरण करें । मेरी बातों को वैसी की वैसी मान लें। (44) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017-45 • महासैनिक • लैफ्टेनन्ट : जनरल साहब ! आप हमारे अधिपति हैं, आप की आज्ञा हम उठाते आये हैं और अब भी उठाने में अपना फर्ज़ ही समझते हैं। जनरल : लेकिन हमारी फौज़ और इस फौज़ में काफी अंतर है। यहाँ मेरी dictator ship से नहीं, आप सब की 'सर्वसंमति' से सोचना, चलना होता है और निर्णय लेना है। प्रश्नचर्चा से समस्या की गहराई में जाना है और फिर कोई स्थायी हल ढूंढना हैं इस लिए अगर आप चाहते हैं तो मैं आप से खुली चर्चा करना चाहूंगा। - ' मार्शल हमें बेशक बड़ी खुशी होगी, लेकिन : जनरल नहीं, आप झिझके नहीं, बिलकुल संकोच न रखें। सब कुछ कहें मेरे विचारों और प्लानों का विरोध को करें इस से सारी सफाई, सारी स्पष्टता हो जाएगी और मैं भी मार्शल : जनरल साहब ! मेरा यह सवाल अब भी साफ नहीं है कि अब हम सारी ही Space War बंद क्यों कर दें? एक गलत हुई तो उसे हम सुधार नहीं सकते क्या दूसरी बार के प्रयासों में हम सफल भी हो सकते हैं । जनरल सफल हो भी जायें तो दुनिया जल्दी ही समाप्त हो जाएगी..... और हम यही तो चाहते थे. दुनिया के और देशों को यम से उजाड़कर कत्ल कर, पाइजन गैस से खत्म कर हमने चंद्रलोक पर जाकर बसने की योजना की, शुक्र और मंगल के ग्रहों पर बैठकर अवकाश युद्ध करने के सपने सजाये, लेकिन मैं पूछता हूँ कि क्यों ? यह सब क्यों ? ( सब स्तब्ध | सन्नाटा ) - उत्तर है किसी के पास ? ( सब मौन हैं..... ) मैं देखता हूँ कि कुदरत ने हमारी योजना मंजूर नहीं की । हमारे बोये हुए कांटे हमें ही लगे, यह बिना मकसद के नहीं हुआ । कुदरत का मकसद था सबक हमें सीखाने का। काश ! अब भी हम मुड़ जाते, वापिस लौट जाते...... ! मार्शल : यह तो ठीक है कि हमारे ही हाथों से हमारे देश के लोग इतनी भारी तादाद में मरे । अगर दुश्मन के या दूसरे देशों के मरे होते तो हम यह नहीं सोचते । जनरल : बिलकुल ठीक, मार्शल । there you are... मार्शल : लेकिन साहब । फिर हमारे ये बड़े बड़े विराट यंत्र ओर वैज्ञानिक तकनीकी अवकाशी आविष्कार क्या काम के ? जनरल हमारी विज्ञान की और अवकाशी साधनों की सिद्धियाँ पृथ्वी या ग्रहों के विनाश के लिए थोड़ी ही है, वे हैं सृजन और सहअस्तित्व के लिये और यह तो हमीं ने देखा कि ( पेड़ पर लटकते सूत्र वाले चार्ट को दिखाकर ) 'दूसरों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं ।' (45) Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof D. 23-5-2017.46 • महासैनिक . मार्शल : यह तो बिलकुल ठीक है साहब । परंतु फिर इन साधनों का क्या कोई उपयोग ही नहीं ? जनरल : है, उपयोग है । इस सुंदर पृथ्वी को बसने योग्य और स्वर्ग सी बनाने में उपयोग बेशक है,लेकिन पृथ्वी को उजाडने और उसको नर्क बनाये रखने में हरगिज़ नहीं । अगर ऐसा उपयोग हो तो भी क्यों ? उससे फायदा किसे होगा? . फिल्ड मार्शल : आप बहुत ही सच्ची बात कर रहे हैं, हम तो आज तक युद्ध करते आये, रोकेट बनाते और छोड़ते आये लेकिन हमने यह सोचा ही नहीं । जनरल : सोचने आपको देते ही कौन हैं मेरे प्यारे फिल्ड मार्शल? क्या आप मानते हैं कि हम नेतागण आप को यह सब सोचने देते हैं ? लैफ्टेनन्ट : बहुत खूब, जनरल साहब ! बहुत खूब ! मार्शल : तो साहब इतने विकसित विज्ञान के साधनो का उपयोग किस प्रकार किया जाय ताकि पृथ्वी एक स्वर्ग बनी रहे ? जनरल : गांधी ने कहा है कि विज्ञान के साथ अहिंसा को जोड़कर । गांधी के उत्तराधिकारी विनोबाने इसे स्पष्ट किया और अपने देश में साकार कर दिखाने की जिदगीभर कोशिश की। मार्शल : यह विचार तो बड़ा अच्छा हैं - लेकिन एक बार हमें दूसरे देशों पर आधिपत्य का और विश्वविजय करें फिर यह.... काममें.... लायें तो? जनरल : आखिर दूसरों पर आधिपत्य की और विश्वविजय की लालसा क्यों ? उसी में एक दूसरे को मिटाने जाना पड़ता है और मिटाने.... की लालसा के परिणाम ने आज हमें कहीं ले जाकर पटका है ? मार्शल : सचमुच ही आंख खोलानेवाली ये बाते हैं। (ल) फिल्ड मार्शल : यह सब तो ठीक ही है साहब, लेकिन मेरी एक शंका हैजनरल : बेशक बोलिये - बिना झिझक के ! फिल्ड मार्शल : अगर दुश्मन या दूसरे देश हम पर आक्रमण करें तो स्वरक्षा के लिए तो वैज्ञानिक शस्त्रों का उपयोग करना ही होगा न ? जनरल : सबसे पहले तो सभी देश यही कहते हैं कि स्वरक्षा' के लिए लड़ते हैं ही यह अबतक कहते आये हैं । दूसरी बात अगर हम अहिंसक संग्राम के सत्य अहिंसा-निर्भयता-बलिदान और अंतरात्मानुसरण के तरीके को अपना ले तो हमारी स्वरक्षा हो ही जाती है। कोई आक्रमण करे भी तो वह टिक नहीं सकता । लेसे अहिंसक संग्राम के ढंग की बात और ही है और उसी का मैं स्वयं तो आरम्भ करना चाहता हूँ..... मार्शल : लेकिन वह सम्भव और व्यवहार्य है ? अहिंसक रक्षा हो ही रही है औ (46) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -47 • महासैनिक. debet जनरल : अवश्य है । मेरे मन में अब उसके लिए कतई भी शंका नहीं रही। फिल्ड मार्शल : यह आप कैसे निश्चित कर पाये ? जनरल : ( बूढ़े बाबा की दफ़नाने की जगह दिखलाकर) एक दिन पहले ही यहाँ एक बूढ़ा सो चुका , और एक सौ साल पहले भारत में गांधी । इनके जीवन से, लिखावटों से और.... काल की विराट थप्पड़ खाने के मेरे ही हमारे ही इस जीते जागते अनुभव से मैं यह निश्चित कर सका । लैफ्टेनन्ट : लेकिन अहिंसा के प्रभाव के और हिंसक संग्राम की सफलता के सामूहिक बड़े पैमाने पर के कोई ठोस प्रमाण हैं ? जनरल : बेशक । एक : गांधी के मार्गदर्शक राजचंद्रजी की अहिंसा और प्रेम-बाघशेर जैसे क्रूर हिंसक पशुओं को भी प्रभावित कर मित्र बना सके। दो : गांधी के अहिंसक सत्याग्रह भारत को आजादी दिला सके । तीन : गांधी के उत्तराधिकारी विनोबा अहिंसक ग्रामदान आंदोलन के जरिये भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता स्थापित करने रक्तहीन क्रांति कर सके। चार : मार्टिन ल्यूथर किंग अपनी आलाबामा की अहिंसक कूच के जरिये अमरिका में एक नया प्रभाव खड़ा कर सके । पांच : चेकोस्लोवालिया से नौजवान छात्र अहिंसक प्रतिकार द्वारा रुस की आक्रमक हपों को वापिस लौटाने में कामयाब हो सके। / छ: अमरिकी.... सहृदय सज्जन सामूहिक उपवासो के द्वारा केपिटल को प्रभावित कर वियतनाम की हिंसक 6०००००००००००००००० क्रान्तिन्सेना कारक-मा सात : इटली के 'डोलची' जैसे मामुली व्यक्ति गांधी के अहिंसापथ को अपनाकर अपने समाज को नई दिशा में मोड़ सके । और आठकों : हिंसा से त्रस्त और गांधी के अहिंसा-मार्ग से भ्रष्ट और पथच्युत बने भारत को उसकी शांतिसेना के नूतन बाल नेता बीसवीं शती के अंत में फिर पथ पर ला सके, इतना ही नहीं ... तीसरे विश्वयुद्ध में इ.स. २००) के लगभग भारत को दूसरे देशों के आक्रमण से बचा भी सके ! कहिये अब और सोचिये कि अहिंसक संग्राम सम्भव और व्यवहार्य है या नहीं ? लैपटेनन्ट : अद्भुत... ! सच ही स्वीकार्य है। फिल्ड मार्शल : बिल्कुल व्यवहार्य है यह - यह) सब : बहुत ही ठीक है, बहुत ही ठीक है। मार्शल : बहुत ही अच्छी सफाई) है या साहब । लेकिन हमें आज के Space Age में इसे लागू करना हो तो किस प्रकार कर सकते हैं ? Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 . 48 • महासैनिक. स्पेइस सॉल्ज़र : मेरा भी यही सवाल है। स्पेइस वॉर के ज़माने में गांधी के संग्राम का ढंग युटोपियन' नहीं है क्या ? जनरल : बहुत अच्छा किया कि आपने यह भी पूछ लिया। जवाब स्पष्ट है कि अगर गांधी उनके समय के विशाल साम्राज्य से लोहा ले सके तो हम भी किसी भी बड़े आक्रमण से टक्कर क्यों नहीं ले सकते ? और यह 'टक्कर' नफरत, हिंसा और घोर कत्ल पर ही आधारित हो यह थोड़ा ही जरुरी है ? क्या इनके बिना संग्राम हो नहीं सकता ? आगे मैंने कहा वैसे विज्ञान के हमारे साधनों के साथ क्या हम अहिंसा को जोड़ नहीं सकते ? हमारी "अवकाशी सेना" को ही "शांतिसेना" के रूप में बदल नहीं सकते ? स्पेइस सॉल्जर : लेकिन हम हमारे अवकाशी शस्त्रों के द्वारा जीत और शांति प्राप्त कर सकें तो? जनरल : हमारी 'जीत' एक तो कायमी नहीं होती, फिर वह दूसरों के लिए 'हार' और 'वैर' का कारण बनी रहती है। रही बात शांति की । हिंसक युद्ध से शांति किसे मिलती है-विजित को? पराजित को? और 'शांति' ही अगर हमारा लक्ष्य है तो वह अशांति' के, हिंसा के, अशुद्ध, साधनों के द्वारा कैसे पायी जा सकती है ? गांधीने ठीक ही कहा है कि हमारे साधन और साध्य दोनों विशुद्ध होने चाहिए... । वह स्वयं ही एक ऐसा शांत, शुद्ध साधनों से लड़नेवाला अद्भुत सैनिक था । उसने अपने अहिंसक युद्धों से यह सिद्ध कर दिखाया । स्पेइस सॉल्ज़र : ऐसा सैनिक कभी हो सकता है ? जनरल : मैं भी इसी सवाल पर उलझा हुआ था अब तक, मेरे प्यारे ! लेकिन अब मैं convince हो चुका हूँ कि ऐसा सैनिक हुआ है, सफलता से हुआ है। इतिहास इसका . गवाह हैं। स्पेइस सॉल्जर : बहुत ही अच्छी बात बताई आपने साहब । आज तो आंखें सचमुच ही खुल रही हैं, नई दिशा दिखाई दे रही है... ( वाद्यसंगीत) मार्शल : जनरल साहब । सचमुच ही हमारी इस 'गलति' से, इस 'हार' से आपने एक नया दर्शन पाया है और हमें करोया है। इन सब साथियों के चहेरों से मैं देख रहा हूँ कि अब आपके इस नूतनदर्शन से संतुष्ट हैं, सब को समाधान है। सब : बिल्कुल सही, बिल्कुल सही । लैफ्टेनन्ट : हम चाहते हैं कि आप हमारे जनरल बने ही रहें और हमारी भूमि और अवकाशी सेनाओं को 'शांतिसेना' के रूप में परिवर्तित कर दें। सब : Exactly, Exactly ! मार्शल : (हँसते हुए) हाँ, फिर हम आपको त्यागपत्र देने नहीं देंगे । (सब हँसते हैं।) (48) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017.49 • महासैनिक. जनरल : मै बहुत ही आभारी हूँ आप सब के प्रेम और सहयोग के लिए । मैं आशा करता हूँ कि शांति सैनिकों की विशेष जिम्मेदारी होती है उन्हें आप सब समझेंगे और अपनाने के लिए आज प्रतिज्ञा करेंगे कि (वाद्यसंगीत) . आज हम खुशनसीब हैं कि हमारे बीच अतिथि शांतिसैनिकों के नेता उपस्थित हैं। मैं उनको मेरी और आप सब की ओर से प्रार्थना करता हूँ कि वे हमसे शांतिसेना की प्रतिज्ञा लिवायें । शांतिसेना के नेता : मैं बड़ा ही खुश और शुक्रगुजार हूँ आप के इस फैसले से । तो मेरे साथ बोलिये(खड़े होकर सब दोहराते है। "हम इस बड़े राष्ट्र के भूमि और अवकाश सेना के अफसर आज से, गांधी के ठीक सौ वर्ष बाद भी इस गांधी-मृत्यु-शताब्दी से, आज प्रतिज्ञा करते हैं कि, हम आज से अपने आपको शांतिसैनिकों के रूप में, परिवर्तित रहेंगे, सत्य और अहिंसा का दृढ़ रूप से पालन करेंगे, अहिंसक, शांत, प्रतिकार के प्रमंपूर्ण तरीके को अपनायेंगे और सारे विश्व को हमारा घर समझेंगे।" (सभी एक एक पंक्ति दोहराते हैं ।) पार्श्वगीत (समूह मंत्रघोष) “यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्....." "वसुधैव कुटुंबकम्...." शांतिसैनिक के नेता : दोहराइये मेरे साथ - "जय जगत" (सभी) "जय जगत्" "जय शांति" (सभी)"जय शांति". - "जय गांधी" (सभी) "जय गांधी" (सभी बैठ जाते हैं।) जनरल : (सभी से ) आज से हमारा नया जन्म हैं। अबसे प्रत्येक पल हमारी कसौटी का है। (मार्शल से) "पिस मार्शल" मेथ्यु ! आप अब जाकर वायरलैस पर हमारे फैसले की डिफैन्स मिनिस्टर और प्रेसिडैन्ट साहब को सूचना दें और यह भी कहें कि हमारे सारे वॉर प्रोग्राम बंद किये गए हैं और उनसे प्रार्थना है कि वे भी अब हमारी बची हुई बस्ती को चंद्र की ओर उड़ा ले जाने का प्रोग्राम बंद रखें । हमारे शांतिसेना के तरीके को हम देश की और विश्व की सेवा में प्रस्तुत करने तत्पर रहेंगे। मार्शल : जो आज्ञा । ( जाते हैं बाहर के ही निकट स्थान