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________________ Second Proof Dt. 23-5-2017 -7 • महासैनिक. जनरल : (सहसा कुछ याद करके, बाबा का चेहरा (एकटक देखते हुए-) अच्छा तीसरे विश्वयुद्ध के समय, बीसवी शती के अंत भाग में तुम कहां थे ? बूढ़े बाबा : पश्चिमी योरप के सागरतट के प्रदेशों मे, अपने साथी शांतिसैनिकों के साथ - जनरल : बिल्कुल ठीक, बिल्कुल ठीक । अब मुझे याद आया । जब इ.स. २०१० में मैंने हमारे कमान्डर जनरल से चार्ज लिया तब शायद तुम जैसे लोगों ने ही हमारे देश में उन हज़ारों बच्चों को बोम्बार्डमैंट से बचाया था.... । (कृतज्ञता का भाव) . बूढ़े बाबा : मुझे भी याद आता है कि मालिक की मेहरबानी से यह काम करनेवाले हम ही थे... । जनरल : (परिवर्तित होकर, उपकार के भाव के साथ, घूटने टेककर...) ओह बाबा ! फिर तो तुम वही हो ! तुम्हें तो हम उन दिनों काफ़ी ढूँढते रहे थे । तुम्हारा एहसान हम भूल नहीं सकते । हमारे कमान्डर जनरल तब आप के साहसभरे काम से बड़े खुश हुए थे। आपने ही हमारे बच्चों को बचाया, आप के बिना वे बच नहीं सकते थे..... बूढ़े बाबा : और मुझे माफ करें, आप के कमान्डर जनरल ने और आपने अपने दुश्मन-देशों के लाखों नाजुक, नवजात निरीह बच्चों को मौत के घाट उतारा था । बराबर है न ? जनरल : बराबर तो है बाबा, लेकिन क्या करें ? मैं यह मेहसूस और कबूल करता हूँ कि हमारी ये गलतियाँ थीं... (शरमिंदा होता हैं ।) बूढ़े बाबा : 'गलतियाँ' ? आप उन्हें 'गलतियाँ' कहते हैं ? गलतियाँ नहीं, बड़े भारी पाप थे पाप ! ऐसे पाप कि जिनके लिए आप को न तो इन्सानियत कभी माफ कर सकती है, न खुदा ! जनरल : लेकिन आखिर ये सब लड़ाईयाँ हैं... इ बूढ़े बाबा : हाँ, कि जिस में आप चाहते हैं कि आप के देश के बच्चे बच जायँ और दूसरों के मर जाय। जनरल : हकीकत तो यही है लेकिन उसके लिए हम क्या कर सकते हैं ?... युद्ध की तो यह रसम ही है ! बूढ़े बाबा : ..... मैं युद्धों को समूचे रोककर उस रसम को उखाड़ निकालना (फैकना) चाहता हूँ। मेरी जिंदगी का यह सब से बड़ा और लंबे अर्से का ख्वाब है... ( दर्द बढ़ता है, जमीं पर लंबा लेट जाता है, जनरल उसे सहायता करता है, पास बेठकर टोर्च से अपने हाथ की घड़ी में समय देखता है, बारबार बीच बीच में देखता रहता हैं ।) जनरल : लेकिन तुम युद्धों को रोक नहीं सकते । जब तक दुनिया में मतभेद और संघर्ष और अन्याय और आक्रमण है तब तक युद्धों को रोकना नामुमकीन है।
SR No.032302
Book TitleMaha Sainik Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherYogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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