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________________ Second Proof D. 23-5-2017.46 • महासैनिक . मार्शल : यह तो बिलकुल ठीक है साहब । परंतु फिर इन साधनों का क्या कोई उपयोग ही नहीं ? जनरल : है, उपयोग है । इस सुंदर पृथ्वी को बसने योग्य और स्वर्ग सी बनाने में उपयोग बेशक है,लेकिन पृथ्वी को उजाडने और उसको नर्क बनाये रखने में हरगिज़ नहीं । अगर ऐसा उपयोग हो तो भी क्यों ? उससे फायदा किसे होगा? . फिल्ड मार्शल : आप बहुत ही सच्ची बात कर रहे हैं, हम तो आज तक युद्ध करते आये, रोकेट बनाते और छोड़ते आये लेकिन हमने यह सोचा ही नहीं । जनरल : सोचने आपको देते ही कौन हैं मेरे प्यारे फिल्ड मार्शल? क्या आप मानते हैं कि हम नेतागण आप को यह सब सोचने देते हैं ? लैफ्टेनन्ट : बहुत खूब, जनरल साहब ! बहुत खूब ! मार्शल : तो साहब इतने विकसित विज्ञान के साधनो का उपयोग किस प्रकार किया जाय ताकि पृथ्वी एक स्वर्ग बनी रहे ? जनरल : गांधी ने कहा है कि विज्ञान के साथ अहिंसा को जोड़कर । गांधी के उत्तराधिकारी विनोबाने इसे स्पष्ट किया और अपने देश में साकार कर दिखाने की जिदगीभर कोशिश की। मार्शल : यह विचार तो बड़ा अच्छा हैं - लेकिन एक बार हमें दूसरे देशों पर आधिपत्य का और विश्वविजय करें फिर यह.... काममें.... लायें तो? जनरल : आखिर दूसरों पर आधिपत्य की और विश्वविजय की लालसा क्यों ? उसी में एक दूसरे को मिटाने जाना पड़ता है और मिटाने.... की लालसा के परिणाम ने आज हमें कहीं ले जाकर पटका है ? मार्शल : सचमुच ही आंख खोलानेवाली ये बाते हैं। (ल) फिल्ड मार्शल : यह सब तो ठीक ही है साहब, लेकिन मेरी एक शंका हैजनरल : बेशक बोलिये - बिना झिझक के ! फिल्ड मार्शल : अगर दुश्मन या दूसरे देश हम पर आक्रमण करें तो स्वरक्षा के लिए तो वैज्ञानिक शस्त्रों का उपयोग करना ही होगा न ? जनरल : सबसे पहले तो सभी देश यही कहते हैं कि स्वरक्षा' के लिए लड़ते हैं ही यह अबतक कहते आये हैं । दूसरी बात अगर हम अहिंसक संग्राम के सत्य अहिंसा-निर्भयता-बलिदान और अंतरात्मानुसरण के तरीके को अपना ले तो हमारी स्वरक्षा हो ही जाती है। कोई आक्रमण करे भी तो वह टिक नहीं सकता । लेसे अहिंसक संग्राम के ढंग की बात और ही है और उसी का मैं स्वयं तो आरम्भ करना चाहता हूँ..... मार्शल : लेकिन वह सम्भव और व्यवहार्य है ? अहिंसक रक्षा हो ही रही है औ (46)
SR No.032302
Book TitleMaha Sainik Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherYogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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