पर) (49) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017 -50 • महासैनिक. __ (जनरल वहाँ रखा हुआ टेइप चालु करते हुए.. और बाबा की भूमि को प्रणाम करते हुए कहते हैं -) जनरल : काश ! कि यह निर्णय हमने कल लिया होता । कल, चौबीस ही घंटे के पूर्व, बाबा के मरते समय... तो... तो ....? पर अफ़सोस.....! खैर, साथियों ! सुनिए बापू गांधी की एक छोटी सी वाणी -जो संदेश हैं, जीवनमंत्र है, हम शांतिसैनिकों के लिए: पार्श्ववाणी (गांधीजी का) (सब गौर से सुनते हैं) "..... सत्याग्रही अपने कार्य की सच्चाई में निष्ठा और अपने साधनों की शुद्धिइन दोनों को लेकर काम करेगा । जहाँ साधन शुद्ध होते हैं वहाँ परमात्मा अपने आशीर्वादों के साथ निःसंदेह हाज़िर रहता है। और इन तीनों का मेल जहां होता है वहाँ हार असम्भव हो जाती है। एक सत्याग्रही का नाश तब होता हैं जब वह सत्य, अहिंसा और अंतरात्मा की आवाज़ को भुल जाता है, ठुकराता है।" जनरल : (प्रभावित ही चक्कर काटते और दोहराते हुए) "एक सत्याग्रही का नाश तब होता है जब वह सत्य, अहिंसा और अंतरात्मा की आवाज़ को भुल जाता है, ठुकरात है ।....." मार्शल (लौटकर): साहब ! डिफैन्स मिनिस्टर साहब तो स्पेश्यल प्लेइन और पेरेश्युट अम्ब्रेला से यहाँ आने निकले हुए हैं : सब : यहाँ ? मार्शल : और प्रेसिडैन्ट साहब... तो हमारे फैसले की बात सुनकर दंग ही रह गये... । जनरल : अच्छा ! सब : दंग रह गये? मार्शल : हाँ, उन्होंने जवाब में कुछ नहीं कहते हुए सिर्फ इतना ही सवाल पूछा और फोन घड़ल्ले से रख दिया कि, क्या ऐसे सैनिक कभी हो सकते हैं ? स्पेइस सॉल्जर : हम भी हमारे जनरल साहब से यही पूछ रहे थे कि, क्या ऐसा सैनिक कभी हो सकता है? ( सब हँसते हैं ।) जनरल : और मैंने भी इस बाबा से और गांधी की आत्मा से बारबार पूछा था कि क्या ऐसा सैनिक कभी हो सकता है ? (सब हँसते हैं) पार्श्वगीत पंक्ति : शेर (टेइप से) (पार्श्व में प्लेइन की आवाज़) (50) Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017 -51 • महासैनिक. "अगर कुछ मरतबा चाहो, मिटा दो अपनी हस्ती को कि दाना ख़ाक में मिलकर गुले गुल्ज़ार होता है।" (अचानक आवाज़ और पेरेश्युट से डिफैन्स मिनिस्टर और उनके कुछ सिपाहियों का प्रवेश - ऊपर से ही सीधे नीचे कूदते है छत्री के साथ । सब खड़े हो जाते हैं। डिफैन्स मिनिस्टर : (जनरल से) Excuse Me जनरल व्हाइटफिल्ड और सभी अफसरों ! आप सब ने हमारे देश को बड़ा भारी नुकसान पहुंचाया है और खबर मिली है कि उसके बावजूद.... देश के खिलाफ बगावत करने अपनी नयी आज़ाद सेना रची है। इस कारण से प्रेसिडेन्ट के आर्डर से यह वारंट आप सब पर बजाया जाता है (कागज़ देता है,- आप सब पर कोर्ट मार्शल का - (अचानक सब पर वज्राघात : झटका : Effect : वाद्य) सिपाहियों ! आप सब घेर लो सभी को (सभी निश्चल, निर्भय खड़े हैं। जनरल आगे आते हैं।) जनरल : हमें घेरने की कोई ज़रुरत नहीं मिनिस्टर साहब । हमारे गुनाहों के लिए हम मरने को बिना हिचकिचाहट को तैयार हैं। लेकिन हमें मारने से पहले इतना सुन लिजिए कि हमने कोई बगावती आजाद सेना नहीं बनाई सत्ता छीनने किसी देश को तोड़ने हमने रची है शांतिसेना सत्ता छोड़ने और सारे संसार को जोड़ने.... । अब मारें हमें.... चलायें गोली..... सब : चलायें गोली : जय शान्ति, जय जगत्, जय गांधी.... ! (Effects) जनरल : (मिनिस्टर और सिपाहियों को भौंचक्के-से-खड़े देखकर) रुक क्यों गये, चलाइये गोलियाँ - डिफैन्स मिनिस्टर (गोली छूट नहीं पाती, क्षुब्ध, विक्षिप्त से.). अरे..... यह क्या....? (बड़े ही शरमिंदे खड़े रहते हैं, अपनी रिवोल्वर नीचे पटकते हैं... सिपाहियों से) तुम चलाओ गोलियाँ सिपाहियों.... (सिपाही गोली चला नहीं सके....) जनरल : चलाइये जल्दी, देर मत कीजिए - शायद आप सत्ताधीशों के पास अब हमारी जरुरत नहीं.... ! चलाइये अपना फर्ज पूरा कीजिए ! (सिपाही कोई गोली नहीं चला सकते । अंत में.... जनरल अपने हाथ से सिपाहियों से रिवोल्वर छिन अपने को ही मारने जाता है.... गोली छोड़ता है, डिफैन्स मिनिस्टर पिधलकर रोते हुए उससे रिवोल्वर छुड़ाने जाते हैं परंतु एक गोली छूट ही जाती है, कंधे को पार कर चली जाती है, जनरल गिर पड़ते हैं घायल होकर - सब दौड़ते हैं उनके पास -) डिफेंस मिनिस्टर : माफ करें मुझे माफ करें, जनरल ! जनरल : "प्यारे मिनिस्टर साहब । आप तो माफ़ ही है मुझे आप से कोई नफ़रत नहीं, आपने अच्छा ही किया, मेरा बलिदान शायद कुछ काम कर जाय तो मैं धन्य बनूँगा ।" सब : नहीं, नहीं, आपको हम बलिदान देने नहीं देंगे आपकी अभी बहुत ज़रुरत है इस विश्व में.. (डोक्टर दौड़कर चिकित्सा करने लगे हैं) (51) 1316 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof Dr. 23-5-2017.52 • महासैनिक. मार्शल : (डोक्टर से) जल्दी करें डोक्टर जल्दी करें.... ! (सभी suspense में) जिसस, सुकरात, गांधी, केनैड़ी.... क्या शांति के पथ पर ये बलिदान पर्याप्त नहीं प्रभो ! अभी अनेकों की इस कतार में जनरल व्हाइट फिल्ड भी आपको चाहिए.....? इन शांति-प्रेम के किस्से के लिए क्रोस ही कब तक, ताज कब ? 'शूल' ही कब तक, 'फूल' कब ? साथियों ! डोक्टर कोशिश कर रहे हैं, हम जनरल की जिंदगी के लिए परमात्मा से मौन प्रार्थना करें - (सब प्रार्थना में मौन ही बैठते हैं।) (सभी उत्सुक है, मिनिस्टर रोते हैं, डोक्टर कार्यमग्न हैं, जनरल प्रसन्न बदन पड़े हैं -) पार्श्वगीत पंक्ति (रवीन्द्र गीत) "हिंस्राय उन्मत्त पृथ्वी, नित्य विठुर द्वंद्व, घोर कुटिल पंथ तार, लोभ जटिल बंध - नूतन तब जनम लागि, कातर जत प्राणी, करो प्राण, महा प्राण, आओं अमृत बानी विकसित कर प्रेम पर्थ चिर मधु निष्यंद, शांत है, मुक्त है, हे अनंत पुण्य... करुणाकछिन ! धरती तल पारी कलन्ध शून्य (रवीन्द्रनाथ) _ णी डोक्टर : जनरल बच गये हैं ..... मार्शल : जनरल साहब बच गये । प्रभुने