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________________ Second Proof DL. 23-5-2017 - 16 • महासैनिक. अंक-२ दृश्य : दूसरा स्वप्न दृश्य (स्थान वही । जनरल सोये हुए । खिड़की के बाहर deep stage और सायक्लोरामा कर्टेन पर स्वप्न का दृश्य । आगे मोरक्रवीटो नैट कटैंन । सिल्हट टैकनिक का आवश्यकतानुसार उपयोग । प्रकाश एवं ध्वनि का आयोजन । पार्श्ववाद्यसंगीत और गीत । सितार एवं सूरमंडल के स्वर । पीछे के स्वप्न दृश्य में सफेद बादल, पहाड़ी का थोड़ा हिस्सा, एक-शिला पर पद्मासन पर ध्यानस्थ श्रीमद् राजचन्द्र । नज़दीक दो बाघ बैठे हुए । प्रथम बाघों की गर्जना और बाद में पार्श्वभूमि से ऊपर की गीत-पंक्ति का प्रस्तुतीकरण । जनरल सो गये हैं और वही इस स्वप्न को देखते हैं।) पार्श्वगीत : (मार्शल के जाने के साथ ही जिसकी प्रथम दो पंक्तियाँ गाई जाती हैं। बाद की पंक्तियों के साथ साथ ही super-impose में प्रवक्ता-वाणी भी सुनाई देती है और श्रीमद् राजचंद्र के इडर के दृश्यवाला स्वप्नदृश्य भी क्रमशः दिखाई देता है । धुंआ, रंगीन प्रकाश । राग-बागेश्री) "अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे ?..... क्यारे थइशं बाह्यांतर निग्रंथ जो ? सर्व संबंधनुं बंधन तीक्ष्ण छेदीने, विचरशुं कव महत् पुरुषने पंथ जो..... अपूर्व अवसर । "क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोधस्वभावता, मान प्रत्ये तो दीनपणानुं मान जो, माया प्रत्ये माया साक्षीभावनी; लोभ प्रत्ये नहीं लोभ समान जो..... । अपूर्व अवसर... । "बहु उपसर्गकर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहीं, वंदे चक्री तथापि न मळे मान जो, देह जाय पण माया थाय न रोममां; लोभ नहीं छो प्रबळ सिद्धि निदान जो..... । अपूर्व अवसर..... । (16)
SR No.032302
Book TitleMaha Sainik Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherYogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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