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________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 - 6 • महासैनिक. जनरल : सुना है कि आपके देश में कुछ योगी बहुत लम्बे अर्से तक जीते हैं। क्या यह सच है ? बूढ़े बाबा : हाँ, अभी भी भारत में हिमालय में १२५-१५० साल के योगी मिल जाते हैं । उनके आदर्श को और गांधी के १००-१२५ साल जीने की कल्पना को मैंने सामने रखा था। हमारे उपनिषदों ने कहा है'करते हुए ही कर्म इस संसार में, शत वर्ष का जीवन हमारा इष्ट हो...!' जनरल : तो अधिक जीने की तुम लोगों की चेष्टा रहती है ! बूढ़े बाबा : रहती तो है, लेकिन संग्रह, शोषण, भोग या लालसा के लिए नहीं; दूसरों के दुःख दूर करने, धरती पर स्वर्ग उतारने और आत्मदर्शन करने की साधना के लिए! जनरल : (प्रभावित होकर) बहुत खूब ! अच्छा तुमने गांधी को कब देखा था ? बूढ़े बाबा : मेरी छः साल की उम्र में, नोआखली में, मेरे पिताजी के साथ । तब गांधी के साथ वे भी वहाँ घूम रहे थे - नफरत, हिंसा, वैर की जगह प्रेम और शांति स्थापित करने । गांधी के जैसे एक आजीवन शांतिसैनिक बनने की मेरी तभी से इच्छा थी और गांधीने मुझे तब आशीर्वाद भी दिया था...। जनरल : क्या ? बूढ़े बाबा : (स्मृति, भावावेश में खोकर): "बहुत जियो और शांति के सनातन सिपाही बनो ! - कैसे थे वे प्रेमभरे शब्द । जनरल : मतलब कि गांधी की लड़ाई में प्रेम का बलिदान, शहादत एक बड़ा हथियार था, नहीं ? तेजा।-बिलकुल, बिलकुल सही। गांधी ने किसी का लहू लेने के बदले (बजाय) प्रेम से अपना लहू देने का सिखाया (घाँव से खून बहता है, दर्द बढ़ता है, फिर भी निश्चिंतता से हाथ रखे रहता हैं।) जनरल : तो उसका यह लहू देने का, प्रेम के बलिदान का हथियार कामयाब हुआ क्या ? उसकी शहादत सफल हुई क्या ? बूढ़े बाबा : एक मानी में जरुर हुई । दूसरे माने) में अब हो रही है...... जनरल : कैसे? बूढ़े बाबा : यह तो बड़ी लंबी बात है, जनरल सा'ब ! (घाव का दर्द बढ़ता है) थोड़े में सुनाने की कोशिश करें । गांधी की शहादत के बाद जब मैं बड़ा हुआ तब मैं शांति का सिपाही बना रहा । मेरे शांति के मिशन को लिए मैं तब से लेकर आज तक घूम रहा हूँ। नफ़रत, हिंसा और युद्धों को मिटाने मैं अपने साथियों के साथ हर छोटे-मोटे युद्ध की भूमि पर पहुँच जाता हूँ। तीसरे विश्वयुद्ध में भी मैं जगह जगह पहुँचा था और आज चौथे में भी..... ।
SR No.032302
Book TitleMaha Sainik Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherYogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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