प्रार्थना सुन ली..... सभी ( सानंद): "जय जगत्, जय शान्ति" "जय जनरल, जय गांधी" पार्श्वघोष : बाबा की वाणी (टेइप से) __ "जनरल साहब ! आप एक सेनानी हैं । परमात्मा आपको एक सचमुच ही बहादुर सेनानी बनाएँ - बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफरत के सेनानी ! गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी.... ।" , जनरल (सानंद, उठकर) शुक्र है खुदा का, बाबा का और आप सब का कि गांधी और बाबा जैसे महासैनिक के पथचिन्हों पर चलने मुझे जिंदगी बख्शी सचमुच ही बाबा एक महासैनिक था... गांधी एक महासैनिक था - शांतिसैनिक लीडर : और आप भी एक महासैनिक ही हैं। (52) .01.1. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Second Proof D. 23-5-2017 -53 * महासैनिक. जनरल : यह सब बाबा की और गांधी की दुआ है इसलिए लीजिए यह बाबा की भेंट - इन्होंने मुझे दी.ॐ मैं आप सब को बाँट देता हूँ-। (जनरल किसी को टेइप रिकार्डर, किसी को किताब, किसी को चार्ट और बंडल में से एक एक चीज सभी की उत्सुकता के बीच निकालते हुए कटिते हैं - अंत में निकलती है एक.. तकली) मार्शल : बाबा की भेटें भी अजीब हैं। जनरल : यह है अंतिम भेट (तकली) लेकिन यह मैं किसी को अब नहीं दूंगा, जिंदा हूँ तब तक यह मेरे साथ रहेगी। स्पेइस सॉल्जर : लेकिन यह है क्या ? फिल्ड मार्शल : (हँसता हुआ) हथियार ? अहिंसक शांति सैनिकों का एक हथियार ? जनरल : बिल्कुल ठीक, अहिंसक शांति सैनिकों का हथियार ! शांति का प्रतीक !! फिल्ड मार्शल : (हँसकर ) फिर तुम्हारा विज्ञान बीच में आया, स्पेइस सॉल्ज़र / जनरल : ठीक ही हैं। विज्ञान के ज़माने में भी यह हथियार विज्ञान के साथ अहिंसा को अब जोड़ता है ज़रुरी हथियार.... शांति सैनि- महासनिक का हथियार, जो दिया था- शांति, प्रेम अहिंसा का उपासक उस महासैनिक ने ! (सभी मौन प्रार्थना में खड़े.....) (वाद्यसंगीत - भैरवी सूर) पार्श्वगीत : (पंक्तिया) > इन बाहरी व प्रतीफा के साथ "भाई मारा / गाळी ने तोपगोळा )2 भीतरी शांति को ही 74 /.. 13 जी लेजाय समना की दिशा म, घड़ो सुइ-मोचीना संच बोळा, 4 सारे जगए को Herea को। घड़ो रांक रेंटुडानी आरो, घड़ो देव-तंबूरा ना तारो. धण रे बोले ने (स्व. मेघाणी) प्रववता : चरखे की आह) और भजन-तंबुर के तार गान : "इन बाहरी शांति-प्रतीकों के साथ; ___ सारे जगत् को, सगर & 12-भीतरी (अंदरुनि ) शांति का ही हाथ / " प्रवक्ता : इसी लिए तो जग को शाश्वत शांति-संदेश दिया है - गांधी-गुरु 'राज' से :पार्श्वघोष : , "शांति भीतर है, बाहर खोजने से नहीं मिलेगी ! ) POLD FONTS प्रितिध्यानपूर्णा) भीतर की शांति आत्मा की सम-श्रेणी में हैं।" श्री रामपद्रवपनामूला ॐ शांतिः शांतिः शांतिः, शिवमस्तु सर्व जगतः // ( मंद मंद प्रकाश, तंबूर सितार के स्वर, अंधेरा, पर्दा) Add L 415 Reuntfen Last JT Toy जिाहट) जो लजाय समया त समाप्त ranipDOL - AM