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Second Proof Dt. 23-5-2017-45
• महासैनिक •
लैफ्टेनन्ट : जनरल साहब ! आप हमारे अधिपति हैं, आप की आज्ञा हम उठाते आये हैं और अब भी उठाने में अपना फर्ज़ ही समझते हैं।
जनरल : लेकिन हमारी फौज़ और इस फौज़ में काफी अंतर है। यहाँ मेरी dictator ship से नहीं, आप सब की 'सर्वसंमति' से सोचना, चलना होता है और निर्णय लेना है। प्रश्नचर्चा से समस्या की गहराई में जाना है और फिर कोई स्थायी हल ढूंढना हैं इस लिए अगर आप चाहते हैं तो मैं आप से खुली चर्चा करना चाहूंगा।
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मार्शल हमें बेशक बड़ी खुशी होगी, लेकिन : जनरल नहीं, आप झिझके नहीं, बिलकुल संकोच न रखें। सब कुछ कहें मेरे विचारों और प्लानों का विरोध को करें इस से सारी सफाई, सारी स्पष्टता हो जाएगी और मैं भी
मार्शल : जनरल साहब ! मेरा यह सवाल अब भी साफ नहीं है कि अब हम सारी ही Space War बंद क्यों कर दें? एक गलत हुई तो उसे हम सुधार नहीं सकते क्या दूसरी बार के प्रयासों में हम सफल भी हो सकते हैं ।
जनरल सफल हो भी जायें तो दुनिया जल्दी ही समाप्त हो जाएगी..... और हम यही तो चाहते थे. दुनिया के और देशों को यम से उजाड़कर कत्ल कर, पाइजन गैस से खत्म कर हमने चंद्रलोक पर जाकर बसने की योजना की, शुक्र और मंगल के ग्रहों पर बैठकर अवकाश युद्ध करने के सपने सजाये, लेकिन मैं पूछता हूँ कि क्यों ? यह सब क्यों ?
( सब स्तब्ध | सन्नाटा )
- उत्तर है किसी के पास ? ( सब मौन हैं..... )
मैं देखता हूँ कि कुदरत ने हमारी योजना मंजूर नहीं की । हमारे बोये हुए कांटे हमें ही लगे, यह बिना मकसद के नहीं हुआ । कुदरत का मकसद था सबक हमें सीखाने का। काश ! अब भी हम मुड़ जाते, वापिस लौट जाते...... !
मार्शल : यह तो ठीक है कि हमारे ही हाथों से हमारे देश के लोग इतनी भारी तादाद में मरे । अगर दुश्मन के या दूसरे देशों के मरे होते तो हम यह नहीं सोचते ।
जनरल : बिलकुल ठीक, मार्शल । there you are...
मार्शल : लेकिन साहब । फिर हमारे ये बड़े बड़े विराट यंत्र ओर वैज्ञानिक तकनीकी अवकाशी आविष्कार क्या काम के ?
जनरल हमारी विज्ञान की और अवकाशी साधनों की सिद्धियाँ पृथ्वी या ग्रहों के विनाश के लिए थोड़ी ही है, वे हैं सृजन और सहअस्तित्व के लिये और यह तो हमीं ने देखा कि ( पेड़ पर लटकते सूत्र वाले चार्ट को दिखाकर ) 'दूसरों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं ।'
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